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________________ • अर्चयस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . [संक्षिप्त पद्मपुराण ...... भगवान्का स्मरण करके बारम्बार श्रीकृष्णनामका युधिष्ठिरने पूछा-भगवन् ! आपने माघ मासके उच्चारण करते हुए कुम्हड़े, नारियल अथवा बिजौरके कृष्ण पक्षको षट्तिला एकादशीका वर्णन किया। अब फलसे भगवान्को विधिपूर्वक पूजकर अर्घ्य दे। अन्य कृपा करके यह बताइये कि शुक्ल पक्षमें कौन-सी सब सामग्रियोंके अभावमें सौ सुपारियोंके द्वारा भी पूजन एकादशी होती है ? उसकी विधि क्या है ? तथा उसमें और अर्घ्यदान किये जा सकते हैं। अर्यका मन्त्र इस किस देवताका पूजन किया जाता है ? प्रकार है भगवान् श्रीकृष्ण बोले-राजेन्द्र ! बतलाता कृष्ण कृष्ण कृपालुस्त्वमगतीनां गतिर्भव। हूँ, सुनो। माघ मासके शुक्ल पक्षमें जो एकादशी संसारार्णवमनाना प्रसीद पुरुषोत्तम ॥ होती है, उसका नाम 'जया' है। वह सब पापोंको नमस्ते पुण्डरीकाक्ष नमस्ते विश्वभावन। हरनेवाली उत्तम तिथि है। पवित्र होनेके साथ ही पापोंका सुब्रहाण्य नमस्तेऽस्तु महापुरुष पूर्वज ॥ नाश करनेवाली है तथा मनुष्योंको भोग और मोक्ष प्रदान गृहाणायं मया दत्तं लक्ष्या सह जगत्पते। करती है। इतना ही नहीं, वह ब्रह्महत्या-जैसे पाप तथा (४४।१८-२०) पिशाचत्वका भी विनाश करनेवाली है। इसका व्रत 'सच्चिदानन्दस्वरूप श्रीकृष्ण ! आप बड़े दयालु हैं। करनेपर मनुष्योंको कभी प्रेतयोनिमें नहीं जाना पड़ता। हम आश्रयहीन जीवोंके आप आश्रयदाता होइये। इसलिये राजन् ! प्रयत्नपूर्वक जया' नामकी एकादशीका पुरुषोत्तम ! हम संसार-समुद्रमे डूब रहे है, आप हमपर व्रत करना चाहिये। प्रसत्र होइये। कमलनयन ! आपको नमस्कार है, एक समयकी बात है, स्वर्गलोकमें देवराज इन्द्र विश्वभावन! आपको नमस्कार है। सुब्रह्मण्य ! राज्य करते थे। देवगण पारिजात वृक्षोंसे भरे हुए महापुरुष ! सबके पूर्वज ! आपको नमस्कार है। नन्दनवनमें अप्सराओंके साथ विहार कर रहे थे। पचास जगत्पते ! आप लक्ष्मीजीके साथ मेरा दिया हुआ अयं करोड़ गन्धोंके नायक देवराज इन्द्रने स्वेच्छानुसार वनमें स्वीकार करें। विहार करते हुए बड़े हर्षके साथ नृत्यका आयोजन तत्पश्चात् ब्राह्मणकी पूजा करे । उसे जलका घड़ा किया। उसमे गन्धर्व गान कर रहे थे, जिनमें पुष्पदन्त, दान करे। साथ ही छाता, जूता और वस्त्र भी दे। दान चित्रसेन तथा उसका पुत्र-ये तीन प्रधान थे। चित्रकरते समय ऐसा कहे-'इस दानके द्वारा भगवान् सेनकी स्त्रीका नाम मालिनी था। मालिनीसे एक कन्या श्रीकृष्ण मुझपर प्रसन्न हो। अपनी शक्तिके अनुसार श्रेष्ठ उत्पन्न हुई थी, जो पुष्पवन्तीके नामसे विख्यात थी। ब्राह्मणको काली गौ दान करे । द्विजश्रेष्ठ ! विद्वान् पुरुषको पुष्पदन्त गन्धर्वके एक पुत्र था, जिसको लोग माल्यवान् चाहिये कि वह तिलसे भरा हुआ पात्र भी दान करे । उन कहते थे। माल्यवान् पुष्पवन्तीके रूपपर अत्यन्त मोहित तिलोके बोनेपर उनसे जितनी शाखाएँ पैदा हो सकती है, था। ये दोनों भी इन्द्रके संतोषार्थ नृत्य करनेके लिये उतने हजार वर्षातक वह स्वर्गलोकमें प्रतिष्ठित होता है। आये थे। इन दोनोंका गान हो रहा था, इनके साथ तिलसे स्नान करे, तिलका उबटन लगाये, तिलसे होम अप्सराएँ भी थीं। परस्पर अनुरागके कारण ये दोनों करे; तिल मिलाया हुआ जल पिये, तिलका दान करे और मोहके वशीभूत हो गये। चित्तमें भ्रान्ति आ गयी। तिलको भोजनके काममें ले। इस प्रकार छ: कामोंमें इसलिये वे शुद्ध गान न गा सके। कभी ताल भंग हो तिलका उपयोग करनेसे यह एकादशी 'तिला' जाता और कभी गीत बंद हो जाता था। इन्द्रने इस कहलाती है, जो सब पापोका नाश करनेवाली है।* प्रमादपर विचार किया और इसमें अपना अपमान * तिलस्नायो तिलोद्वर्ती तिलहोमी तिलोदकी। तिलदाता च भोक्ता च षट्तिला पापनाशिनी ॥ (४४ ॥२४)
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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