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________________ उत्तरखण्ड ] • श्रीमद्भगवद्गीताके पंद्रहवें तथा सोलहवें अध्यायोंका माहात्म्य . KUR 'राजन् ! पूर्वकालमें तुम्हारे यहाँ जो 'सरभ मेरुण्ड' गुजरातमें सौराष्ट्र नामक एक नगर है। वहाँ खड्गबाहु नामक सेनापति था, वह तुम्हें पुत्रोंसहित मारकर स्वयं नामके राजा राज्य करते थे, जो दूसरे इन्द्रके समान प्रतापी थे। उनके एक हाथी था, जो मद बहाया करता और सदा मदसे उन्मत्त रहता था। उस हाथीका नाम अरिमर्दन था। एक दिन रातमें वह हठात् साँकलो और लोहेके खम्भोंको तोड़-फोड़कर बाहर निकला । हाथीवान उसके दोनों ओर अङ्कश लेकर डरा रहे थे, किन्तु क्रोधवश उन सबकी अवहेलना करके उसने अपने रहनेके स्थान-हथिसारको ढहा दिया। उसपर चारो ओरसे भालोकी मार पड़ रही थी। फिर भी हाथीवान ही डरे हुए थे, हाथीको तनिक भी भय नहीं होता था। इस कौतूहलपूर्ण घटनाको सुनकर राजा स्वयं हाथीको मनानेकी कलामें निपुण राजकुमारोंके साथ वहाँ आये। आकर उन्होंने उस बलवान् दैतैले हाथीको देखा। नगरके निवासी अन्य काम-धंधोंकी चिन्ता छोड़ अपने बालकोंको भयसे बचाते हुए बहुत दूर खड़े होकर उस महाभयङ्कर गजराजको देखते रहे। इसी समय कोई ब्राह्मण तालाबसे नहाकर उसी मार्गसे लौटे । वे गीताके राज्य हड़प लेनेको तैयार था। इसी बीचमें हैजेका सोलहवें अध्यायके कुछ श्लोकोंका जप कर रहे थे। शिकार होकर वह मृत्युको प्राप्त हो गया। उसके बाद वह पुरवासियों और पीलवानोंने उन्हें बहुत मना किया; किन्तु उसी पापसे घोड़ा हुआ था। यहाँ कहीं गीताके पंद्रहवे उन्होंने किसीकी न मानी। उन्हें हाथीसे भय नहीं था; अध्यायका आधा श्लोक लिखा मिल गया था, उसे ही इसीलिये वे विचलित नहीं हुए। उधर हाथी अपने तुम बाँचने लगे। उसीको तुम्हारे मुखसे सुनकर वह अश्व फूत्कारसे चारों दिशाओंको व्याप्त करता हुआ लोगोंको स्वर्गको प्राप्त हुआ है। कुचल रहा था। वे ब्राह्मण उसके बहते हुए मदको तदनन्तर राजाके पार्श्ववर्ती सैनिक उन्हें ढूँढ़ते हुए हाथसे छूकर कुशलपूर्वक निकल गये। इससे वहाँ राजा वहाँ आ पहुँचे । उन सबके साथ ब्राह्मणको प्रणाम करके तथा देखनेवाले पुरवासियोंके मनमें इतना विस्मय हुआ राजा प्रसन्नतापूर्वक वहाँसे चले और गीताके पंद्रहवें कि उसका वर्णन नहीं हो सकता। राजाके कमलनेत्र अध्यायके श्लोकाक्षरोंसे अङ्कित उसी पत्रको बाँच- चकित हो उठे थे। उन्होंने ब्राह्मणको बुला सवारीसे बाँचकर प्रसन्न होने लगे। उनके नेत्र हर्षसे खिल उठे उतरकर उन्हें प्रणाम किया और पूछा-'ब्रह्मन् ! आज थे। घर आकर उन्होंने मन्त्रवेत्ता मन्त्रियोंके साथ अपने आपने यह महान् अलौकिक कार्य किया है, क्योंकि इस पुत्र सिंहवलको राज्यसिंहासनपर अभिषिक्त किया और कालके समान भयंकर गजराजके सामनेसे आप स्वयं पंद्रहवें अध्यायके जपसे विशुद्धचित्त होकर मोक्ष सकुशल लौट आये है। प्रभो! आप किस देवताका प्राप्त कर लिया। पूजन तथा किस मन्त्रका जप करते हैं ? बताइये, आपने * श्रीमहादेवजी कहते हैं-पार्वती! अब मैं कौन-सी सिद्धि प्राप्त की है?' गीताके सोलहवें अध्यायका माहात्म्य बताऊँगा, सुनो। ब्राह्मणने कहा-राजन् ! मैं प्रतिदिन गीताके
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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