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________________ ९०२ · अर्चयस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् • ऐसे समय में आपके शरीरको छूकर बहनेवाली वायु हमें परम आनन्द प्रदान करती है। धर्मात्मन्! आप कुछ देरतक यहाँ ठहरिये, जिससे हम दुःखी जीवोंको क्षणभर भी तो सुख मिल सके। ब्रह्मन् ! आपके दर्शनसे भी हमें बड़ा सन्तोष होता है। अहो ! हम पापी जीवोंपर भी आपकी कितनी दया है। यमराजने कहा - धर्मके ज्ञाता पुष्कर! तुमने नरक देख लिये। अब जाओ। तुम्हारी पत्नी दुःख और शोकमें डूबकर रो रही है। रक्षा कीजिये । पुष्करके द्वारा उच्चारित भगवान् के नाम सुनकर वहाँ नरकमें पड़े हुए सभी पापी तत्काल उससे छुटकारा पा गये। वे सब बड़ी प्रसन्नताके साथ पुष्करसे बोले'ब्रह्मन्! हम नरकसे मुक्त हो गये। इससे संसारमें आपकी अनुपम कीर्तिका विस्तार हो।' यमराजको भी इस घटनासे बड़ा विस्मय हुआ। वे पुष्करके पास जा प्रसन्नचित्त होकर वरदानके द्वारा उन्हें सन्तुष्ट करने लगे। वे बोले – 'धर्मात्मन् ! तुम पृथ्वीपर जाकर सदा वहीं रहो। तुम्हें और तुम्हारे सुहृदोंको भी मुझसे कोई भय नहीं है जो मनुष्य तुम्हारे माहात्यका प्रतिदिन स्मरण करेगा, उसे मेरी कृपासे अपमृत्युका भय नहीं होगा।' वसिष्ठजी कहते हैं— यमराजके यों कहनेपर पुष्कर पृथ्वीपर लौट आये और यहाँ पूर्ववत् स्वस्थ हो भगवान् मधुसूदनकी पूजा करते हुए रहने लगे। राजन् ! मेरेद्वारा कहे हुए महात्मा पुष्करके इस माहात्म्यको जो सुनता है, उसके सारे पापोंका नाश हो जाता है। भगवान् विष्णुका नाम-कीर्तन करनेसे जिस प्रकार नरकसे भी छुटकारा मिल जाता है, वह प्रसङ्ग मैंने तुम्हें सुना दिया। आदिपुरुष परमात्माके नामोंकी थोड़ी-सी भी स्मृति सञ्चित पापोंकी राशिका तत्काल नाश कर देती हैं, यह बात प्रत्यक्ष देखी गयी है। फिर उन जनार्दनके नामोंका भलीभाँति कीर्तन करनेपर उत्तम फलकी प्राप्ति होगी, इसके लिये तो कहना ही क्या है।* ⭑ मृगशृङ्गका विवाह, विवाहके भेद तथा गृहस्थ आश्रमका धर्म — पुष्कर बोले- भगवन्! जबतक इन दुःखी जीवोंकी आवाज कानोंमें पड़ती है, तबतक कैसे जाऊँ जानेपर भी वहाँ मुझे क्या सुख मिलेगा ? आपके किंकरोंको मार खाकर जो आगके ढेरमें गिर रहे हैं, उन नारकीय जीवोंको यह दिन रातकी पुकार सुनिये। कितने ही जीवोंके मुखसे निकली हुई यह ध्वनि सुनायी देती है— 'हाय ! मुझे बचाओ, मेरी रक्षा करो, रक्षा करो।' समस्त भूतोंके आत्मा और सबके ईश्वर सर्वव्यापी श्रीहरिकी मैं नित्य आराधना करता हूँ। इस सत्यके प्रभावसे नारकीय जीव तत्काल मुक्त हो जायें। भगवान् विष्णु सबमें स्थित हैं और सब कुछ भगवान् विष्णुमें स्थित है। इस सत्यसे नारकीय जीवोंका तुरंत केशसे छुटकारा हो जाय हे कृष्ण ! हे अच्युत ! हे जगन्नाथ ! हे हरे ! हे विष्णो! हे जनार्दन ! यहाँ नरकके भीतर यातनामें पड़े हुए इन सब जीवोंकी - [ संक्षिप्त पद्मपुराण राजा दिलीप बोले—मुने! मेरे प्रश्नोंके उत्तरमें आपने बड़ी विचित्र बात सुनायी। अब संसारके हितके लिये महात्मा मृगशृङ्गके शेष चरित्रका वर्णन कीजिये क्योंकि उनके समान संतपुरुष स्पर्श, बातचीत और दर्शन करनेसे तथा शरणमें जानेसे सारे पापोंका नाश कर डालते हैं। -------- वसिष्ठजी कहते हैं— राजन् ! ब्रह्मचारी मृगशृङ्गने गुरुकुलमें रहकर सम्पूर्ण वेदों और दर्शनोंका यथावत् अध्ययन किया। फिर गुरुकी बतायी हुई दक्षिणा दे, समावर्तनकी विधि पूरी करके शुद्ध चित्त होनेपर उन्हें गुरुने घर जानेकी आज्ञा दी। घर आनेपर कुत्स मुनिके उस पुत्रको उचभ्यने अपनी पुत्री देनेका विचार किया * स्वल्पापि नामस्मृतिरादिपुंसः क्षयं करोत्याहितपापराशेः । प्रत्यक्षतः किं पुनरत्र दृष्टं संकीर्तिते नानि जनार्दनस्य ॥ २२९ ॥ ८३)
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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