SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 611
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उत्तरखण्ड ] • गङ्गावतरणको संक्षिप्त कथा और हरिद्वारका माहात्म्य . ६११ और निराकार)। ये सनातन पुरुष हैं। सुव्रत ! भगवान् नारायण सदा ही विराजमान रहते है। उतरायणमें ही इनकी महती पूजा होती है। प्रायः छः एक समयकी बात है, मैंने एक वर्षतक वहाँ बड़ी महीनोंतक इनकी पूजा नहीं होती; क्योंकि जबतक कठोर तपस्या की थी। उस समय भक्तोंपर कृपा दक्षिणायन रहता है, इनका स्थान हिमसे आच्छादित रहा करनेवाले भगवान् नारायण, जो अविनाशी, अन्तर्यामी, करता है। अतः इनके-जैसा देवता न अबतक हुआ है साक्षात् परमेश्वर तथा गरुड़के-से चिह्नवाली ध्वजासे और न आगे होगा । बदरिकाश्रममें देवगण निवास करते युक्त हैं, बहुत प्रसन्न हुए और मुझसे बोले-'सुव्रत ! हैं। वहाँ ऋषियोंके भी आश्रम हैं। अग्निहोत्र और कोई वर माँगो; देव ! तुम जो-जो चाहोगे, वह सभी वेदपाठकी ध्वनि वहाँ सदा श्रवण-गोचर होती रहती है। मनोरथ मैं पूर्ण करूँगा तुम कैलासके स्वामी, साक्षात् भगवान् नारायणका दर्शन करना चाहिये । उनका दर्शन रुद्र तथा विश्वके पालक हो। करोड़ों हत्याओंका नाश करनेवाला है। वहाँ तब मैने कहा-जनार्दन ! यदि आप वर देना 'अलकनन्दा' नामवाली गङ्गा बहती हैं, उनमें स्नान चाहते हैं तो मुझे दो वर प्रदान कीजिये-मेरे हृदयमें करना चाहिये। वहाँ स्नान करके मनुष्य महान् पापसे सदा ही आपके प्रति भक्ति बनी रहे और देवेश्वर ! मैं मुक्त हो जाता है। उस तीर्थमें सम्पूर्ण जगत्के स्वामी आपके प्रसादसे मुक्तिदाता होऊँ। - गङ्गावतरणकी संक्षिप्त कथा और हरिद्वारका माहात्म्य - महादेवजी कहते हैं-देवर्षियोंमें श्रेष्ठ नारद ! गये। और्वन कृपापूर्वक वहाँ उनकी रक्षा की। वहीं अब तुम परम पुण्यमय हरिद्वारका माहात्म्य श्रवण करो। उनके सगर नामक पुत्रका जन्म हुआ। महात्मा भार्गवसे जहाँ भगवती गङ्गा यहती है, वहाँ उत्तम तीर्थ बताया रक्षित होकर वह उसी आश्रमपर बढ़ने लगा। मुनिने गया है। वहाँ देवता, ऋषि और मनुष्य निवास करते हैं। उसके यज्ञोपवीत आदि सब क्षत्रियोचित्त संस्कार वहाँ साक्षात् भगवान् केशव नित्य विराजमान रहते हैं। कराये। अस्त्र-शस्त्रों तथा वेद-विद्याका भी उसको विद्वन् ! राजा भगीरथ उसी मार्गसे भगवती गङ्गाको अभ्यास कराया। लाये थे तथा उन महात्माने गङ्गाजलका स्पर्श कराकर , तदनन्तर महातपस्वी राजा सगरने और्व मुनिसे अपने पूर्वजोंका उद्धार किया था। आग्नेयास्त्र प्राप्त किया और समूची पृथ्वीपर भ्रमण करके नारद ! अत्यन्त सुन्दर गङ्गाद्वारमें जो जिस प्रकार अपने शत्रु तालजङ्घ, हैहय, शक तथा पारदवंशियोका गङ्गाजीको ले आये थे, वह सब प्रसङ्ग मैं क्रमशः सुनाता वध कर डाला । इस प्रकार सबको जीतकर उन्होंने धर्महूँ। पूर्वकालमें हरिश्चन्द्र नामके एक राजा हो चुके हैं, जो संचय करना आरम्भ किया। राजाने अश्वमेध यज्ञका त्रिभुवनमें सत्यके पालक विख्यात थे। उनके रोहित अनुष्ठान करनेके लिये अश्व छोड़ा। वह अश्व पूर्व नामक एक पुत्र हुआ, जो भगवान् विष्णुकी भक्तिमें दक्षिण-समुद्रके तटपर हर लिया गया और पृथ्वीके भीतर तत्पर था। रोहितका पुत्र वृक था, जो बड़ा ही धर्मात्मा पहुँचा दिया गया। तब राजाने अपने पुत्रोंको लगाकर सब और सदाचारी था। उसके सुबाहु नामक पुत्र हुआ। ओरसे उस स्थानको खुदवाया। महासागर खोदते समय सुबाहुसे 'गर' नामक पुत्रकी उत्पत्ति हुई। एक समय वे अश्वको तो नहीं पा सके, किन्तु वहाँ तपस्या करनेवाले गरको कालयोगसे दुःखी होना पड़ा। अनेक राजाओंने आदि पुरुष महात्मा कपिलपर उनकी दृष्टि पड़ी। वे चढ़ाई करके उनके देशको अपने अधीन कर लिया । गर उतावलीके साथ उनके निकट गये और जगत्प्रभु कुटुम्बको साथ ले भृगुनन्दन और्वके आश्रमपर चले कपिलको लक्ष्य करके कहने लगे-'यह चोर है।'
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy