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________________ साम्प्रदायिक स्वरूप अथवा षट्स्थल शास्त्र इसके उत्तरमें वचनकारोंने कहा है, शिवने स्वलीलार्थ ३६ तत्वोंका निर्माण किया । अब यहां यह देखना है कि इन ३६ तत्वों की उत्क्रांति कैसे हुई ? वचनकार कहते हैं, सर्व प्रथम शिवमें शिव और शक्ति ऐसे दो तत्वोंके दर्शन हुए। यह दोनों चैतन्यमय थे। किन्तु शिवतत्व प्रकाशात्मक था और शक्तितत्व विमर्शात्मक । शक्ति-तत्व ही इस सृष्टि का कारण है । बादमें 'सादाख्य' तत्व अस्तित्वमें आया । 'सत् प्राख्यः यतःसादाख्यः यह इसका निरुक्त है। अर्थात् जिससे अस्तित्वकी कल्पना प्रारंभ होती है वह. सादाख्यतत्व है । उसे सदाशिव भी कहा है । बादमें ईश्वर और शुद्ध विद्याका. प्रादुर्भाव हुआ । ईश्वर तत्व सृष्टि निर्माणका द्योतक है । तथा शुद्ध विद्या तत्व निर्मल, स्पष्ट ऐक्यज्ञानका द्योतक है। इस प्रकार 'शिव' 'शक्ति' 'सादाख्य" (अथवा सदाशिव) 'ईश्वर' और 'शुद्ध विद्या' ये पांच तत्व चिन्मय हैं। यहां द्वैत भाव उत्पन्न हुआ दीखता है, किन्तु अनुभवमें वह अद्वैत ही है। इसीलिये 'शुद्धतत्व' अथवा 'शिवतत्व' कहलाते हैं । परशिव कालातीत है । शिव और शक्ति 'अविना भाव' से युक्त होनेसे नि:कल हैं। सदाशिव, ईश्वर और शुद्ध विद्यातत्व 'सकल' 'निःकल' हैं । उसमें से सकलका बीज अंकुरित होता हुआ दिखाई पड़ता है । वादमें 'माया' का प्रादुर्भाव हुआ । 'माया' से द्वैत सृष्टिका निर्माण हुआ । मायाका अर्थ मूल चित् शक्तिकी विमर्शा शक्ति, अथवा आवरण शक्ति है । मायामें नूतन वस्तु, अथवा तत्वको निर्माण करनेकी शक्ति नहीं. होती। किन्तु वह तत्व को प्रावृत्तकर, तत्वपर आवरण डालकर, देखनेवालेके ज्ञान___ का संकोच करती है, अर्थात् उसका काम वही है जो अन्धकार का होता है । माया के विषयमें कहा है, "स्वरूपावरणे यस्याः शक्तयः सततोत्थिताः।" वह सतत चित् शक्तिका रूप ढकनेका काम करती है । मायाके साथ और पांच तत्व हैं । वह मायाकी सहायता करते हैं । तत्वोंको 'कंचुकी' कहते हैं, यह पांच तत्व हैं, (१), कला,(२) काल, (३) नियति, (४) राग, (५)विद्या । 'कला' शक्तिशाली होती है । 'काल' अनुभवका परिच्छेद करता है । 'नियति' स्वातंत्र्य हरण करती है। उसका नियमन करती है । 'राग' अशक्ति निर्माण करता हैं । 'विद्या' अल्पज्ञान देनेवाली होती है । इनके बाद "पुरुष" तत्व है । वह व्यक्तित्व, भोक्तत्व तथा 'मैं' इस संकुचित भावकी नींव है। 'माया' 'कला' 'काल' 'नियति' 'राग' 'पुरुष' ये सात तत्व शुद्ध-अशुद्ध हैं । अथवा विद्यातत्व हैं । इसके बाद सांख्यके प्रसिद्ध २४ तत्व आते हैं। उसमें प्रकृति, महत् अथवा बुद्धि, अहंकार, मन, पंच ज्ञानेंद्रिय, पंचकर्मेंद्रिय,. पंचतन्मात्राएं तथा पंच महाभूत यह तत्व हैं। यह सब सकल हैं। यह सब संसार इन्हीं तत्वोंसे बना है। इन सव तत्वोंका एक नक्शा बनाया जाय तो समझने में आसान होगा और एक दृष्टिमें सबकी आँखोंके सामाने आ जाएगा ।
SR No.034103
Book TitleSantoka Vachnamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangnath Ramchandra Diwakar
PublisherSasta Sahitya Mandal
Publication Year1962
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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