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________________ पष्ट अनुकाक आनन्द ही वह है-ऐसा भृगुका निश्चय करना, तथा इस भार्गवी ___ वारुणी विद्याका महत्त्व और फल आनन्दो ब्रह्म ति व्यजानात् । आनन्दाद्धय व खल्विमानि भृतानि जायन्ते । आनन्देन जातानि जीवन्ति । आनन्द प्रयन्त्यभिसंविशन्तीति । सैषा भार्गवी वारुणी विद्या परमे व्योमन् प्रतिष्ठिता । स य एवं वेद प्रतितिष्ठति । अन्नवानन्नादो भवति । महान् भवति, प्रजया पंशुभिर्ब्रह्मवर्चसेन । महान् कीर्त्या ॥१॥ आनन्द ब्राम है-ऐसा जाना; क्योंकि आनन्दसे ही ये सब प्राणी उत्पन्न होते हैं, उत्पन्न होनेपर आनन्दके द्वारा ही जीवित रहते हैं और प्रयाण करते समय आनन्दमें ही समा जाते हैं । वह यह भृगुकी जानी हुई और वरुणको उपदेश की हुई विद्या परमाकाशमें स्थित है । जो ऐसा जानता है वह ब्रह्ममें स्थित होता है; वह अन्नवान् और अन्नका भोक्ता होता है; प्रजा, पशु और ब्रह्मतेजके कारण महान् होता है तथा कीर्तिके कारण मी महान् होता है ॥ १ ॥ ___ एवं तपसा विशुद्धात्मा। इस प्रकार तपसे शुद्धचित्त हुए भृगुने प्राणादिमें पूर्णतया ब्रह्मका प्राणादिषु साकल्येन ब्रह्मलक्षण १० लक्षण न देखकर धीरे-धीरे भीतरकी मपश्यञ्शनैः शनैरन्तरनुप्रविश्या- ओर प्रवेश कर तपरूप साधनके
SR No.034106
Book TitleTaittiriyo Pnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeeta Press
PublisherGeeta Press
Publication Year1937
Total Pages255
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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