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________________ • अर्चयस्व हृषीकेश यदीच्छसि परं पदम् . [ संक्षिप्त परापुराण है, जिसकी छाया तीनों तापोंका विनाश करनेवाली है। पुलस्त्यजी कहते हैं-नन्दाका नाम कानमें पड़ते धर्म और ज्ञान उस वृक्षके फूल हैं। स्वर्ग तथा मोक्ष ही राजा प्रभञ्जन शापसे मुक्त हो गये। उन्होंने पुनः बल उसके फल हैं। जो आध्यात्मिक, आधिदैविक और और रूपसे सम्पन्न राजाका शरीर प्राप्त कर लिया। इसी आधिभौतिक-इन तीनों प्रकारके दुःखोंसे सन्तप्त हैं, वे समय सत्यभाषण करनेवाली यशस्विनी नन्दाका दर्शन इस योगवृक्षकी छायाका आश्रय लेते हैं। वहाँ जानेसे करनेके लिये साक्षात् धर्म वहाँ आये और इस प्रकार उन्हें उत्तम शान्ति प्राप्त होती है, जिससे फिर कभी बोले-'नन्दे ! मैं धर्म हूँ, तुम्हारी सत्य वाणीसे आकृष्ट दुःखोंके द्वारा वे बाधित नहीं होते । यही परम कल्याणका होकर यहाँ आया हूँ। तुम मुझसे कोई श्रेष्ठ वर माँग लो।' साधन है, जिसे मैंने संक्षेपसे बताया है। तुम्हें ये सभी धर्मके ऐसा कहनेपर नन्दाने यह वर माँगा–'धर्मराज ! बातें ज्ञात है, केवल मुझसे पूछ रहे हो। आपकी कृपासे मैं पुत्रसहित उत्तम पदको प्राप्त होऊँ तथा व्याघ्रने कहा-पूर्वकालमें मैं एक राजा था; यह स्थान मुनियोंको धर्मप्रदान करनेवाला शुभ तीर्थ बन किन्तु एक मृगीके शापसे मुझे बाघका शरीर धारण करना जाय । देवेश्वर ! यह सरस्वती नदी आजसे मेरे ही नामसे पड़ा। तबसे निरन्तर प्राणियोंका वध करते रहनेके कारण प्रसिद्ध हो-इसका नाम 'नन्दा' पड़ जाय। आपने वर मुझे सारी बातें भूल गयी थीं। इस समय तुम्हारे सम्पर्क देनेको कहा, इसलिये मैंने यही वर माँगा है।' और उपदेशसे फिर उनका स्मरण हो आया है, तुम भी [पुत्रसहित] देवी नन्दा तत्काल ही सत्यवादियोंके अपने इस सत्यके प्रभावसे उत्तम गतिको प्राप्त होगी। अब उत्तम लोकमें चली गयी। राजा प्रभञ्जनने भी अपने मैं तुमसे एक प्रश्न और पूछता हूँ। मेरे सौभाग्यसे तुमने पूर्वोपार्जित राज्यको पा लिया। नन्दा सरस्वतीके तटसे आकर मुझे धर्मका स्वरूप बताया, जो सत्पुरुषोंके मार्गमें स्वर्गको गयी थी, [तथा उसने धर्मराजसे इस आशयका प्रतिष्ठित है। कल्याणी ! तुम्हारा नाम क्या है? वरदान भी माँगा था। इसलिये विद्वानोंने वहाँ नन्दा बोली-मेरे यूथके स्वामीका नाम 'नन्द' है; 'सरस्वती का नाम नन्दा रख दिया । जो मनुष्य वहाँ आते उन्होंने ही मेरा नाम 'नन्दा' रख दिया है। समय सरस्वतीके नामका उच्चारणमात्र कर लेता है, वह जीवनभर सुख पाता है और मृत्युके पश्चात् देवता होता है। स्नान और जलपान करनेसे सरस्वती नदी मनुष्योंके लिये स्वर्गकी सीढ़ी बन जाती है। अष्टमीके दिन जो लोग एकाग्रचित होकर सरस्वतीमें स्रान करते हैं, वे मृत्युके बाद स्वर्गमें पहुँचकर सुख भोगते हुए आनन्दित होते हैं। सरस्वती नदी सदा ही खियोंको सौभाग्य प्रदान करनेवाली है। तृतीयाको यदि उसका सेवन किया जाय तो वह विशेष सौभाग्यदायिनी होती है। उस दिन उसके दर्शनसे भी मनुष्यको पाप-राशिसे छुटकारा मिल जाता है। जो पुरुष उसके जलका स्पर्श करते हैं, उन्हें भी मुनीश्वर समझना चाहिये । वहाँ चाँदी दान करनेसे मनुष्य रूपवान् होता है। ब्रह्माकी पुत्री यह सरस्वती नदी परम पावन और पुण्यसलिला है, यही नन्दा नामसे प्रसिद्ध है। फिर जब यह स्वच्छ जलसे युक्त हो दक्षिण दिशाकी ओर प्रवाहित होती है, तब विपुला या विशाला नाम
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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