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________________ ८० वचन - साहित्य - परिचय ऐक्य । इस तरह ६ X ६ = ३६ स्थलोंका विकास किया गया । अंगस्थलों के साथ लिंगस्थलों का संबंध जोड़ा गया है । इसी प्रकार भक्तका आचारलिंग, भक्तका गुरुलिंग, भक्तका शिवलिंग, भक्तका चरलिंग, भक्तका प्रसादलिंग और भक्तका महालिंग | इस रीति से यह संख्या २१६ तक बढ़ायी गयी है । जैसे ६ x ६–३६है, वैसे ही ३६×६=२१६ स्थल हुए हैं । गुब्बी मल्लण्णजी नामके एक लेखकने 'षट्स्थल सारामृत' नामसे एक पुस्तक लिखी है । उसमें सब सविस्तर विवेचन है । सामन्यतया षट्स्थलको एक दृष्टिपातमें जान लेने के लिए नीचे लिखा हुआ नक्शा सहायक होगा । लिंगस्थल I इष्टलिंग चित् 1 शिव- - शक्त्यात्मक - निःकल तत्व भक्त 1 [लिंगस्थल ] निःकल परशिव I लिंगस्थल I शक्ति प्रवृत्ति - उपास्य- शिव अंगस्थल प्राणलिंग 1 श्राचारलिंग गुरुलिंग शिवलिंग चरलिंग प्रसादलिंग क्रियाशक्ति, ज्ञानशक्ति, इच्छाशक्ति, आदिशक्ति, पराशक्ति, लिंगस्थल की तरह अंगस्थलका नक्शा इस प्रकार बनेगा T त्यागांग TI [अंगस्थल ] चित् 1 शिवशक्त्यात्मक निःकल शिवतत्व I महेश प्रसादि I भावलिंग I 1 भोगांग I अंगस्थल महालिंग चित्शक्ति प्राणलिंगी शरण | | योगांग } सद्भक्ति नैष्ठिकाभक्ति अवधानभक्ति अनुभाव- आनंद भक्ति भक्ति ऐक्य 1 समरस भक्ति
SR No.034103
Book TitleSantoka Vachnamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangnath Ramchandra Diwakar
PublisherSasta Sahitya Mandal
Publication Year1962
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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