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________________ नवम अनुवाक अत्तादि शुभकर्मोकी अवश्यकर्तव्यताका विधान विज्ञानादवामोति स्वाराज्य- विज्ञानसे ही खाराज्य प्राप्त कर लेता है-ऐसा [छठे अनुवाकमें] कहे मित्युक्तत्वाच्ट्रोतसार्तानां कर्म- जानेके कारण श्रौत और स्मार्त्त कर्मो की व्यर्थता प्राप्त होती है। वह णामानर्थक्यं प्राप्तमित्यतस्तन्मा प्राप्त न हो, इसलिये पुरुषार्थ के प्रति प्रापदिति कर्मणां पुरुषार्थ प्रति कोका साधनस्त्र प्रदर्शित करनेके लिये यहाँ उनका उल्लेख किया साधनत्वप्रदर्शनार्थमिहोपन्यासः- जाता है ऋतं च स्वाध्यायप्रवचने च । सत्यं च स्वाध्यायप्रवचने च । तपश्च स्वाध्यायप्रवचने च । दमश्च स्वाध्यायप्रवचने च। शमश्च स्वाध्यायप्रवचने च । अग्नयश्च स्वाध्यायप्रवचनेच। अमिहोत्रं च स्वाध्यायप्रवचने च । अतिथयश्च स्वाध्यायप्रवचने च । मानुषं च स्वाध्यायप्रवचने च । प्रजा चस्वाध्यायप्रवचने च । प्रजनश्च स्वाध्यायप्रवचने च। प्रजातिश्च स्वाध्यायप्रवचने च । सत्यमिति सत्यवचा राथीतरः। तपइतितपोनित्यः पौरुशिष्टिः स्वाध्यायप्रवचने एवेति नाको मौद्गल्यः । तद्धि तपस्तद्धि तपः॥१॥ ऋत (शास्त्रादिद्वारा बुद्धिमें निश्चय किया हुआ अर्थ ) तथा खाध्याय (शास्त्राध्ययन ) और प्रवचन (अध्यापन अथवा वेदपाठरूप ब्रह्मयज्ञ) [ये अनुष्ठान किये जाने योग्य हैं ] 1 सत्य ( सत्यभापण) तथा खाध्याय और प्रवचन [ अनुष्ठान किये जाने चाहिये ] | दम
SR No.034106
Book TitleTaittiriyo Pnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeeta Press
PublisherGeeta Press
Publication Year1937
Total Pages255
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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