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________________ उपसहार प्रत्येक अध्यायमें विषयानुसार वचनोंका संकलन किया है । अर्थात् व्यक्तिगत तथा सामूहिक आध्यात्मिक जीवनका उच्चतम साध्य और उसकी साधनाकी दृष्टिसे आवश्यक सभी अंग-प्रत्यंगोंका विवेचन करनेवाले वचनोंका संकलन -संक्षेपमें किया है । प्राध्यात्मिक जीवन का अर्थ है मनुष्य का आंतरिक जीवन । आत्मा, परमात्मा और विश्व में क्या सम्बन्ध हैं ? और वह कैसे होने चाहिये ? उनके लिए मनुष्यको क्या-क्या करना चाहिये ? उसके आचार-विचार वया हैं ? तथा उसके अनुभव क्या हैं ? यह सब आध्यात्मिक जीवनकी समस्याएं हैं ! संतोंने इन समस्यायोंको अपने जीवन में सुलझाया है। उन्होंने जिस ढंगसे, 'जिस पद्धतिसे इन समस्याओंको सुलझाया है उसको सुन्दर शब्दोंमें कहा भी है। संतोंका यह कथन आध्यात्मिक जीवनका निचोड़ है । आध्यात्मिक जीवनके जो साधक सदियोंसे जीवनके इन पहलुप्रोंपर चिन्तन और प्रयोग करते आए हैं, खोज करते आए हैं, उनका अनुभव है कि मनुष्य तभी शाश्वत सुख पा सकता है जब वह आत्याँतिक सत्यका साक्षात्कार करता है। अर्थात अध्यात्म-शास्त्र साक्षात्कारजन्य शाश्वत सुख-शास्त्र है । वचनकारोंने यही कहा है । वह उस सुखका बखान करते नहीं अघाते । उनका यह दृढ़ विश्वास है कि साक्षात्कार ही जीवनका एकमात्र उद्देश्य है, वही जीवनका अन्तिम साध्य है और वह हर कोई प्राप्त कर सकता है । वचनकारोंने अपने विश्वासके अनुसार व्यक्तिगत और सामूहिक रूपसे साधना की, वैसा जीवन विताया और अपने अमृतानुभवोंको अंकित करके रखा। उसीको आज वचन साहित्य अथवा वचन शास्त्र कहते हैं। वचन-साहित्यके संदेश में कोई गूढ़ता नहीं है। उसमें समझमें न आये ऐसा शब्द-जाल नहीं है, तथा उसके पास कोई फटके भी नहीं ऐसी काँटों की बाड़ भी नहीं है। जिसको इस विषयकी रुचि है, जो यह जानना चाहता है उसके 'लिए वचनकारोंने सरल-सुलभ शैलीमें गुह्यात् गुह्यतम ज्ञान खोलकर रखा है। जिसमें धर्मकी जिज्ञासा है, मोक्षकी इच्छा है, शुद्ध-सात्विक जीवन बितानेकी आकांक्षा है, उसके लिए वचन-साहित्य पथ्यकर है । अमृतान्न-सा है । वचनकारोंका यह जीवन-संदेश प्राश्वासन देने वाला है । उत्साह-प्रद और अानन्द-दायक है । उपनिषद्कारोंने जिस ज्ञानके अनुभवसे "अमृतत्वं हि 'विंदते" कहा है वही ज्ञान शिव-शरणोंने वचन-साहित्यमें कहा है। उपनिषद्में याज्ञवल्कने जिस ज्ञान के लिए "अभयं वै प्राप्तोऽसि" कहा है वह यही ज्ञान है । यह ज्ञान सत्य ज्ञान है। यह ज्ञान सदा अानन्दमय है। यह ज्ञान शाश्वत सुख देने वाला है । इसलिए अमृतमय है। इसी ज्ञानके लिए उपनिषद्कारोंने "अानन्दरूपममृतं यद् विभाति” कहा है । अर्थात् वचन-साहित्यका संदेश
SR No.034103
Book TitleSantoka Vachnamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangnath Ramchandra Diwakar
PublisherSasta Sahitya Mandal
Publication Year1962
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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