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________________ जितनी लम्बी चादर हो, उतने ही पैर पसारें (यह लेख मैंने यहाँ से लेकर क्रियेटिव कॉमंस लायसेंस के तहत अपने तरीके से अनूदित किया है) खुशहाल ज़िन्दगी जियें, बरबाद ज़िन्दगी नहीं। दूसरों को दिखाने के लिए पैसा खर्च न करें। इस बात को हमेशा ध्यान में रखें कि दुनियावी वस्तुओं में वास्तविक संपत्ति नहीं है। अपने धन का नियोजन करें, धन को अपना नियोजन न करने दें। जितनी लम्बी चादर हो, उतने ही पैर पसारें। ___ "एक पैसा बचाया मतलब एक पैसा कमाया" -बेंजामिन फ्रेंकलिन १ - संपति की परिभाषा बदलें - "मुझे याद है अपनी पहली नौकरी के दौरान अपने दफ्तर के कमरे में बैठकर मैं दीवार पर लगी शानदार महँगी कार की तस्वीर को निहारता रहता था। देरसबेर मैंने ऐसी कार खरीद भी ली। आज, दस साल बाद मैं अपने दफ्तर के कमरे में बैठा हुआ दीवार पर लगी अपने बच्चों की तस्वीर को एकटक देखता रहता हूँ। खिड़की से बाहर मुझे पार्किंग लौट में खड़ी अपनी साधारण कार भी दिखती है। दस सालों में कितना कुछ बदल गया है! मेरे कहने का मतलब यह है कि मेरे लिए संपत्ति की परिभाषा यह है - इतना धन जो मेरे और मेरे परिवार की ज़ायज ज़रूरतों को पूरा कर दे, हमारी ज़िन्दगी को खुशहाल बनाये, और जिससे हम दूसरों की भी कुछ मदद कर पायें। (साई इतना दीजिये, जा में कुटुंब समाय; मैं भी भूखा न रहूँ साधुन भूखा जाय) २ - मिल-बांटकर काम चला लें - नई फ़िल्म सिनेमाहाल में देखना बहुत ज़रूरी तो नहीं। किसी दोस्त के पास उसकी DVD हो तो कुछ घंटों के लिए मांगकर ले आयें। इसमें संकोच कैसा! घर में ही बढ़िया सा नाश्ता बनायें और सस्ता सुंदर होम थियेटर का मज़ा लें। दोस्त को भी बुला लें। हिसाब लगायें आपने कितने पैसे बचाए! ३ - भूल न जाना, कभी माल न जाना - माल जाने में कुछ मज़ा नहीं है। कम उम्र के लड़के-लड़कियां माल जाने के शौकीन होते हैं, सभी जानते हैं क्यों। बहुत सारे लोग बोर होने पर भी माल चले जाते हैं। चाहे जो हो, माल जाएँ और कुछ खर्चा न करें, यह सम्भव नहीं है। यदि आपको कपड़े खरीदने हों तो बेहतर होगा यदि आप थोक कपड़ा बेचनेवालों से खरीदें। बहत सारे ब्रांडेड स्टोर भी अक्सर डिस्काउंट/सेल चलाते रहते हैं। सजग खरीददार माल न जाकर बहुत पैसा बचा सकते हैं। ४ - विज्ञापनों की खुराक कम करें - विज्ञापन जानलेवा हैं! शायद ही कोई इस बात से इनकार करे। विज्ञापन निर्माता विज्ञापनों की रचना इस प्रकार करते हैं कि आपको अपने जीवन और अपने आसपास कमी ही कमी दिखने लगती है। वे आपमें उत्पादों की कभी न 189
SR No.034108
Book TitleZen Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNishant Mishr
PublisherNishant Mishr
Publication Year
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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