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________________ स्वर्ग का आनंद मरने के कुछ ही क्षणों के भीतर जुआन ने स्वयं को एक बहुत सुंदर स्थान में पाया जहाँ इतना आराम और आनंद था जिसकी उसने कभी कल्पना भी न की थी। श्वेत वस्त्र पहने हए एक व्यक्ति उसके पास आकर उससे बोला: "आप जो भी चाहते हैं, आपको वो मिलेगा - कैसा भी भोजन, भोग-विलास, राग-रंग"। और जुआन ने वही किया जिसके सपने वो पूरी ज़िन्दगी देखता रहा था। कई सालों तक उस स्वर्गिक आनंद को भोगने के बाद एक दिन उसने श्वेत वस्त्र पहने व्यक्ति से पूछा: "मैं जो कुछ भी कभी करना चाहता था वह सब करके देख चुका हूँ। अब मैं कुछ काम करना चाहता हूँ ताकि स्वयं को उपयोगी अनुभव कर सकूँ। क्या मुझे कुछ काम मिलेगा?" "मैं क्षमा चाहता हूँ" - श्वेत वस्त्र पहने व्यक्ति ने कहा - "यही एकमात्र चीज़ है जो हम आपके लिए नहीं कर सकते। यहाँ कोई काम नहीं है"। "अजीब बात है!" - जुआन ने चिढ़कर कहा - "मैं इस तरह तो अनंतकाल तक यहाँ वक़्त नहीं गुजार सकता! इससे तो अच्छा होगा कि आप मुझे नर्क में भेज दें!" श्वेत वस्त्र पहने व्यक्ति ने उसके पास आकर धीमे स्वर में कहा : "और आपको क्या लगता है आप कहाँ हैं?" 143
SR No.034108
Book TitleZen Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNishant Mishr
PublisherNishant Mishr
Publication Year
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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