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________________ पातालखण्ड] . वैशाख मासमें स्नान, तर्पण और श्रीमाधव-पूजनकी विधि एवं महिमा . उच्चारण करते हुए अक्षत, फूल, लाल चन्दन और आदिका दान करना चाहिये; इस कार्यमें धनकी कंजूसी जलके द्वारा उन्हें यत्नपूर्वक अर्घ्य दे। अर्घ्यदानका मन्त्र उचित नहीं है। जो समूचे वैशाखभर प्रतिदिन सबेरे स्नान इस प्रकार है करता, जितेन्द्रियभावसे रहता, भगवान के नाम जपता नमस्ते विश्वरूपाय नमस्ते ब्रह्मरूपिणे॥ और हविष्य भोजन करता है, वह सब पापोंसे मुक्त हो सहस्त्ररश्मये नित्यं नमस्ते. सर्वतेजसे। जाता है। नमस्ते रुद्रवपुषे नमस्ते , भक्तवत्सल ।। जो वैशाख मासमे आलस्य त्याग कर एकभुक्त पद्मनाभ नमस्तेऽस्तु कुण्डलाङ्गदभूषित। (चौबीस घंटेमें एक बार भोजन), नक्तवत (केवल नमस्ते सर्वलोकानां सप्तानामुपबोधन ॥ रातमें एक बार भोजन) अथवा अयाचितव्रत (बिना सकृतं दुष्कृतं चैव सर्व पश्यसि सर्वदा। माँगे मिले हुए अन्नका एक समय भोजन) करता है, वह सत्यदेव नमस्तेऽस्तु प्रसीद मम भास्कर ।। अपनी सम्पूर्ण अभीष्ट वस्तुओंको प्राप्त कर लेता है। दिवाकर नमस्तेऽस्तु प्रभाकर नमोऽस्तु ते। वैशाख मासमें प्रतिदिन दो बार गाँवसे बाहर नदीके (८९ ॥ ३७-४१) जलमें स्नान करना, हविष्य खाकर रहना, ब्रह्मचर्यका 'भगवान् सूर्य ! आप विश्वरूप और ब्रह्मस्वरूप पालन करना, पृथ्वीपर सोना, नियमपूर्वक रहना, व्रत, हैं। इन दोनों रूपोंमें आपको नमस्कार है। आप सहस्रो दान, जप, होम और भगवान् मधुसूदनकी पूजा किरणोंसे सुशोभित और सबके तेजरूप हैं, आपको सदा करना-ये नियम हजारों जन्मोंके भयंकर पापको भी हर नमस्कार है । भक्तवत्सल ! रुद्ररूपधारी आप परमेश्वरको लेते हैं। जैसे भगवान् माधव ध्यान करनेपर सारे पाप बारम्बार नमस्कार है। कुण्डल और अङ्गद आदि नष्ट कर देते हैं, उसी प्रकार नियमपूर्वक किया हुआ आभूषणोंसे विभूषित पद्मनाभ ! आपको नमस्कार है। माधव मासका स्रान भी समस्त पापोंको दूर कर देता है। भगवन् ! आप सोये हुए सम्पूर्ण लोकोको जगानेवाले हैं। प्रतिदिन तीर्थ-स्रान, तिलोंद्वारा पितरोंका तर्पण, धर्मघट आपको मेरा प्रणाम है। आप सदा सबके पाप-पुण्यको आदिका दान और श्रीमधुसूदनका पूजन-ये भगवान्को देखा करते हैं। सत्यदेव ! आपको नमस्कार है। संतोष प्रदान करनेवाले हैं; वैशाख मासमें इनका पालन भास्कर ! मुझपर प्रसन्न होइये। दिवाकर ! आपको अवश्य करना चाहिये। वैशाखमें तिल, जल, सुवर्ण, नमस्कार है। प्रभाकर ! आपको नमस्कार है।' अन्न, शक्कर, वस्त्र, गौ, जूता, छाता, कमल या शङ्ख इस प्रकार सूर्यदेवको नमस्कार करके सात बार तथा घड़े-इन वस्तुओंका ब्राह्मणोंको दान करे। तीनों उनकी प्रदक्षिणा करे। फिर द्विज, गौ और सुवर्णका सन्ध्याओंके समय एकाग्रचित्त हो विमलस्वरूपा साक्षात् स्पर्श करके अपने घरमें जाय। वहाँ आश्रमवासी भगवती लक्ष्मीके साथ परमेश्वर श्रीविष्णुका भक्तिपूर्वक अतिथियोंका सत्कार तथा भगवानकी प्रतिमाका पूजन पूजन करना चाहिये। सामयिक फूलों और फलोंसे करे। राजन् ! घरमें पहले भक्तिपूर्वक जितेन्द्रियभावसे भक्तिपूर्वक श्रीहरिका पूजन करनेके पश्चात् यथाशक्ति भगवान् गोविन्दकी विधिवत् पूजा करनी चाहिये। ब्राह्मणोंको भी पूजा करनी चाहिये। पाखण्डियोंसे विशेषतः वैशाखके महीनेमें जो श्रीमधुसूदनका पूजन वार्तालाप नहीं करना चाहिये। जो फूलोद्वारा विधिवत् करता है, उसके द्वारा पूरे एक वर्षतक श्रीमाधवकी पूजा अर्चन करके श्रीमधुसूदनकी आराधना करता है; वह सम्पन्न हो जाती है। वैशाख मास आनेपर जब सूर्यदेव सब पापोंसे मुक्त हो परम पदको प्राप्त होता है ! मेषराशिपर स्थित हो तो श्रीकेशवकी प्रसन्नताके लिये श्रीनारदजी कहते हैं-राजेन्द्र! सुनो, मैं उनके व्रतोंका सञ्चय करना चाहिये। अपने अभीष्टको संक्षेपसे माधवके पूजनकी विधि बतला रहा हूँ। सिद्धिके लिये अन्न, जल, शक्कर, धेनु तथा तिलकी धेनु महाराज ! जिनका कहीं अन्त नहीं है, जो अनन्त और
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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