SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 927
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उत्तरखण्ड ] ****** • श्रीविष्णु और लक्ष्मीके स्वरूप, गुण, धाम एवं विभूतियों का वर्णन ★ श्रीविष्णु और लक्ष्मीके स्वरूप, गुण, धाम एवं विभूतियोंका वर्णन दासभावका प्रतिपादन होता है। ब्रह्मा आदि सम्पूर्ण समझकर पीछे मन्त्रका प्रयोग करना चाहिये। मन्त्रार्थको जगत् भगवान्‌का दास ही है। पहले इस अर्थको न जाननेसे सिद्धि नहीं प्राप्त होती । - पार्वतीजी बोलीं- देवेश्वर ! आप मन्त्रोंके अर्थ और पदोंकी महिमाको विस्तारके साथ बतलाइये। साथ ही ईश्वरके स्वरूप, गुण, विभूति, श्रीविष्णुके परम धाम तथा व्यूह भेदोंका भी यथार्थरूपसे वर्णन कीजिये । महादेवजीने कहा-देवि ! सुनो-मैं परमात्माके स्वरूप, विभूति, गुण तथा अवस्थाओंका वर्णन करता हूँ। भगवान्के हाथ, पैर और नेत्र सम्पूर्ण विश्व व्याप्त हैं। समस्त भुवन और श्रेष्ठ धाम भगवान्‌में ही स्थित हैं। वे महर्षियोंका मन अपनेमें स्थिर करके विराजमान हैं। उनका स्वरूप विशाल एवं व्यापक है। वे लक्ष्मीके पति और पुरुषोत्तम हैं। उनका लावण्य करोड़ों कामदेवोंके समान है। वे नित्य तरुण किशोरविग्रह धारण करके जगदीश्वरी भगवती लक्ष्मीजीके साथ परमपद — वैकुण्ठधाममें विराजते हैं। वह परम धाम ही परमव्योम कहलाता है। परमव्योम ऐश्वर्यका उपभोग करनेके लिये है और यह सम्पूर्ण जगत् लीला करनेके लिये। इस प्रकार भोगभूमि और क्रीड़ाभूमिके रूपमें श्रीविष्णुकी दो विभूतियाँ स्थित हैं। जब वे लीलाका उपसंहार करते हैं, तब भोगभूमिमें उनकी नित्य स्थिति होती है। भोग और लीला दोनोंको वे अपनी शक्तिसे ही धारण करते हैं। भोगभूमि या परमधाम त्रिपाद - विभूतिसे व्याप्त है। अर्थात् भगवद्विभूतिके तीन अंशोंमें उसकी स्थिति है और इस लोकमें जो कुछ भी है, वह भगवान्‌की पाद विभूतिके अन्तर्गत है। परमात्माकी त्रिपाद विभूति नित्य और पाद विभूति अनित्य है। परमधाममें भगवान्‌का जो शुभ विग्रह विराजमान है, वह नित्य है। वह कभी अपनी महिमासे च्युत नहीं होता, उसे सनातन एवं दिव्य माना गया है। वह सदा तरुणावस्थासे सुशोभित रहता है। वहाँ भगवान्‌को भगवती श्रीदेवी और भूदेवीके साथ नित्य संभोग प्राप्त है। जगन्माता १२७ — ****** लक्ष्मी भी नित्यरूपा हैं। वे श्रीविष्णुसे कभी पृथक् नहीं होतीं। जैसे भगवान् विष्णु सर्वत्र व्याप्त हैं, उसी प्रकार भगवती लक्ष्मी भी हैं। पार्वती ! श्रीविष्णुपत्नी रमा सम्पूर्ण जगत्की अधीश्वरी और नित्य कल्याणमयी हैं। उनके भी हाथ, पैर, नेत्र, मस्तक और मुख सब ओर व्याप्त हैं। वे भगवान् नारायणकी शक्ति, सम्पूर्ण जगत्की माता और सबको आश्रय प्रदान करनेवाली हैं। स्थावरजङ्गमरूप सारा जगत् उनके कृपा-कटाक्षपर ही निर्भर है। विश्वका पालन और संहार उनके नेत्रोंके खुलने और बंद होनेसे ही हुआ करते हैं। वे महालक्ष्मी सबकी आदिभूता, त्रिगुणमयी और परमेश्वरी हैं। व्यक्त और अव्यक्त भेदसे उनके दो रूप हैं। वे उन दोनों रूपोंसे सम्पूर्ण विश्वको व्याप्त करके स्थित हैं। जल आदि रसके रूपसे वे ही लीलामय देह धारण करके प्रकट होती हैं। लक्ष्मीरूपमें आकर वे धन प्रदान करनेकी अधिकारिणी होती हैं। ऐसे स्वरूपवाली लक्ष्मीदेवी श्रीहरिके आश्रयमें रहती हैं। सम्पूर्ण वेद तथा उनके द्वारा जाननेयोग्य जितनी वस्तुएँ हैं, वे सब श्रीलक्ष्मीके ही स्वरूप हैं। स्त्रीरूपमें जो कुछ भी उपलब्ध होता है, वह सब लक्ष्मीका ही विग्रह कहलाता है। स्त्रियोंमें जो सौन्दर्य, शील, सदाचार और सौभाग्य स्थित है, वह सब लक्ष्मीका ही रूप है। पार्वती भगवती लक्ष्मी समस्त स्त्रियोंकी शिरोमणि हैं, जिनकी कृपा कटाक्षके पड़नेमात्रसे ब्रह्मा, शिव, देवराज इन्द्र, चन्द्रमा, सूर्य, कुबेर, यमराज तथा अग्निदेव प्रचुर ऐश्वर्य प्राप्त करते हैं। उनके नाम इस प्रकार है-लक्ष्मी, श्री, कमला, विद्या, माता, विष्णुप्रिया सती, पद्मालया पद्महस्ता, पद्माक्षी पद्मसुन्दरी, भूतेश्वरी, नित्या, सत्या, सर्वगता, शुभा, विष्णुपत्नी, महादेवी, क्षीरोदतनया (क्षीरसागरकी कन्या), रमा, अनन्तलोकनाभि (अनन्त लोकोंकी
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy