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________________ इंसानियत का सबक हज़रत खलील बहुत दयालु और दानी थे। जब तक वह किसी भूखे को खाना नहीं खिला देते थे तब तक वह स्वयं कुछ नहीं खाते थे। एक बार दो-तीन दिनों तक कोई याचक उनके घर नहीं आया। वह बड़े परेशान हुए और किसी भूखे व्यक्ति की तलाश में घर से निकले. कुछ दूर जाने पर उन्हें एक दुबलापतला बूढा व्यक्ति मिल गया. वह बड़े प्रेम से उसे अपने घर ले आये. आदर-सत्कार करके उसे अपने साथ बिठाया और नौकरों से उसके लिए भोजन लाने को कहा। खाने की थाली आ गई लेकिन खाने से पहले बूढे ने खुदा का नाम नहीं लिया। हज़रत खलील ने कहा - "यह क्या, बूढे मियां! आपने तो खुदा का नाम लिया ही नहीं!" बूढा बोला - "मैं अग्नि की उपासना करता हूँ। हमारे संप्रदाय में खुदा को नहीं पूजा जाता।" यह सुनकर खलील को बहुत बुरा लगा। उन्होंने उस वृद्ध को भला-बुरा कहा और बेईज्जत करके घर से निकाल दिया। बूढा उदास होकर चला गया। तभी हज़रत खलील को खुदा की आवाज़ सुनाई दी - "खलील, तूने यह क्या किया! मैंने इस बूढे को बचपन से लेकर बुढापे तक ज़िन्दगी और खाना दिया और तू कुछ देर के लिए भी उसे आसरा नहीं दे सका! वह अग्नि की पूजा करता है तो क्या हुआ, वह इंसान तो है! लोगों के यकीन जुदा हो सकते हैं पर इंसानियत तो हमेशा से एक ही है! खलील, तूने उससे मोहब्बत का हाथ खींचकर अच्छा नहीं किया!" हज़रत खलील को अपनी भूल पता चल गई और उन्होंने बूढे को ढूंढकर अपनी गलती की माफ़ी मांगी और उसे प्रेम से भोजन कराया। 166
SR No.034108
Book TitleZen Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNishant Mishr
PublisherNishant Mishr
Publication Year
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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