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________________ उत्तरखण्ड ] ---------------- • पवित्रारोपणकी विधि तथा श्रीहरिकी पूजामें आनेवाले पुष्पोंका वर्णन ************ श्रीवासुदेवका तत्त्व जाननेके लिये हम ज्ञान प्राप्त करते हैं, श्रीविष्णुदेवके लिये ध्यान करते हैं, वे देव विष्णु हमारी बुद्धिको प्रेरित करें।' इस मन्त्र से अथवा देवताके नाम-मन्त्र से पवित्रक अर्पण करना चाहिये। इसके बाद भगवान् विष्णुकी महापूजा करे, जिससे सबके आत्मा श्रीविष्णु प्रसन्न होते हैं। चारों ओर विधिपूर्वक दीपमाला जलाकर रखे। भक्ष्य, भोज्य, लेह्य और चोष्य— ये चार प्रकारके अन्न नैवेद्यके लिये प्रस्तुत करे। पूर्वपूजित पवित्रक भगवान्‌को अर्पण कर दे। फिर विशेष भक्तिके साथ श्रीगुरुकी पूजा करे। गुरु महान् देवता हैं, उन्हें वस्त्र और अलङ्कार आदि अर्पण करके विधिपूर्वक पूजन करना उचित है। गुरु पूजनके पश्चात् पवित्रक धारण करे। इसके बाद वहाँ जो वैष्णव उपस्थित हों, उन्हें ताम्बूल आदि देकर अग्रिको पूर्णाहुति अर्पण करे। अन्तमें लक्ष्मीनिवास भगवान् श्रीकृष्णको कर्म समर्पित करे मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं तु केशव । यत्पूजितं मया सम्यक् सम्पूर्ण यातु मे ध्रुवम् ॥ (८८ । ३९) 'हे केशव ! मैने मन्त्र, क्रिया और भक्तिके बिना जो पूजन किया हो, वह भी निश्चय ही परिपूर्ण हो जाय।' तदनन्तर देवताओंका विसर्जन करके वैष्णव ब्राह्मणों तथा इष्ट-बन्धुओंके साथ स्वयं भी शुद्ध अत्र भोजन करे। जो उत्तम द्विज इस दिव्य पूजनके प्रसङ्गको सुनते हैं, वे सब पापोंसे मुक्त हो भगवान् विष्णुके परम पदको प्राप्त होते हैं। इस प्रकार पवित्रारोपण करनेपर इस पृथ्वीपर जितने भी दान और नियम किये जाते हैं, वे सब परिपूर्ण होते हैं। पवित्रारोपणका विधान उत्सवोंका सम्राट् है। इससे ब्रह्महत्यारा भी शुद्ध हो जाता है, इसमें तनिक भी अन्यथा विचार नहीं करना चाहिये। गिरिराजकुमारी! मैंने जो कुछ कहा है, वह सत्य है, सत्य है, सत्य है। पवित्रारोपणमें जो पुण्य है, वही उसके दर्शनमें भी है। महाभागे ! यदि शूद्र भी भक्तिभावसे पवित्रारोपणका विधान पूर्ण कर लें तो वे परम धन्य माने जाते हैं। मैं इस भूतलपर धन्य और कृत-कृत्य हूँ; क्योंकि मैंने भगवान् विष्णुकी मोक्षदायिनी भक्ति प्राप्त की है। ********* • ७४९ पार्वतीने पूछा- देवेश्वर! विश्वनाथ! किस मासमें किन-किन फूलोंका भगवान्‌को पूजामें उपयोग करना चाहिये ? यह बतानेकी कृपा करें। श्रीमहादेवजी बोले- चैत्र मासमें चम्पा और चमेलीके फूलोंसे शहारी केशवका प्रयत्नपूर्वक पूजन करना चाहिये दौना, कटसरैया और वरुणवृक्षके फूलोंसे भी जगत्‌के स्वामी सर्वेश्वर श्रीविष्णुका पूजन किया जा सकता है। मनुष्य एकाग्रचित्त होकर लाल या और किसी रंगके सुन्दर कमलपुष्पोद्वारा चैत्र मासमें श्रीहरिका पूजन करे। देवि ! वैशाख मासमें जब कि सूर्य वृष राशिपर स्थित हों, केतकी (केवड़े) के पत्ते लेकर महाप्रभु श्रीविष्णुका पूजन करना चाहिये। जिन्होंने भक्तिपूर्वक भगवान्‌का पूजन कर लिया, उनके ऊपर श्रीहरि संतुष्ट रहते हैं। ज्येष्ठ मास आनेपर नाना प्रकारके फूलोंसे भगवान्‌की पूजा करनी चाहिये। देवदेवेश्वर श्रीविष्णुके पूजित होनेपर सम्पूर्ण देवताओंकी पूजा सम्पन्न हो जाती है। आषाढ़ मासमें कनेरके फूल, लाल फूल अथवा कमलके फूलोंसे भगवान्‌की विशेष पूजा करनी चाहिये। जो मनुष्य इस प्रकार भगवान् विष्णुकी पूजा करते हैं, वे पुण्यके भागी होते हैं। जो सुवर्णके समान रंगवाले कदम्बके फूलोंसे सर्वव्यापी गोविन्दकी पूजा करेंगे, उन्हें कभी यमराजका भय नहीं होगा । लक्ष्मीपति श्रीविष्णु श्रीलक्ष्मीजीको पाकर जैसे प्रसन्न रहते हैं, उसी प्रकार कदंबका फूल पाकर भी विश्वविधाता श्रीहरिको विशेष प्रसन्नता होती है। सुरेश्वरि तुलसी, श्यामा, तुलसी तथा अशोकके द्वारा सर्वदा पूजित होनेपर श्रीविष्णु नित्यप्रप्ति कष्टका निवारण करते हैं। जो लोग सावन मास आनेपर अलसीका फूल लेकर अथवा दूर्वादलके द्वारा श्रीजनार्दनकी पूजा करते हैं, उन्हें भगवान् प्रलयकालतक मनोवाञ्छित भोग प्रदान करते रहते हैं। पार्वती! भादोंके महीनेमें चम्पा, श्वेत पुष्प, रक्तसिंदूरक तथा कहारके पुष्पोंसे पूजन करके मनुष्य सब कामनाओंका फल प्राप्त कर लेता है। आश्विनके शुभ मासमें जुही, चमेली तथा नाना प्रकारके शुभ पुष्पोंद्वारा प्रयत्नपूर्वक भक्तिके साथ सदा श्रीहरिका पूजन करना चाहिये। जो कमलके फूल ले आकर श्रीजनार्दनकी
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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