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________________ उत्तरखण्ड • सनातन मोक्षमार्ग और मन्त्रदीक्षाका वर्णन • कभी नहीं खुजलाया, कीचड़में फंसी हुई गौको, जो कहा थागोलोकमें सुख देनेवाली होती है, मैंने कभी नहीं माघे निमन्नाः सलिले सुशीतेसा निकाला । याचकोको उनकी मुंहमांगी वस्तुएँ देकर कभी विमुक्तपापाखिदिवं प्रयान्ति ॥ सन्तुष्ट नहीं किया। भगवान् विष्णुको पूजाके लिये कभी (२३८1७८) तुलसीका वृक्ष नहीं लगाया। शालग्रामशिलाके तीर्थभूत माघ मासमें शीतल जलके भीतर डुबकी लगानेचरणामृतको न तो कभी पीया और न मस्तकपर ही वाले मनुष्य पापमुक्त हो स्वर्गलोकमें जाते हैं।' चढ़ाया। एक भी पुण्यमयी एकादशी तिथिको उपवास पुराणमेसे मैंने इस श्लोकको सुना है। यह बहुत ही नहीं किया। शिवलोक प्रदान करनेवाली शिवरात्रिका भी प्रामाणिक है; अतः इसके अनुसार मुझे माघका स्रान व्रत नहीं किया। वेद, शास्त्र, धन, स्त्री, पुत्र, खेत और करना ही चाहिये। अटारी आदि वस्तुएँ इस लोकसे जाते समय मेरे साथ मन-ही-मन ऐसा निश्चय करके सुव्रतने अपने नहीं जायेंगी। अब तो मैं बिलकुल असमर्थ हो गया; मनको सुस्थिर किया और नौ दिनोंतक नर्मदाके जलमें अतः कोई उद्योग भी नहीं कर सकूँगा । क्या करूँ, कहाँ माघ मासका नान किया। उसके बाद स्नान करनेकी भी जाऊँ। हाय ! मुझपर बड़ा भारी कष्ट आ पड़ा । मेरे पास शक्ति नहीं रह गयी। वे दसवें दिन किसी तरह परलोकका राहखर्च भी नहीं है।' या नर्मदाजीमें गये और विधिपूर्वक स्नान करके तटपर - इस प्रकार व्याकुलचित्त होकर सुव्रतने मन-ही-मन आये। उस समय शीतसे पीड़ित होकर उन्होंने प्राण विचार किया-'अहो ! मेरी समझमें आ गया, आ त्याग दिया। उसी समय मेरुगिरिके समान तेजस्वी गया, आ गया। मैं धन कमानेके लिये उत्तम देश विमान आया और माघस्रानके प्रभावसे सुव्रत उसपर काश्मीरको जा रहा था। मार्गमें भागीरथी गङ्गाके तटपर आरूढ़ हो स्वर्गलोकको चले गये। वहाँ एक मन्वन्तरमुझे कुछ ब्राह्मण दिखायी दिये, जो वेदोंके पारगामी तक निवास करके वे पुनः इस पृथ्वीपर ब्राह्मण हुए। विद्वान् थे। वे प्रातःकाल माघस्नान करके बैठे थे। वहाँ फिर प्रयागमें माघस्रान करके उन्होंने ब्रह्मलोक किसी पौराणिक विद्वान्ने उस समय यह आधा श्लोक प्राप्त किया। सनातन मोक्षमार्ग और मन्त्रदीक्षाका वर्णन - राजा दिलीपने पूछा-भगवन् ! आपने महाभाग ! यह हमें बताइये, हमारे ऊपर कृपा कीजिये।' वर्णाश्रमधर्म तथा नित्य-नैमित्तिक कोसहित सम्पूर्ण नारदजीने कहा-महर्षियो! पूर्वकालमें धर्मोका वर्णन किया। अब मैं सनातन मोक्ष-मार्गका सनकादि योगियोंने एकान्तमें बैठे हुए ब्रह्माजीसे परम वर्णन सुनना चाहता हूँ। आप उसे सुनानेकी कृपा करें। दुर्लभ मोक्ष-मार्गके विषयमें प्रश्न किया। सम्पूर्ण मन्त्रों कौन-सा ऐसा मन्त्र है, जो संसाररूपी तब ब्रह्माजीने कहा-सम्पूर्ण योगीजन परम रोगको एकमात्र औषध हो? सब देवताओमें कौन मोक्ष उत्तम मोक्ष-मार्गका वर्णन सुनें । बड़े सौभाग्यकी बात है प्रदान करनेवाला श्रेष्ठ देवता है ? यह सब बताइये। कि आज मैं इस अद्भुत रहस्यका वर्णन करूंगा। समस्त - वसिष्ठजी बोले-राजन् ! प्राचीन कालकी बात देवता और तपस्वी ऋषि भी इस रहस्यको नहीं जानते। है-यज्ञ और दानमें लगे रहनेवाले सम्पूर्ण महर्षियोंने सृष्टिके आदिमें अविनाशी भगवान् नारायण मुझपर ब्रह्माजीके पुत्र मुनिश्रेष्ठ नारदजीसे प्रश्न किया- प्रसन्न हुए। उस समय मैंने उन पुराणपुरुषोत्तमसे 'भगवन् ! हम किस मन्त्रसे परमपदको प्राप्त होंगे? पूछा-'भगवन् ! किस मन्त्रसे मनुष्योंका इस संसारसे
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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