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________________ १० विवेक-चूडामणि अर्थस्य निश्चयो दृष्टो विचारेण हितोक्तितः। न स्नानेन न दानेन प्राणायामशतेन वा॥१३॥ कल्याणप्रद उक्तियोंद्वारा विचार करनेसे ही वस्तुका निश्चय होता देखा जाता है; स्नान, दान अथवा सैकड़ों प्राणायामोंसे नहीं। अधिकारिनिरूपण अधिकारिणमाशास्ते फलसिद्धिर्विशेषतः। उपाया देशकालाद्याः सन्त्यस्मिन्सहकारिणः ॥१४॥ विशेषतः अधिकारीको ही फल-सिद्धि होती है; देश, काल आदि उपाय भी उसमें सहायक अवश्य होते हैं। अतो विचारः कर्तव्यो जिज्ञासोरात्मवस्तुनः । समासाद्य दयासिन्धुं गुरुं ब्रह्मविदुत्तमम्॥१५॥ अतः ब्रह्मवेत्ताओंमें श्रेष्ठ दयासागर गुरुदेवकी शरणमें जाकर जिज्ञासुको आत्मतत्त्वका विचार करना चाहिये। मेधावी पुरुषो विद्वानूहापोहविचक्षणः । अधिकार्यात्मविद्यायामुक्तलक्षणलक्षितः ॥१६॥ जो बुद्धिमान् हो, विद्वान् हो और तर्क-वितर्कमें कुशल हो, ऐसे लक्षणोंवाला पुरुष ही आत्मविद्याका अधिकारी होता है। विवेकिनो विरक्तस्य शमादिगुणशालिनः । मुमुक्षोरेव हि ब्रह्मजिज्ञासायोग्यता मता ॥१७॥ जो सदसद्विवेकी, वैराग्यवान्, शम-दमादि षट्सम्पत्तियुक्त और मुमुक्षु हो उसीमें ब्रह्मजिज्ञासाकी योग्यता मानी गयी है। साधन-चतुष्टय साधनान्यत्र चत्वारि कथितानि मनीषिभिः। येषु सत्स्वेव सन्निष्ठा यदभावे न सिद्ध्यति॥१८॥
SR No.034107
Book TitleVivek Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages153
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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