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________________ लिंग-भेदादिको निर्दयतापूर्वक उखाड़ फेंकनेका प्रयास करते हैं। काम-प्रतिष्ठाके इतने अधिक कायल होगये थे कि उनके जीवनका श्रादश- कार्षक हो। कैलास"-सा हो गया था। उनमेंसे कुछ चिन्तनशील तो कुछ कर्तृत्वशाली हैं, किन्तु ये सब हैं आध्यात्मिक अनुभवसे पूर्ण । ___ लगभग ये सभी वीर-शैव-साधना परम्पराके हैं, और यह स्वाभाविक । भी है कि इनके वचन अधिकतर शिवागमान्तर्गत शैव-शब्द-प्रणालीमें हैं, किन्तु जब कभी ये योग, योगके अनुभव तथा अपनी आत्मानुभूति आदिके विषयमें बोलते हैं, उस समयकी इनकी भाषा जन-सामान्यकी होती है। ऐसे अवसरोंपर ये वचनकार उपनिषदोंकी भाषामें अपने विचार व्यक्त करते हैं, सम्पूर्ण विश्वके अनुभावियोंके हृदयके गवाक्ष-से हो जाते हैं । ___मुझे आशा है, सच्चे ज्ञानार्थी तथा वे सब लोग इस सराहनीय प्रयासका स्वागत करेंगे, जो भारतके विविध भाषा-भाषी लोगों द्वारा भारतीय जीवनंसंस्कृतिमें दिये गए योगदानका पारस्परिक समन्वय करके राष्ट्रीय भावक्यकी स्थापना करना चाहते हैं । -रंगनाथ रामचन्द्र दिवाकर
SR No.034103
Book TitleSantoka Vachnamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangnath Ramchandra Diwakar
PublisherSasta Sahitya Mandal
Publication Year1962
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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