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________________ साक्षात्कार कर भी निर्गमनीकी तरह रहे। वोलकर भी मौन रहे। अपने आपमें लिप्त होकर भी अलिप्त रहे । क्योंकि वह निरपेक्ष थे । निष्काम थे । वह जीवन भर कर्म करते रहे.किंतु निराभार होकर। कामका बोझ उन्होंने नहीं ढोयो । जीवनभर वह जले किंतु कपूरकी तरह जले । चिमटीभर राख भी नहीं रही । उन्हींके शब्दोंमें कहना हो तो वह आकाशमेंसे उदय होनेवाले इंद्रधनुषका उसी आकाशमें विलीन होनेकी भांति, हवामेंसे उद्भूत होनेवाले बवंडरका उसी हवामें विलीन होनेकी भांति, जहांसे निकले थे वहीं विलीन हो गये । जैसे पूजाके लिए पुजापा लेकर आया हुआ पुजारी स्वयं पूज्य हो जाता है ।
SR No.034103
Book TitleSantoka Vachnamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangnath Ramchandra Diwakar
PublisherSasta Sahitya Mandal
Publication Year1962
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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