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________________ २०४ तैत्तिरीयोपनिपद् [ यल्ली३ च यत्प्रयन्ति यद्बल प्रतिगच्छ- जिसके प्रति प्रयाण करनेवाले न्ति, अभिसंविशन्ति तादात्म्य- अर्थात् जिस ब्रह्मके प्रति गमन करनेवाले वे जीव उसमें प्रवेश सेव प्रतिपद्यन्ते । उत्पत्तिस्थिति- करते-उसके तादात्म्यभावको प्राप्त लयकालेषु यदात्सतां न जहति हो जाते हैं । तात्पर्य यह है कि भूतानि तदेतद्ब्रह्मणो लक्षणम। उन्पत्ति, स्थिति और लयकालमें - प्राणी जिसकी तद्रूपताका त्याग नहीं तब्रह्म विजिज्ञासव विशेषेण 1" करते यही उस ब्रह्मका लक्षण है। ज्ञातुमिच्छस्व । यदेवलक्षणं ब्रह्म ' त उस ब्रह्मको विशेषरूपसे जाननेकी तदन्नादिद्वारेण प्रतिपद्यस्वे- . इच्छा कर; अर्थात् जो ऐसे लक्षणोंत्यर्थः । श्रुत्यन्तरं च-"प्राण- बाला ब्रह्म हैं उसे अन्नादिके द्वारा - प्राप्त कर । "ब्रह्म प्राणका प्राण, स्य प्राणमुत चक्षुपश्चक्षुरुत श्रोत्रस्य चकाच स. चक्षुका चक्षु, श्रोत्रका श्रोत्र, अनका श्रोत्रमन्नस्यान्नं मनसो ये मनो अन्न और मनका मन है-ऐसा जो विदुस्ते निचिक्युर्जन पुराण-, जानते है वे उस पुरातन और श्रेष्ठ मग्यम्" (वृ० उ०४।४। ब्रह्मका साक्षात् जान सकते हैं ऐसी । एक दूसरी श्रुति भी इस बातको १८) इति ब्रह्मोपलब्धी द्वारा- प्रदर्शित करती है कि ये प्राणादि ण्येतानीति दर्शयति । ब्रह्मकी उपलब्धिमें द्वारखरूप हैं। स भृगुब्रह्मोपलब्धिद्वाराणि उस भृगुने अपने पितासे ब्रह्मकी ब्रह्मोपलब्धये ब्रह्मलक्षणं च श्रुत्वा सनकर ब्रह्मसाक्षात्कारके साधन उपलब्धिके द्वार और ब्रह्मका लक्षण भृगोस्तपः पितुस्तपो ब्रह्मोप- रूपसे तप किया। [ यहाँ प्रश्न लब्धिसाधनत्वेनातप्यत तप्त- होता है कि ] जिसका उपदेश ही वान् । कुतः पुनरनुपदिष्टस्यैव । | नहीं दिया गया था उस तपके | [ ब्रह्मप्राप्तिका ] साधन होनेका तपसःसाधनत्वप्रतिपत्ति गोः ? ज्ञान भृगुको कैसे हुआ? [ उत्तर
SR No.034106
Book TitleTaittiriyo Pnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeeta Press
PublisherGeeta Press
Publication Year1937
Total Pages255
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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