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________________ राजा और धर्मात्मा का संवाद च्वांग-त्जु एक बार एक राजा के महल में उसका आतिथ्य स्वीकार करने गया। वे दोनों प्रतिदिन धर्म-चर्चा करते थे। एक दिन राजा ने च्वांग-त्जु से कहा - "सूरज के निकलने पर दिए बुझा दिए जाते हैं। बारिश होने के बाद खेत में पानी नहीं दिया जाता। आप मेरे राज्य में आ गए हैं तो मुझे शासन करने की आवश्यकता नहीं है। मेरे शासन में हर तरफ़ अव्यवस्था है, पर आप शासन करेंगे तो सब कुछ व्यवस्थित हो जाएगा।" च्वांग-त्जु ने उत्तर दिया - "तुम्हारा शासन सर्वोत्तम नहीं है पर बुरा भी नहीं है। मेरे शासक बन जाने पर लोगों को यह लगेगा कि मैंने शक्ति और संपत्ति के लालच में राज करना स्वीकार कर लिया है। उनके इस प्रकार सोचने पर और अधिक अव्यवस्था फैलेगी। मेरा राजा बनना वैसे ही होगा जैसे कोई अतिथि के भेष में घर का मालिक बन बैठे।" राजा को यह सुनकर निराशा हुई। च्वांग-त्जु ने कहा - "चिड़िया घने जंगल में अपना घोंसला बनाती है पर पेड़ की एक डाल ही चुनती है। पशु नदी से उतना ही जल पीते हैं जितने से उनकी प्यास बुझ जाती है। भले ही कोई रसोइया अपने भोजनालय को साफ़-सुथरा नहीं रखता हो पर कोई पुजारी उसका स्थान नहीं ले सकता।" 134
SR No.034108
Book TitleZen Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNishant Mishr
PublisherNishant Mishr
Publication Year
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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