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________________ उत्तरखण्ड ] . माघ मासके स्नानसे सुव्रतको दिव्यलोककी प्राप्ति . ............................................. भोजन कराना चाहिये। जाड़ेका कष्ट दूर करनेके लिये प्राप्तिके लिये भगवान् माधवकी पूजा करे । माघ मासमें बोझ-के-बोझ सूखे काठ दान करे। रूईभरा अंगा, डुबकी लगानेसे सारे दोष नष्ट हो जाते हैं और अनेकों शय्या, गद्दा, यज्ञोपवीत, लाल वस्त्र, रूईदार रजाई, जन्मोंके उपार्जित सम्पूर्ण महापाप तत्काल विलीन हो जायफल, लौंग, बहुत-से पान, विचित्र-विचित्र जाते हैं। यह माघस्नान ही मङ्गलका साधन है, यही कम्बल, हवासे बचानेवाले गृह, मुलायम जूते और वास्तवमें धनका उपार्जन है तथा यही इस जीवनका फल सुगन्धित उबटन दान करे। माषनानपूर्वक घी, कम्बल, है। भला, माघस्नान, मनुष्योंका कौन-कौन-सा कार्य पूजनसामग्री, काला अगर, धूप, मोटी बत्तीवाले दीप नहीं सिद्ध करता? वह पुत्र, मित्र, कलत्र, राज्य, स्वर्ग और भाँति-भांतिके नैवेधसे माघनानजनित फलकी तथा मोक्षका भी देनेवाला है। माघ मासके स्नानसे सुव्रतको दिव्यलोककी प्राप्ति वसिष्ठजी कहते है-राजन् ! सुनो, मैं तुमसे किया करते थे; उन्होंने चाण्डाल आदिसे भी दान लिया, सुव्रतके चरित्रका वर्णन करता हूँ। यह शुभ प्रसङ्ग कन्या बेची तथा गौ, तिल, चावल, रस और तेलका भी श्रोताओंके समस्त पापोंको तत्काल हर लेनेवाला है। विक्रय किया। वे दूसरोंके लिये तीर्थमें जाते, दक्षिणा नर्मदाके रमणीय तटपर एक बहुत बड़ा अग्रहार- लेकर देवताको पूजा करते, वेतन लेकर पढ़ाते और ब्राह्मणोंको दानमें मिला हुआ गाँव था। वह लोगोंमें दूसरोंके घर खाते थे; इतना ही नहीं, वे नमक, पानी, अकलङ्क नामसे विख्यात था, उसमें वेदोंके ज्ञाता और दूध, दही और पक्वान भी बेचा करते थे। इस तरह धर्मात्मा ब्राह्मण निवास करते थे। वह धन-धान्यसे भरा अनेक उपायोंसे उन्होंने यलपूर्वक धन कमाया। धनके था और वेदोंके गम्भीर घोषसे सम्पूर्ण दिशाओंको पीछे उन्होंने नित्य-नैमित्तिक कर्मतक छोड़ दिया था। न मुखरित किये रहता था। उस गाँवमें एक श्रेष्ठ ब्राह्मण थे, खाते थे, न दान करते थे। हमेशा अपना धन गिनते जो सुव्रतके नामसे विख्यात थे। उन्होंने सम्पूर्ण वेदोंका रहते थे कि कब कितना जमा हुआ। इस प्रकार उन्होंने अध्ययन किया था। वेदार्थके वे अच्छे ज्ञाता थे, एक लाख स्वर्णमुद्राएँ उपार्जित कर ली। धनोपार्जनमें धर्मशास्त्रोंके अर्थका भी पूर्ण ज्ञान रखते थे, पुराणोंकी लगे-लगे ही वृद्धावस्था आ गयी और सारा शरीर जर्जर व्याख्या करनेमें वे बड़े कुशल थे। वेदाङ्गोंका अभ्यास हो गया। कालके प्रभावसे समस्त इन्द्रियाँ शिथिल हो करके उन्होंने तर्कशास्त्र, ज्योतिषशास्त्र, गजविद्या, गयीं। अब वे उठने और कहीं आने-जानेमें असमर्थ हो अश्वविद्या, चौसठ कलाएँ, मन्त्रशास्त्र, सांख्यशास्त्र तथा गये। धनोपार्जनका काम बंद हो जानेसे स्त्रीसहित योगशास्त्रका भी अध्ययन किया था। वे अनेक देशोंकी ब्राह्मण देवता बहुत दुःखी हुए। इस प्रकार चिन्ता लिपियाँ और नाना प्रकारकी भाषाएँ जानते थे। यह सब करते-करते जब उनका चित्त बहुत व्याकुल हो गया, कुछ उन्होंने धन कमानेके लिये ही सीखा था तथा तब उनके मनमें सहसा विवेकका प्रादुर्भाव हुआ। लोभसे मोहित होनेके कारण अपने भित्र-भित्र गुरुओंको सुव्रत अपने-आप कहने लगे-मैंने नौच गुरुदक्षिणा भी नहीं दी थी। उपायोंके जानकार तो थे ही, प्रतिग्रहसे, नहीं बेचने योग्य वस्तुओंके बेचनेसे तथा उन्होंने उक्त उपायोंसे बहुत-कुछ धनका उपार्जन किया। तपस्या आदिका भी विक्रय करनेसे यह धन जमा किया उनके मनमें बड़ा लोभ था; इसलिये वे अन्यायसे भी है फिर भी मुझे शान्ति नहीं मिली। मेरी तृष्णा अत्यन्त धन कमाया करते थे। जो वस्तु बेचनेके योग्य नहीं है, दुस्सह है। यह मेरु पर्वतके समान असंख्य सुवर्ण उसको भी बेचते और जंगलकी वस्तुओंका भी विक्रय पानेकी अभिलाषा रखती है। अहो ! मेरा मन महान्
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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