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________________ षट्स्थल शास्त्र और वीर-शैव संप्रदाय . २६१ भविसंग न करनेवाला, भविपावक स्पर्श, परस्त्री संग न करनेवाला, परधन न चाहनेवाला, असत्य न बोलनेवाला, तामस भक्तोंका संग न करनेवाला, गुरुलिंग जंगमोंको अर्थ, प्राण, अभिमानादि समर्पण करके प्रसाद सेवन करनेवाला, प्रसाद निदा न सुननेवाला, दूसरोंकी आशा न रखनेवाला, पात्र सत्पात्रका विचार न करनेवाला, चतुर्विध पदवीके योग्य, षड्विकारोंसे न 'मुकनेवाला, कुलादि अभिमानसे मुक्त, द्वैताद्वैतमें मौन, संकल्प विकल्प रहित, -स्थल.कालोचित जाननेवाला, क्रमशः षट्स्थल पूर्ण, सर्वांग लिंग, दासोह संपन्न, इस प्रकार वावन विद्यासे निपुण होकर जी रहा है हमारा बसवण्ण उसके श्रीचरणोंमें अहोरात्र नमो नमो कहकर जी रही हूं चन्नमल्लिकार्जुना । टिप्पणी:-श्री बसवेश्वर षड्स्थलाधीश है। वीरशैवाग्रणी । उनका आदर्श सामने रहते हुए भला दूसरा वर्णन क्यों देखें ?
SR No.034103
Book TitleSantoka Vachnamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangnath Ramchandra Diwakar
PublisherSasta Sahitya Mandal
Publication Year1962
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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