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________________ ९७४ • अयस्व हषीकेशं यदीच्छसि पर पदम् . - [संक्षिप्त पयपुराण देवताओकी दृष्टि में वे साक्षात् श्रीहरि थे और ग्वाल-बाल कंसके ऊँचे महलपर चढ़ गये। फिर भगवान् श्रीकृष्णने उन्हें अपना प्यारा सखा ही समझते थे। इस प्रकार उन कंसके मस्तकमें थप्पड़ मारकर उसे छतसे नीचे गिरा सर्वव्यापक भगवान् विष्णुको वहाँक लोगोंने अपने- दिया। पृथ्वीपर गिरते ही उसका सारा अङ्ग छिन्न-भिन्न अपने भावोंके अनुसार अनेक रूपोंमें देखा। वसुदेव, हो गया और वह प्राणोंसे हाथ धो बैठा। फिर श्रेष्ठ अक्रूर और परम बुद्धिमान् नन्द दूसरे कोठेपर चढ़कर ब्राह्मणोंके द्वारा कंसका औज़दैहिक संस्कार कराया। वहाँका महान् युद्ध देख रहे थे। देवकी अन्तःपुरकी श्रीकृष्णके द्वारा कंसके मारे जानेपर महाबली त्रियोंके साथ बैठकर बेटेका मुँह निहार रही थीं। उस बलरामजीने भी कंसके छोटे भाई सुनामाको मुक्केसे ही समय उनके नेत्रोमे आँसू भर आये थे। मार डाला और उसे उठाकर धरतीपर फेंक दिया। स्त्रियोंने उन्हें बहुत समझाया और आश्वासन दिया। इस प्रकार श्रीकृष्ण और बलरामजी भाईसहित तब वे किसी दूसरे भवनमें चली गयौं । तदनन्तर विमान- दुरात्मा कंसको मारकर अपने माता-पिताके समीप आये पर बैठे हुए देवता आकाशमें जय-जयकार करते हुए और बड़ी भक्तिके साथ उन्होंने उनके चरणोंमें प्रणाम कमलनयन भगवान् अच्युतकी स्तुति करने लगे। वे जोर- किया। देवकी और वसुदेवने बड़े प्रेमसे उन दोनोंको जोरसे कहते थे—'भगवन् ! कंसका वध कीजिये।' बारबार छातीसे लगाया और पुत्र-नेहसे द्रवित हो उनका . इसी समय रंगभूमिमें तुरही आदि बाजे बज उठे। मस्तक सूंघा । देवकीके दोनों स्तनोंसे उनके ऊपर दूधको कंसके दोनों महामल्लों और महाबली श्रीकृष्ण एवं वृष्टि होने लगी। तत्पश्चात् बलराम और श्रीकृष्ण माताबलराममे भिड़त हो गयी। चाणूरके साथ भगवान् पिताको आश्वासन दे बाहर आये। इसी समय आकाशमे श्रीकृष्ण और मुष्टिकके साथ बलरामजी भिड़ गये। देवताओंकी दुन्दुभियाँ बज उठीं। देवेश्वरगण फूलोंकी नीलगिरि तथा श्वेतगिरिके समान कात्तिवाले दोनों वर्षा करने लगे। तथा मरुद्रणोंके साथ श्रीजनार्दनको महात्मा मल्लयुद्धकी रीति-नीतिके अनुसार लड़ने लगे। नमस्कार और उनकी स्तुति करके हर्षमान हो अपने-अपने वे एक दूसरेको कभी मुक्कोसे मारते और कभी ताल लोकको चले गये। तत्पश्चात् भगवान् श्रीकृष्णने ठोकते थे। उनमे बड़ा भयंकर संग्राम हुआ, जो बलरामजीके साथ जाकर नन्दरायजी तथा अन्य बड़े-बूढ़े देवताओंको भी भयभीत कर देनेवाला था। भगवान् गोपोंको नमस्कार किया। धर्मात्मा नन्दने बड़े नेहसे उन श्रीकृष्णने चाणूरके साथ बहुत देरतक खेल करके उसके दोनोंको गले लगा लिया। फिर भगवान् जनार्दनने उन शरीरको रगड़ डाला और फिर लौलापूर्वक पृथ्वीपर दे सबको बहुत-से रत्न और धन भेट किये । नाना प्रकारके मारा। देवताओं और दानवोंको भी दुःख देनेवाला वह वस्त्र, आभूषण तथा प्रचुर धन-धान्य देकर उन सबका महामल्ल बहुत रक्त वमन करते हुए पृथ्वीपर गिरा और पूजन किया। इस प्रकार श्रीकृष्णके विदा करनेपर नन्द मर गया। इसी प्रकार पराक्रमी बलरामजी भी मुष्टिकके आदि गोप हर्ष और शोकमें डूबे हुए वहाँसे व्रजमे लौट साथ देरतक लड़ते रहे। अन्तमें उन्होंने उसकी छातीमें गये। इसके बाद बलराम और श्रीकृष्णने अपने नाना कई मुक्के जड़ दिये। इससे उसकी हड्डियाँ चूर-चूर हो उग्रसेनजीके पास जाकर उन्हें बन्धनसे मुक्त किया और गयीं और सायु-बन्धन टूट गया। फिर तो वह भी बारंबार सान्त्वना दे मथुराके राज्यपर उनका अभिषेक कर प्राणहीन होकर पृथ्वीपर गिर पड़ा । उन दोनों भाइयोंका दिया। अक्रूर आदि जितने श्रेष्ठ यदुवंशी थे, उन सबको यह पराक्रम देख बाकी सारे पहलवान भाग गये। यह राज्यमें विशेष पदपर स्थापित किया और उग्रसेनको राजा देखकर कसको बड़ा भय हुआ। वह वेदनासे व्याकुल बनाकर परम धर्मात्मा भगवान् वासुदेव धर्मपूर्वक इस हो उठा। इसी बीचमें दुर्धर्ष वीर बलराम और श्रीकृष्ण पृथ्वीका पालन करने लगे।
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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