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________________ ६२२ • अयस्व हबीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . [ संक्षिप्त पयपुराण ...... विलेपन-मन्त्र . . आपको सेवामें भेंट किये हैं; आप यह बीड़ा श्रीखण्डागुरुकर्पूरकुमादिविलेपनम् ... । स्वीकार करें।' भक्तया दत्तस्मयाऽऽऽयं लक्ष्या सह गृहाण वै॥ .. तत्पश्चात् भक्तिपूर्वक धूप, अगर तथा घी मिलाया 7. 'भगवन् ! मैंने चन्दन, अरगजा, कपूर और केसर हुआ गुग्गुल-इनकी आहुति देकर भगवान्को सँघाये। आदिका सुगन्धित अङ्गराग भक्तिपूर्वक अर्पण किया है। इस प्रकार पूजा करनी चाहिये। घीका दीपक जलाना आप श्रीलक्ष्मीजीके साथ इसे स्वीकार करें।' चाहिये। मुनिश्रेष्ठ ! एकाग्रचित्त हो भगवान् श्रीलक्ष्मीवस्त्र-मन्त्र नारायणके सामने तथा तुलसीवनके समीप नाना नारायण नमस्तेऽस्तु नरकार्णवतारण।ही प्रकारका दीपक सजाना चाहिये। चक्रधारी देवाधिदेव त्रैलोक्याधिपते तुभ्यं ददामि वसनं शुनि ॥ विष्णुको प्रतिदिन अर्घ्य भी देना चाहिये। पुत्र-प्राप्तिके 'नरकके समुद्रसे तारनेवाले नारायण ! आपको लिये नवमीको नारियलका अर्घ्य देना उत्तम है। धर्म, नमस्कार है। त्रिलोकीनाथ ! मैं आपको पवित्र वस्त्र काम तथा अर्थ-तीनोंकी सिद्धिके लिये दशमीको अर्पण करता हूँ।' र विजौरका अर्घ्य अर्पण करना उचित है तथा एकादशीको यज्ञोपवीत-मन्त्र अनारसे अर्घ्य देना चाहिये; इससे सदा दरिद्रताका नाश दामोदर नमस्तेऽस्तु त्राहि मां भवसागरात्। होता है। नारद ! बाँसके पात्रमें सप्तधान्य रखकर उसमें ब्रह्मसूत्रं मया दतं गृहाण पुरुषोत्तम ॥ सात फल रखे; फिर तुलसीदल, फूल एवं सुपारी 'दामोदर ! आपको नमस्कार है, भवसागरसे मेरी डालकर उस पात्रको वस्त्रसे ढक दे। तत्पश्चात् उसे रक्षा कीजिये। पुरुषोत्तम ! मैंने ब्रह्मसूत्र (यज्ञोपवीत) भगवान्के सम्मुख निवेदन करे। विप्रेन्द्र ! अर्थ्य अर्पण किया है, आप इसे ग्रहण करें।' निम्नाङ्कित मन्त्रसे देना चाहिये; इसे एकाग्रचित्त पास पुष्प-मन्त्र सार होकर सुनोपुष्पाणि च सुगन्धीनि मालत्यादीनि वै प्रभो । अर्य-मन्त्र'मया दत्तानि देवेश प्रीतित: प्रतिगृह्यताम्॥ तुलसीसहितो देव सदा शह्वेन संयुतम् । 'प्रभो ! मैंने मालती आदिके सुगन्धित पुष्प सेवामें ___ गृहाणाऱ्या मया दत्तं देवदेव नमोऽस्तु ते ॥ प्रस्तुत किये हैं, देवेश्वर ! आप इन्हें प्रसत्रतापूर्वक देव ! आप तुलसीजीके साथ मेरे दिये हुए इस स्वीकार करे। नालायाः शङ्खयुक्त अर्घ्यको ग्रहण करें। देवदेव ! आपको कमाया र नैवेद्य-मन्त्र नमस्कार है।' नैवेद्यं गृह्यता नाथ भक्ष्यभोज्यैः समन्वितम्। इस प्रकार लक्ष्मीसहित देवेश्वर भगवान् विष्णुकी सर्व रसैः सुसम्पन्नं गृहाण परमेश्वर ॥ पूजा करके व्रतकी पूर्तिके निमित्त उन देवदेवेश्वरसे 'नाथ ! भक्ष्य-भोज्य पदार्थोसे युक्त नैवेद्य स्वीकार प्रार्थना करेकीजिये; परमेश्वर ! यह सब रसोंसे सम्पन्न है, इसे उपोषितोऽहं देवेश कामक्रोमविवर्जितः ।। ग्रहण करें। Tara व्रतेनानेन देवेश त्वमेव शरणं मम ।। . ताम्बूल-मन्त्र-शारा गृहीतेऽस्मिन् व्रते देव यदपूर्ण कृतं मया । पूगानि नागपत्राणि कर्पूरसहितानि च। सर्व तदस्तु सम्पूर्ण स्वतासादाजनार्दन ।। मया दतानि देवेश ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम्॥ नमः कमलपत्राक्ष नमस्ते जलशायिने । _ 'देवेश्वर ! मैंने सुपारी, पानके पत्ते और कपूर इदं व्रतं मया चीण प्रसादात्तव केशव ।।
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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