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________________ उत्तरखण्ड ] . चैत्र और वैशाख मासके विशेष उत्सवका वर्णन . भगवान् श्रीहरिका पूजन करना चाहिये। वे सर्वेश्वर उसे निश्चय ही रौरव नरकमें निवास करना पड़ता है। मैं पुण्यस्वरूप वैष्णवोंको सब कुछ देते हैं। जो शिवकी ही विष्णु हूँ, मैं ही रुद्र हूँ और मैं ही पितामह ब्रह्मा हूँ। पूजा नहीं करता और श्रीविष्णुको निन्दामें तत्पर रहता है, मैं ही सदा सब भूतोंमें निवास किया करता हूँ। १ चैत्र और वैशाख मासके विशेष उत्सवका वर्णन, वैशाख, ज्येष्ठ और आषाढ़में , मी र म जलस्थ श्रीहरिके पूजनका महत्त्व - पार्वती बोलीं-महेश्वर ! सब महीनोंको झूलेपर बैठे हुए भगवान् श्रीकृष्णके सामने रात्रिमें विधिका वर्णन कीजिये। प्रत्येक मासमें कौन-कौन-से जागरण करते हैं, उन्हें एक निमेषमें ही सब पुण्योंकी महोत्सव करने चाहिये और उनके लिये उत्तम विधि क्या प्राप्ति हो जाती है। सुरेश्वरि ! झूलेपर विराजमान है? सुरेश्वर ! किस महीनेका कौन देवता है? किसको दक्षिणाभिमुख भगवान् गोविन्दका एक बार भी दर्शन पूजा करनी चाहिये, उस पूजनकी महिमा कैसी है और करके मनुष्य ब्रह्महत्याके पापसे छूट जाता है। वह किस तिथिको करना उचित है? ॐ दोलारूढाय विद्महे माधवाय च धीमहि । महादेवजी बोले-देवि ! मैं प्रत्येक मासके तन्नो देवः प्रचोदयात् ॥ 1 उत्सवकी विधि बतलाता हूँ। पहले चैत्र मासके 'झूलेपर बैठे हुए भगवान्का तत्त्व जाननेके लिये शुरूपक्षमें विशेषतः एकादशी तिथिको भगवान्को हम ज्ञान प्राप्त करते हैं। श्रीमाधवका ध्यान करते हैं। झूलेपर बिठाकर पूजा करनी चाहिये। यह दोलारोहणका अतः वे देव-भगवान् विष्णु हमलोगोंकी बुद्धिको उत्सव बड़ी भक्तिके साथ और विधिपूर्वक मनाना प्रेरित करें।' चाहिये। पार्वती ! जो लोग कलियुगके पाप-दोषका इस गायत्री मन्त्रके द्वारा भगवानका पूजन करना अपहरण करनेवाले भगवान् श्रीकृष्णको झूलेपर चाहिये। 'माधवाय नमः', 'गोविन्दाय नमः' और विराजमान देखते हैं-उस रूपमें उनकी झाँकी करते हैं, 'श्रीकण्ठाय नमः' इन मन्त्रोंसे भी पूजन किया जा वे सहस्रो अपराधोंसे मुक्त हो जाते हैं। करोड़ो जन्मोमे सकता है। मन्त्रोच्चारणके साथ विधिपूर्वक पूजन करना किये हुए पाप तभीतक मौजूद रहते हैं, जबतक मनुष्य उचित है। एकाग्रचित्त होकर गुरुको यथाशक्ति दक्षिणा विश्व के स्वामी भगवान जगन्नाथको झूलेपर बिठाकर उन्हें देनी चाहिये तथा निरन्तर भक्तिपूर्वक श्रीविष्णुकी अपने हाथसे झुलाता नहीं। जो लोग कलियुगमें झूलेपर लीलाओंका गान करते रहना चाहिये । इससे उत्सव पूर्ण बैठे हुए जनार्दनका दर्शन करते हैं, वे गोहत्यारे हों तो भी होता है। सुमुखि ! और अधिक कहनेसे क्या लाभ । मुक्त हो जाते हैं, फिर औरोंकी तो बात ही क्या है। झूलेपर विराजमान भगवान् विष्णु सब पापोंको हरनेवाले दोलोत्सवसे प्रसन्न होकर समस्त देवता भगवान् शङ्करको हैं। जहाँ दोलोत्सव होता है, वहाँ देवता, गन्धर्व, किन्नर साथ लेकर झूलेपर बैठे हुए श्रीविष्णुको झाँकी करनेके और ऋषि बहुधा दर्शनके लिये आते हैं। उस समय लिये आते हैं और आँगनमें खड़े हो हर्षमें भरकर स्वयं 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' इस मन्त्रद्वारा भी नाचते, गाते एवं बाजे बजाते हैं। वासुकि आदि नाग षोडशोपचारसे विधिवत् पूजा करनी उचित है। इससे और इन्द्र आदि देवता भी दर्शनके लिये पधारते हैं। सम्पूर्ण कामनाएं पूर्ण होती हैं।' सुव्रते! अङ्गन्यास, भगवान् विष्णुको झूलेपर विराजमान देख तीनों लोकोंमें करन्यास तथा शरीरन्यास-सब कुछ द्वादशाक्षर मन्त्रसे उत्सव होने लगता है; अतः सैकड़ों कार्य छोड़कर करना चाहिये और इस आगमोक्त मन्त्रसे ही महान् दोलोत्सवके दिन झूलनका उत्सव करो। जो लोग उत्सवका कार्य सम्पन्न करना चाहिये। झूलेपर सबसे
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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