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________________ ७२२ • अर्चयस्व हृषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . [ संक्षिप्त पद्मपुराण वर्णेशो ब्राह्मणश्चेत: करणाग्यं नमो नमः । रोगसे क्षीण हुए पुरुषोंको तत्काल जीवन देनेवाला है। इत्येतद्वासुदेवस्य विष्णोर्नामसहस्त्रकम् ।। २९७ ॥. यह परम पवित्र, मङ्गलमय तथा आयु बढ़ानेवाला है। व ९९७ वर्णेशः-समस्त वर्गों के स्वामी ब्राह्मण- एक बार भी इसका श्रवण, पठन अथवा जप करनेसे रूप, ९९८ ब्राह्मणः-ब्राह्मण माता-पितासे उत्पन्न अङ्गोंसहित सम्पूर्ण वेद, कोटि-कोटि मन्त्र, पुराण, शास्त्र एवं ब्रह्मज्ञानी, ९९९ चेत:- परमात्मचिन्तनकी तथा स्मृतियोंका श्रवण और पाठ हो जाता है। प्रिये ! जो योग्यतावाले चित्तरूप, १००० करणाग्र्यम्- इसके एक श्लोक, एक चरण अथवा एक अक्षरका भी इन्द्रियोंका प्रेरक होनेके कारण उनमें सबसे श्रेष्ठ नित्य जप या पाठ करता है, उसके सम्पूर्ण मनोरथ चित्त-इस प्रकार ये सबके हृदयमें वास करनेवाले तत्काल सिद्ध हो जाते हैं। सब कार्योकी सिद्धिसे शीघ्र भगवान् विष्णुके सहस्र नाम हैं। इन सब नामोंको मेरा ही विश्वास पैदा करानेवाला इसके समान दूसरा कोई बारम्बार नमस्कार है ।। २९७ ॥ साधन नहीं है। यह विष्णुसहस्रनामस्तोत्र समस्त अपराधोंको शान्त कल्याणी ! तुम्हें इस स्तोत्रको सदा गुप्त रखना करनेवाला, परम उत्तम तथा भगवान्में भक्तिको बढ़ाने चाहिये और अपने अभीष्ट अर्थकी सिद्धिके लिये केवल वाला है। इसका कभी नाश नहीं होता। ब्रह्मलोक इसीका पाठ करना चाहिये। जिसका हृदय संशयसे आदिका तो यह सर्वस्व ही है। विष्णुलोकतक पहुँचनेके दूषित हो, जो भगवान् विष्णुका भक्त न हो, जिसमें श्रद्धा लिये यह अद्वितीय सीढ़ी है। इसके सेवनसे सब और भक्तिका अभाव हो तथा जो भगवान् विष्णुको दुःखोंका नाश हो जाता है। यह सब सुखोंको देनेवाला साधारण देवता समझता हो, ऐसे पुरुषको इसका उपदेश तथा शीघ्र ही परम मोक्ष प्रदान करनेवाला है। काम, नहीं देना चाहिये। जो अपना पुत्र, शिष्य अथवा सुहद क्रोध आदि जितने भी अन्तःकरणके मल हैं, उन सबका हो, उसे उसका हित करनेकी इच्छासे इस श्रीविष्णुइससे शोधन होता है। यह परम शान्तिदायक एवं सहस्त्रनामका उपदेश देना चाहिये। अल्पबुद्धि पुरुष इसे महापातकी मनुष्योंको भी पवित्र बनानेवाला है। समस्त नहीं ग्रहण करेंगे। देवर्षि नारद मेरे प्रसादसे कलियुगमें प्राणियोंको यह शीघ्र ही सब प्रकारके अभीष्ट फल दान तत्काल फल देनेवाले इस स्तोत्रको ग्रहण करके करता है। समस्त विनोंकी शान्ति और सम्पूर्ण अरिष्टोंका कल्पग्राम (कलापग्राम) में ले जायेंगे, जिससे भाग्यहीन विनाश करनेवाला है। इसके सेवनसे भयङ्कर दुःख लोगोंका दुःख दूर हो जायगा। भगवान् विष्णुसे बढ़कर शान्त हो जाते हैं। दुःसह दरिद्रताका नाश हो जाता है कोई धाम नहीं है, श्रीविष्णुसे बढ़कर कोई तपस्या नहीं तथा तीनों प्रकारके ऋण दूर हो जाते हैं। यह परम है, श्रीविष्णुसे बढ़कर कोई धर्म नहीं है और श्रीविष्णुसे गोपनीय तथा धन-धान्य और यशकी वृद्धि करनेवाला भिन्न कोई मन्त्र नहीं है। भगवान् श्रीविष्णुसे भिन्न कोई है। सब प्रकारके ऐश्वयों, समस्त सिद्धियों और सम्पूर्ण सत्य नहीं है, श्रीविष्णुसे बढ़कर जप नहीं है. श्रीविष्णुसे धर्मोको देनेवाला है। इससे कोटि-कोटि तीर्थ, यज्ञ, तप, उत्तम ध्यान नहीं है तथा श्रीविष्णुसे श्रेष्ठ कोई गति नहीं दान और व्रतोंका फल प्राप्त होता है। यह संसारकी है। जिस पुरुषकी भगवान् जनार्दनके चरणों में भक्ति है, जडता दूर करनेवाला और सब प्रकारकी विद्याओंमें उसे अनेक मन्त्रोंके जप, बहुत विस्तारवाले शास्त्रोंके प्रवृत्ति करानेवाला है। जो राज्यसे भ्रष्ट हो गये हैं, उन्हें स्वाध्याय तथा सहस्रों वाजपेय यज्ञोंके अनुष्ठान करनेकी यह राज्य दिलाता और रोगियोंके सब रोगोंको हर लेता क्या आवश्यकता है? मैं सत्य-सत्य कहता हूँ-भगवान् है। इतना ही नहीं, यह स्तोत्र वन्ध्या स्त्रियोंको पुत्र और विष्णु सर्वतीर्थमय है, भगवान् विष्णु सर्वशास्त्रमय है * पद्मपुराण, उत्तरखण्डका ७२ वा अध्याय ।
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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