SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 596
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ . . अर्चयस्व हृषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . [ संक्षिप्त पदापुराण . . . . इकैतीसे दूर रहकर सदा अपने ही धनसे संतुष्ट रहते हैं भक्तिपूर्वक श्राद्ध करता है, वह निश्चय ही देवलोकका अथवा अपने भाग्यपर ही निर्भर रहकर जीविका चलाते भागी होता है। दरिद्रका दान, सामर्थ्यशालीकी क्षमा, हैं, वे मनुष्य स्वर्गगामी होते हैं। जो स्वागत करते हुए नौजवानोंको तपस्या, ज्ञानियोंका मौन, सुख भोगनेके शुद्ध पौड़ारहित मधुर तथा पापरहित वाणीका प्रयोग योग्य पुरुषोंको सुखेच्छा-निवृत्ति तथा सम्पूर्ण प्राणियोपर करते हैं, वे लोग स्वर्गमें जाते हैं। जो दान-धर्ममें प्रवृत्त दया-ये सद्गुण स्वर्गमें ले जाते हैं।* तथा धर्ममार्गके अनुयायी पुरुषोंका उत्साह बढ़ाते हैं, वे ध्यानयुक्त तप भवसागरसे तारनेवाला है और चिरकालतक स्वर्गमें आनन्द भोगते हैं। जो हेमन्त ऋतु पापको पतनका कारण बताया गया है; यह बिलकुल सत्य (शीतकाल) में सूखी लकड़ी, गमि शीतल जल तथा है, इसमें संदेहकी गुंजाइश नहीं है। ब्रह्मन् ! स्वर्गको वर्षामें आश्रय प्रदान करता है, वह स्वर्गलोगमें सम्मानित राहपर ले जानेवाले समस्त साधनोंका मैंने यहाँ संक्षेपसे होता है। जो नित्य-नैमित्तिक आदि समस्त पुण्यकालोंमें वर्णन किया है; अब तुम और क्या सुनना चाहते हो? तुलसीदल और अश्वत्थकी महिमा तथा वैशाख-माहात्म्यके सम्बन्धमें तीन प्रेतोंके उद्धारकी कथा ब्राह्मणने पूछा-धर्मराज! वैशाख मासमें शुद्ध होता है। जैसे हरे बहुतेरे रोगोंको तत्काल हर लेती प्रातःकाल स्नान करके एकाग्रचित्त हुआ पुरुष भगवान् है, उसी प्रकार तुलसी दरिद्रता और दुःखभोग आदिसे माधवका पूजन किस प्रकार करे ? आप इसकी विधिका सम्बन्ध रखनेवाले अधिक-से-अधिक पापोंको भी शीघ्र वर्णन करें। ही दूर कर देती है। तुलसी काले रंगके पत्तोंवाली हो धर्मराजने कहा-ब्रह्मन् ! पत्तोंकी जितनी या हरे रंगकी, उसके द्वारा श्रीमधुसूदनकी पूजन करनेसे जातियाँ हैं, उन सबमें तुलसी भगवान् श्रीविष्णुको प्रत्येक मनुष्य-विशेषतः भगवान्का भक्त नरसे अधिक प्रिय है। पुष्कर आदि जितने तीर्थ है, गङ्गा आदि नारायण हो जाता है। जो पूरे वैशाखभर तीनों जितनी नदियाँ हैं तथा वासुदेव आदि जो-जो देवता है, सन्ध्याओंके समय तुलसीदलसे मधुहन्ता श्रीहरिका वे सभी तुलसीदलमें निवास करते हैं। अतः तुलसी पूजन करता है, उसका पुनः इस संसारमें जन्म नहीं सर्वदा 3. सब समय भगवान् श्रीविष्णुको प्रिय है। होता। फूल और पत्तोंके न मिलनेपर अन्न आदिके कमल और मालतीका फूल छोड़कर तुलसीका पत्ता द्वारा-धान, गेहूँ, चावल अथवा जौके द्वारा भी सदा ग्रहण करे और उसके द्वारा भक्तिपूर्वक माधवकी पूजा श्रीहरिका पूजन करे। तत्पश्चात् सर्वदेवमय भगवान् करे। उसके पुण्यफलका पूरा-पूरा वर्णन करनेमें शेष भी विष्णुको प्रदक्षिणा करे। इसके बाद देवताओं, मनुष्यों, समर्थ नहीं है। जो बिना स्नान किये ही देवकार्य या पितरों तथा चराचर जगत्का तर्पण करना चाहिये। पितृकार्यके लिये तुलसीका पता तोड़ता है, उसका सारा पीपलको जल देनेसे, दरिद्रता, कालकर्णी (एक कर्म निष्फल हो जाता है तथा वह पञ्चगव्य पान करनेसे तरहका रोग), दुःस्वप्र, दुश्चिन्ता तथा सम्पूर्ण दुःख नष्ट _* दानं दरिद्रस्य विभोः क्षमित्वं यूनां तपो ज्ञानयतां च मौनम् । इन्झनिवृतिश्च सुखोचितानां दया च भूतेषु दिवं नयन्ति ।। + तपो ध्यानसमायुक्त तारणाय भवाम्बुधः । पाप तु पतनायोक्तं सत्यमेव न संशयः ॥ (९२ । ६०) दारिद्र्यदुःखभोगादिपापानि सुबहून्यपि ॥ तुलसी हरते क्षिप्रं रोगानित्र हरीतको । (९४ । ८-९)
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy