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________________ वचनकारीका सामूहिक व्यक्तित्व और जीवन-परिचय ४५ इस प्रकारके उनके अनेक वचन मिलते हैं। सिद्ध . रामय्याकी भक्ति, उनकी निष्ठा, उनका निश्चित स्पष्टज्ञान, उनकी हृदयंगम वचन शैली, उनकी योगसाधना आदि उनके वचनोंसे फूटे पड़ते हैं। उनके वचनोंमेंसे उनका अनुभव छलकता रहता है। इन सब गुण समुच्चयों के कारण उन्होंने वचनकारोंमें बहुत ही उच्च स्थान पाया हो तो कोई आश्चर्य नहीं है । (६) सिद्धरामय्याकी तरह चन्नवसव भी बसवेश्वरके समकालीन हैं। उनके दाहिने हाथ से हैं । अल्लम प्रभु, बसवेश्वर और चन्नवसव वचनकारोंमें त्रिमूर्तिके नामसे प्रसिद्ध हैं। अल्लंम प्रभुका जीवन यदि वैराग्यका रहस्य-सा है तो वसवेश्वर 'भक्ति भंडारी' कहलाते हैं और चन्नबसव ज्ञानी । चन्नबसव बसवेश्वर के सभी साहसोंके सहायक और साथी ही नहीं, कभी-कभी प्रेरक भी होते थे । बसवेश्वर के लिंगैक्यके वाद शिवशरणोंके दो दल हुए । एक अल्लमप्रभुके साथ श्री शैल गया तो दूसरा चन्नबसवके साथ उलवी । उलवी यल्लापुर तहसीलका एक गांव है। यल्लापुर तहसील कारवार जिले में हैं । चन्नवसवका लिंगैक्य उलवीमें ही हुआ । उनकी मुद्रिका 'कूडल चन्न संगमदेव' इससे लगता है कि वे भी कूडल संगमेश्वरके उपासक थे । इनके कई वचन मिलते हैं। इनमें से अधिकतर वचन वीरशैवों के प्राचारधर्मका निरूपण करनेवाले हैं । वीरशैव संप्रदायके गहरे अध्ययनके लिए इनके वचनोंका अध्ययन पर्याप्त है । इनके वचनोंमें सांप्रदायिक कट्टरता, सांप्रदायिक आग्रह आदि पर्याप्त मात्रामें पाया जाता है। एक वचनमें उन्होंने यहां तक कहा है, "जिसके शरीर पर लिंग नहीं है उसके घरका अन्न (शरणों के लिए) गोमांस सदृश है।" इसमें शक नहीं वचनोंमें इस प्रकारकी. सांप्रदायिकता, कट्टरता अपवादात्मक ही है। किंतु है, इससे इन्कार नहीं किया जा सकता । 'शून्य संपादने' ग्रंथका अष्टमोपदेश 'चन्नबसव संपादने' नामसे प्रसिद्ध है । उसमें कहा है कि उन्हें अस्लम प्रभुने आचार, भक्ति, ज्ञान आदिके विषय में कहा है । इनके और तीन ग्रंथ हैं। उनके नाम हैं, करण हसुगे, मिश्रार्पण, मंत्रगौप्य । अल्लम प्रभु, वसवेश्वर, मोलिगये मारय्य आदि वचनकारोंने इनके गुणोंकी विशेषकर ज्ञानकी वहुत प्रशंसा की है। अल्लम प्रभुने इन्हें सत्य-सेवी संशय-रहित, निर्मल, घन शिवयोगी कहा है। बसवेश्वरने "इसने मेरा भ्रांतिजाल खोला है। इसके कारण मैं संग बसवण्ण कहलाया, "कहकर उनका बड़प्पन गाया है । गोल र सिद्धवीरणार्यने अन्य अनेक वचनकारोंके विषय में जैसा अपना मत दिया है वैसा ही चन्न वसवके विषयमें मत दिया है। वे कहते हैं, "यह सावधान ज्ञानी है।" मोलिगेय मारय्याने वसवेश्वरको भी कहीं-कहीं 'सकाम भक्त' कहा है, किंतु चन्न वसवके विषयमें "फल-पद विरहित
SR No.034103
Book TitleSantoka Vachnamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangnath Ramchandra Diwakar
PublisherSasta Sahitya Mandal
Publication Year1962
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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