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________________ २६ तैत्तिरीयोपनिपद् [ वल्ली १ यशो जनेऽसानि वाहा । श्रेयान् वस्यसोऽसानि खाहा । तं त्वा भग प्रविशानि खाहा । स मा भग प्रविश खाहा । तस्मिन् सहस्रशाखे निभगाहं त्वयि मृजे स्वाहा । यथापः प्रवता यन्ति यथा मासा अहर्जरम् । एवं मां ब्रह्मचारिणो धातरायन्तु सर्वतः स्वाहा । प्रतिवेशोऽसि प्र मा पाहि प्र मा पद्यस्व ॥३॥ ___मैं जनतामें यशस्वी होऊँ-वाहा । मैं अत्यन्त प्रशंसनीय और धनवान् होऊँ-खाहा । हे भगवन् ! मैं उस ब्रह्मकोशभूत तुझमें प्रवेश कर जाऊँ-खाहा । हे भगवन् ! वह तू मुझमें प्रवेश कर-वाहा । हे भगवन् ! उस सहस्रशाखायुक्त [ अर्थात् अनेकों भेदवाले ] तुझमें मैं अपने पापाचरणोंका शोधन करता हूँ-खाहा । जिस प्रकार जल निम्न प्रदेशकी ओर जाता है तथा महीने अहर्जर-संवत्सरमें अन्तर्हित हो जाते हैं, उसी प्रकार हे धातः ! ब्रह्मचारीलोग सब ओरसे मेरे पास आवेस्वाहा । तू [ शरणागतोंका ] आश्रयस्थान है अतः मेरे प्रति भासमान हो, तू मुझे प्राप्त हो ॥ ३ ॥ यशो यशस्वी जने जनसमूहे- मैं जनतामें यशस्वी होऊँ तथा ऽसानि भवानि । श्रेयान्प्रशस्यतरो श्रेयान्-प्रशस्यतर और वस्वसः वसीयसः अर्थात् वसुमान्से भी वस्यसो वसीयसोवसुतराद्वसुमत्त- वसुमान् यानी अत्यन्त धनी पुरुषों- ... राद्वासानीत्यन्वयः । किं च तं से भी विशेष धनवान् होऊँ । तथा ब्रह्मणः कोशभूतं त्वा त्वांहे भग ... हे भग-भगवन्-पूजनीय ! ब्रह्मके कोशभूत उस तुझमें मैं प्रवेश करूँ भगवन्पूजावन्प्रविशानि प्रविश्य | तात्पर्य यह है कि तुझमें प्रवेश करके चानन्यस्त्वदात्मैव भवानीत्यर्थः। तुझसे अनन्य हो मैं तेरा ही रूप
SR No.034106
Book TitleTaittiriyo Pnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeeta Press
PublisherGeeta Press
Publication Year1937
Total Pages255
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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