SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 126
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११३ था । महावीरका जैन धर्म प्रचलित था । तथा झरतुष्ट्रका धर्म प्रचलित था । सच पूछा जाए तो ये तीनों धर्म वैदिक धर्मसे घनिष्ठ रूपसे संबंधित हैं | तीन धर्मोमेंसे जैन धर्म केवल भारत में प्रचलित था । बौद्ध धर्म वर्मा, चीन, जापान, कोरिया आदि देशों में पहुँच चुका था और झरतुष्ट्रका ( ज़रदुश्त) धर्म ईरान में । इसके अलावा खाल्डिया, मिस्र श्रादि देशों में यहूदी धर्म प्रचलित था । इसके वादके धर्मों में मुस्लिम धर्म अत्यंत प्रबल धर्मो में एक वना । इन सब धर्मो के साक्षात्कार मार्गका अवलोकन किया जाए तो अनेकानेक ग्रंथोंकी सामग्री मिल सकती है । ईसाके पूर्वके दर्शनकारोंमें प्लेटोका नाम ही अत्यंत महत्वका है । वही उस कालका महान् दार्शनिक कहलाता है । उन्होंने लिखा है, " ग्रात्म-साक्षात्कार अवर्णनीय होता है । इसलिए मैं उसके विषय में कुछ भी नहीं लिखता । यदि आत्म-साक्षात्कार के विषय में लिखना संभव होता तो मैं जीवनभर वही लिखता ।" उसके बाद प्लोटीनसका नाम ले सकते हैं । उसका काल ई० स० की तीसरी सदीका माना गया है । उस समय इसाई धर्म बाल्यावस्था में था । प्लोटीनस पर इसाई धर्मका कोई प्रभाव नहीं दीखता । इसके ग्रंथ में साक्षात्कारका वर्णन प्लेटोसे अधिक है । इन्होंने समाधि-स्थितिका वर्णन किया है, जैसे तैतरीय उपनिषद् में कर्तकी - ने किया है, अथवा याज्ञवल्कने । वाइबिलका Old Testament देखा जाए तो उसके कई परिच्छेद देखकर ऐसा लगता है कि वह मोसेस ग्रादि यहूदी साक्षात्कारियोंने लिखे होंगे | ईसा के विषयमें पूछना ही क्या है ? वह अपने श्रात्मप्रकाशमें ही जीवन-यापन करता था । उसका जीवन तो साक्षात्कारका प्रात्यक्षिक-सा था । उनके शिष्यों में सेंट जॉन, सेंट पॉल, सेंट थ्रॉगस्टाइन, डायोनिसस् आदि कई नाम गिनाये जा सकते हैं । किंतु विश्वके इन सब साक्षात्कारियोंसे इस पुस्तकके विषयका कोई संबंध नहीं है । यहां तो कन्नड़ वचनकारोंके साक्षात्कारका प्रश्न है । इसके लिए वचनामृतका पांचवां, छठा तथा सातवां श्रध्याय देखना पर्याप्त होगा । वस्तुतः जीवन्मुक्त श्रोर साक्षात्कारीमें कोई अंतर नहीं है । साक्षात्कार मानव कुलकी संपत्ति है । वह तो प्रत्येक मनुष्यकी श्राकांक्षा है | मानवमात्रका स्वप्न है । प्रत्येक युग में, प्रत्येक भाषा - कुलके लोगोंने साक्षात्कार किया है । यहां केवल वचनकारोंके साक्षात्कारका संबंध है । उसी विषय में यहां लिखना है । विश्वके अन्य अनेक साक्षात्कारियोंमें वचनकारोंका स्थान- मान ढूंढ़ना है । इसी बहाने सब संतोंका पुण्य स्मरण हुआ । सबके स्मररण से सबके प्रति कृतज्ञता व्यक्त हुई । अपने हृदयको सांत्वना मिली । वचनामृतके पांचवें अध्याय में मुख्यतः साक्षात्कारी की आंतरिक स्थितिका वर्णन किया गया है। प्रोर सातवें अध्याय में जिनसे उनके लोक व्यवहारकी कल्पना हो सके, ऐसे वचनों का संकलन किया गया है । साक्षात्कारकी स्थिति स्थिर साक्षात्कार
SR No.034103
Book TitleSantoka Vachnamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangnath Ramchandra Diwakar
PublisherSasta Sahitya Mandal
Publication Year1962
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy