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________________ सबके लिए अपना दरवाजा खुला रखा है। आगमकारोंका यह हड़ विश्वास है कि "शिव-दीक्षासे चूद्र भी शिवत्त्व प्राप्त कर सकता है" सूक्ष्मागमकी यह स्पष्ट आना है कि "जिसने शिव-दीक्षा ली है उसकी पूर्वकी जाति, कुल, गोत्र आदिका यत्किचित् भी विचार नहीं करना चाहिए।" (सू० ५० ५ श्लो० ६३-६४) । वीरशैव दीक्षाके बाद सब शिवस्वरूप हैं । लिंग-धारणके पहले उनमें बाह्मण, भवियादि जातियाँ हैं । लिंग धारणके बाद उनमें ब्राह्मण-चांडालका भी भेद नहीं है। वीरशंवमत सर्वातीत मत है। यहाँ स्त्री-पुरुपका भेद भी नहीं है (पा० पल ५ श्लो० ४१) । ___ गुरुपूजा, लिंगपूजा, जंगमपूजा, पादोदक, प्रसाद ग्रहण, विभूति अथवा भस्मधारण, रुद्राक्षधारण तथा मंत्रोच्चार यह वीरशैवोंका अष्टावरण है। इन अप्ठावरणों से युक्त शिवयोगी सब "बी रमहेश्वर" हैं। उनमें किसी प्रकारका भेद-भाव नहीं है । (पा० ५० ७ श्लो० ५३-५५) । इतना ही नहीं, यह भी उनका विश्वास है कि लिंग धारण करनेसे उनमें दिव्यत्व निर्माण होता है । इससे प्टिदोप, स्पर्शदोष आदि नष्ट होते हैं । उनका छोड़ा हुया जूठन भी उच्छिष्ट नहीं है। उन्होंने जिस घालमें खाया है, उसके पोनेने पहले ही उस थालमें दूसरा कोई खा सकता है, आदि भी कहा गया है । (पा०प०३ श्लो०८८ तथा प० ७ श्लो० ५६.५७)। लिंगधारीको जन्म: मरणादिका अशीच भी नहीं लगता ! (पा०प० ७ श्लो० ५४-५५) । उनके लिए सभी नक्षत्र, करण, योग आदि गुभ है । सब निर्मल है। सब मोक्षके सावन है। (नू० प० ७ दलो० दह-१००) । यह गिवागममें लिया गया है कि वह वीरशंत्र साधना-शास्त्र है । उसे "पदस्थल शास्त्र अथवा “पदस्थलसाधना' कहा गया है। इसको सर्व सामान्यतया वीरगव सम्प्रदाय कहते हैं। कन्नड़ वचनकारोंने जहांसे प्रेरणा पायी उन प्राचीन शिवागमोंके विवेचनके बाद तन्नड़ बचनकारोंके साम्प्रदायिक विचारोंका अवलोकन करें। कन्नड़ बचनकारोंने अथवा कन्नड़ शिवागमकारोंने इन्हीं आगमोंका अनुकरण किया है। परकी पंक्तियोंम शिवागमकारोंकी साधना-पद्धतिका संक्षेपमें उतना ही विवेचन किया गया है जितना कन्नड़ वचनकारोंकी उपासना-पद्धतिको समझने के लिए आवश्यक है। बचनकारोंगी बीरगव उपासना-पद्धतिका विवेचन करते समय उनका तत्वज्ञान, इनका माध्य, उा साध्यको प्राप्त करनेकी उनकी साधना, नया बीरगंव भाचार-विचार उस क्रमले विचार करना अच्छा होगा। बनने मेजिन विपयोगा तथा उनके अंग-प्रत्यंगोंका वचनामृतमें उल्लेख किया गया। उनको यहां दुहराने की कोई बावश्यकता नहीं । यहाँ केवल सांप्रदायिक विषयोंगा ही संक्षेप उल्लेग किया जाएगा ।
SR No.034103
Book TitleSantoka Vachnamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangnath Ramchandra Diwakar
PublisherSasta Sahitya Mandal
Publication Year1962
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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