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________________ जेनसूत्रों की पुस्तक यह बहुत पुरानी बात है। तेत्सुगेन नामक एक जापानी ज़ेनप्रेमी जेनसूत्रों का संग्रह करके उन्हें छपवाना चाहता था। उसके समय में ज़ेनसूत्र केवल चीनी भाषा में ही उपलब्ध थे। लकड़ी के सात हज़ार छापे बनाकर उनसे पुस्तक छापना बहुत बड़ा काम था और इसमें बहुत धन व समय भी लगता। इस काम के लिए तेत्सुगेन ने दूर-दूर की यात्रायें कीं और इसके लिए दान एकत्र किया। इस कार्य का महत्त्व समझनेवाले कुछ गुणी व्यक्तियों ने सामर्थ्य के अनुसार सोने के सिक्के देकर तेत्सुगेन की सहायता की। बहुत से लोग ऐसे भी थे जो केवल तांबे के सिक्के ही दे सकते थे। तेत्सुगेन ने सभी के दान को एक सामान मानकर उनका आभार व्यक्त किया। दस सालों की मेहनत के बाद तेत्सुगेन के पास कार्य प्रारम्भ करने के लिए पर्याप्त धन जमा हो गया। उसी समय उसके प्रांत में उजी नदी में बाढ़ आ गई। बाढ़ के बाद अकाल की बारी थी। तेत्सुगेन ने पुस्तक के लिए जमा किया सारा धन लोगों को अकालग्रस्त होने से बचाने में लगा दिया। फिर वह पहले की भांति धन जुटाने के काम में लग गया। कुछ साल और बीते देश पर महामारी का संकट आ पड़ा। तेत्सुगेन ने पुस्तक के लिए जमा किया हुआ धन फ़िर से लोगों की सहायता करने के लिए बाँट दिया । तेत्सुगेन ने तीसरी बार अपने उद्देश्य के निमित्त धन जुटाना प्रारम्भ किया। इस बार उसे ज़रूरी धन जुटाने में बीस साल लग गए। उसका कार्य पूर्ण हो गया। उसके द्वारा छपाई गई जेनसूत्रों की पुस्तक आज भी क्योटो के ओबाकू मठ में सुरक्षित रखी हुई है। आज भी जापान में लोग अपने बच्चों को तेत्सुगेन की पुस्तक के बारे में बताते हैं। वे कहते हैं कि उसकी पुस्तक के पहले दो संस्करण तीसरे संस्करण से बहुत अच्छे थे। 140
SR No.034108
Book TitleZen Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNishant Mishr
PublisherNishant Mishr
Publication Year
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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