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________________ • अर्थयस्व हुषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् • [संक्षिप्त पयपुराण शुक्लपक्षकी 'कामदा' नामक एकादशी तिथि है, जो सब शापका दोष दूर हो जायगा। राजन् ! मुनिका यह वचन सुनकर ललिताको बड़ा हर्ष हुआ। उसने एकादशीको उपवास करके द्वादशीके दिन उन ब्रह्मर्षिके समीप ही भगवान् वासुदेवके [श्रीविग्रहके समक्ष अपने पतिके उद्धारके लिये यह वचन कहा- मैंने जो यह कामदा एकादशीका उपवासव्रत किया है, उसके पुण्यके प्रभावसे मेरे पतिका राक्षस-भाव दूर हो जाय।' वसिष्ठजी कहते हैं-ललिताके इतना कहते ही उसी क्षण ललितका पाप दूर हो गया। उसने दिव्य देह धारण कर लिया। राक्षस-भाव चला गया और पुनः गन्धर्वत्वकी प्राप्ति हुई। पश्रेष्ठ ! वे दोनों पति-पत्नी 'कामदा के प्रभावसे पहलेकी अपेक्षा भी अधिक सुन्दर रूप धारण करके विमानपर आरूढ़ हो अत्यन्त शोभा पाने लगे। यह जानकर इस एकादशीके व्रतका यत्नपूर्वक पालन करना चाहिये। मैंने लोगोंके हितके M ARATHI स लिये तुम्हारे सामने इस व्रतका वर्णन किया है। कामदा पापोंको हरनेवाली और उत्तम है। तुम उसीका विधि- एकादशी ब्रह्महत्या आदि पापों तथा पिशाचत्व आदि पूर्वक व्रत करो और इस व्रतका जो पुण्य हो, उसे अपने दोषोंका भी नाश करनेवाली है। राजन् ! इसके पढ़ने स्वामीको दे डालो। पुण्य देनेपर क्षणभरमें ही उसके और सुननेसे वाजपेय यज्ञका फल मिलता है। वैशाख मासकी 'वरूथिनी' और 'मोहिनी' एकादशीका माहात्म्य युधिष्ठिरने पूछा-वासुदेव ! आपको नमस्कार मनुष्य प्राप्त कर लेता है। नृपश्रेष्ठ ! घोड़ेके दानसे है। वैशाख मासके कृष्णपक्षमें किस नामकी एकादशी हाथीका दान श्रेष्ठ है। भूमिदान उससे भी बड़ा है। होती है? उसकी महिमा बताइये। भूमिदानसे भी अधिक महत्त्व तिलदानका है। तिलदानसे भगवान् श्रीकृष्ण बोले-राजन् ! वैशाख बढ़कर स्वर्णदान और स्वर्णदानसे बढ़कर अनदान है, कृष्णपक्षकी एकादशी 'वरूथिनी के नामसे प्रसिद्ध है। क्योंकि देवता, पितर तथा मनुष्योंको अन्नसे ही तृप्ति होती यह इस लोक और परलोकमें भी सौभाग्य प्रदान है। विद्वान् पुरुषोंने कन्यादानको भी अन्नदानके ही समान करनेवाली है। 'वरूथिनी'के व्रतसे ही सदा सौख्यका बताया है। कन्यादानके तुल्य ही धेनुका दान है-यह लाभ और पापकी हानि होती है। यह समस्त लोकोंको साक्षात् भगवान्का कथन है। ऊपर बताये हुए सब भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाली है। 'वरूथिनी'के ही दानोंसे बड़ा विद्यादान है। मनुष्य वरूथिनी एकादशीका व्रतसे मान्धाता तथा धुन्धुमार आदि अन्य अनेक राजा व्रत करके विद्यादानका भी फल प्राप्त कर लेता है। जो स्वर्गलोकको प्राप्त हुए हैं। जो दस हजार वर्षातक तपस्या लोग पापसे मोहित होकर कन्याके धनसे जीविका करता है, उसके समान ही फल 'वरूथिनी'के व्रतसे भी चलाते हैं, वे पुण्यका क्षय होनेपर यातनामय नरकमें
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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