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अनु०६]
शाङ्करभाष्यार्थ
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. कामयित्त्वादसदादिवदना- शंका-कामना करनेवाला होनेसे
तो वह हमारी-तुम्हारी तरह अनाप्त सकाममिति चेत् ?
काम(अपूर्ण कामनावाली) सिद्ध होगा। न, स्वातन्त्र्यात् । यथान्यान् __ समाधान-ऐसी बात नहीं है, परवशीकृत्य कामादिदोषाः
क्योंकि वह खतन्त्र है। जिस प्रकार
काम आदि दोष अन्य जीवोंको प्रवर्तयन्ति न तथा ब्रह्मणः | विवश करके प्रवृत्त करते हैं प्रवर्तकाः कामाः । कथं तर्हि
उस प्रकार वे ब्रह्मके प्रवर्तक नहीं
हैं । तो वे कैसे हैं ? वे सत्य-ज्ञानसत्यज्ञानलक्षणाः स्वात्मभूतत्वा- |
| स्वरूप एवं खात्मभूत होनेके द्विशुद्धा न तैर्ब्रह्म प्रवर्त्यते । कारण विशुद्ध हैं। उनके द्वारा
ब्रह्म प्रवृत्त नहीं किया जाता; बल्कि तेपां तु तत्प्रवर्तकं ब्रह्म प्राणि
जीवोंके प्रारब्ध-कर्मोकी अपेक्षासे कर्मापेक्षया । तसात्स्वातन्त्र्यं वह ब्रह्म ही उनका प्रवर्तक है।
अतः कामनाओंके करनेमें ब्रह्मकी कामेषु ब्रह्मणः । अतो नानाप्त
स्वतन्त्रता है । इसलिये ब्रह्म अनाप्तकामं ब्रह्म ।
काम नहीं है। साधनान्तरानपेक्षत्वाच्च । किं किन्हीं अन्य साधनोंकी अपेक्षा
वाला न होनेसे भी कामनाओंके च यथान्येपामनात्मभूता धर्मा- विपयमें ब्रह्मकी स्वतन्त्रता है । जिस
प्रकार धर्मादि कारणों की अपेक्षा दिनिमित्तापेक्षाः कामा खात्म- रखनेवाली अन्य जीवोंकी अनात्मभूत
कामनाएँ अपने आत्मासे अतिरिक्त व्यतिरिक्तकार्यकरणसाधनान्त- देह और इन्द्रियरूप अन्य साधनों
की अपेक्षावाली होती हैं उस प्रकार रापेक्षाच न तथा ब्रह्मणो निमि- | ब्रह्मको निमित्त आदिकी अपेक्षा