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________________ उत्तरखण्ड ] . पुण्यात्याओंके संसर्गसे पुण्यको प्राप्तिक प्रसंग धनेश्वर ब्राह्मणको कथा . ७७१ करके यज्ञ तथा देव-पूजनमें लगे थे। कुछ लोग जाते हैं-इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। धनेश्वर पुराणोंका पाठ करते और कुछ लोग सुनते थे। कितने नर्मदाके तटपर नृत्य आदि देखता हुआ घूम रहा था। इतनेमें ही एक काले साँपने उसे काट लिया। वह व्याकुल होकर पृथ्वीपर गिर पड़ा। उसे गिरा देख बहुत-से मनुष्योने दयावश उसको चारों ओरसे घेर लिया और तुलसीमिश्रित जलके द्वारा उसके मुखपर छट देना आरम्भ किया। देहत्यागके पश्चात् धनेश्वरको यमराजके दूतोंने बाँधा और क्रोधपूर्वक कोड़ोंसे पीटते हुए वे उसे संयमनीपुरीको ले गये। चित्रगुप्तने धनेश्वरको देखकर उसे बहुत फटकारा और उसने बचपनसे लेकर मृत्युपर्यन्त जितने दुष्कर्म किये थे, वे सब उन्होंने यमराजको बताये। चित्रगुप्त बोले-प्रभो! बचपनसे लेकर मृत्युपर्यन्त इसका कोई पुण्य नहीं दिखायी देता । यह दुष्ट केवल पापका मूर्तिमान् स्वरूप दीख पड़ता है, अतः इसे कल्पभर नरकमें पकाया जाय। यमराज बोले-प्रेतराज ! केवल पापोंपर ही दृष्टि रखनेवाले इस दुष्टको मुद्गरोंसे पीटते हुए ले जाओ ही भक्त नाच, गान, दान और वाधके द्वारा भगवान् और तुरंत ही कुम्भीपाकमें डाल दो। विष्णुकी स्तुतिमें संलग्न थे। धनेश्वर प्रतिदिन घूम-घूमकर यमराजकी आज्ञा पाकर प्रेतराज पापी धनेश्वरको ले वैष्णवोंके दर्शन, स्पर्श तथा उनसे वार्तालाप करता था। चला । मुद्गरोंकी मारसे उसका मस्तक विदीर्ण हो गया इससे उसे श्रीविष्णुके नाम सुननेका शुभ अवसर प्राप्त था। कुम्भीपाकमें तेलके खौलनेका खलखल शब्द हो होता था। इस प्रकार वह एक मासतक वहाँ टिका रहा। रहा था। प्रेतराजने उसे तुरंत ही उसमें डाल दिया। वह कार्तिक-व्रतके उद्यापनमें भक्त पुरुषोंने जो श्रीहरिके ज्यों ही कुम्भीपाकमें गिरा, त्यो ही उसका तेल ठंडा हो समीप जागरण किया, उसको भी उसने देखा। उसके गया-ठीक उसी तरह, जैसे पूर्वकालमें भक्तप्रवर बाद पूर्णिमाको व्रत करनेवाले मनुष्योंने जो ब्राह्मणों और प्रह्लादको डालनेसे दैत्योंकी जलायी हुई आग बुझ गयी गौओंका पूजन आदि किया तथा दक्षिणा और भोजन थी। यह महान् आश्चर्यकी बात देखकर प्रेतराजको बड़ा आदि दिये, उन सबका भी उसने अवलोकन किया। विस्मय हुआ। उसने बड़े वेगसे आकर यह सारा हाल तत्पश्चात् सूर्यास्तके समय श्रीशङ्करजीकी प्रसन्नताके लिये यमराजको कह सुनाया। प्रेतराजकी कही हुई कौतूहलजो दीपोत्सर्गकी विधि की गयी, उसपर भी धनेश्वरकी पूर्ण बात सुनकर यमने कहा-'आह यह कैसी बात दृष्टि पड़ी। उस तिथिको भगवान् शङ्करने तीनों पुरोंका है!' फिर उसे साथ ले वे उस स्थानपर आये और उस दाह किया था, इसीलिये भक्तपुरुष उस दिन दीपोत्सर्गका घटनापर विचार करने लगे। इतने में ही देवर्षि नारद महान् उत्सव किया करते हैं। जो मुझमें और शिवजीमें हंसते हुए बड़ी उतावलीके साथ वहाँ आये। यमराजने भेद-बुद्धि करता है, उसके सारे पुण्य-कर्म निष्फल हो भलीभांति उनका पूजन किया। उनसे मिलकर देवर्षि
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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