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________________ ५५२ ********** . अचयस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् • वह जल अत्यन्त मनोहर एवं रमणीय प्रतीत होता है। पार्वतीजीने पूछा- दयानिधे ! भगवान् श्रीकृष्णका आश्चर्यमय सौन्दर्य और श्रीविग्रह कैसा है, मैं उसे सुनना चाहती हूँ, कृपया बतलाइये। महादेवजीने कहा- देवि ! परम सुन्दर वृन्दावनके मध्यभागमें एक मनोहर भवनके भीतर अत्यन्त उज्ज्वल योगपीठ है। उसके ऊपर माणिक्यका बना हुआ सुन्दर सिंहासन है, सिंहासनके ऊपर अष्टदल कमल है, जिसकी कर्णिका अर्थात् मध्यभागमें सुखदायी आसन लगा हुआ है; वही भगवान् श्रीकृष्णका उत्तम स्थान है। उसकी महिमाका क्या वर्णन किया जाय ? वहीं भगवान् गोविन्द विराजमान होते हैं। वैष्णववृन्द उनकी सेवामें लगा रहता है। भगवान्‌का व्रज, उनकी अवस्था और उनका रूप - ये सभी दिव्य हैं। श्रीकृष्ण ही वृन्दावनके अधीश्वर हैं, वे ही व्रजके राजा हैं। उनमें सदा षड्विध ऐश्वर्य विद्यमान रहते हैं। वे व्रजकी बालक-बालिकाओंके एकमात्र प्राण-वल्लभ है और किशोरावस्थाको पार करके यौवनमें पदार्पण कर रहे हैं। उनका शरीर अद्भुत है, वे सबके आदि कारण हैं, किन्तु उनका आदि कोई भी नहीं है। वे नन्दगोपके प्रिय पुत्ररूपसे प्रकट हुए हैं; परन्तु वास्तवमें अजन्मा एवं नित्य ब्रह्म हैं, जिन्हें वेदकी श्रुतियाँ सदा ही खोजती रहती हैं। उन्होंने गोपीजनोंका चित्त चुरा लिया है। वे ही परमधाम हैं। उनका स्वरूप सबसे उत्कृष्ट हैं। उनका श्रीविग्रह दो भुजाओंसे सुशोभित है। वे गोकुलके अधिपति हैं। ऐसे गोपीनन्दन श्रीकृष्णका इस प्रकार ध्यान करना चाहिये भगवान्‌को कान्ति अत्यन्त सुन्दर और अवस्था नूतन है। वे बड़े स्वच्छ दिखायी देते हैं। उनके शरीरकी आभा श्याम रङ्गकी है, जिसके कारण उनकी झाँकी बड़ी मनोहर जान पड़ती है। उनका विग्रह नूतन मेघ मालाके समान अत्यन्त स्निग्ध है। वे कानोंमें मनोहर कुण्डल धारण किये हुए हैं। उनकी कान्ति खिले हुए नील कमलके समान जान पड़ती है। उनका स्पर्श सुखद है। वे सबको सुख पहुँचानेवाले हैं। वे अपनी साँवली [ संक्षिप्त पद्मपुराण छटासे मनको मोहे लेते हैं। उनके केश बहुत ही चिकने, काले और घुंघराले हैं। उनसे सब प्रकारकी सुगन्ध निकलती रहती है। केशोंके ऊपर ललाटके दक्षिण भागमें श्याम रङ्गकी चूड़ाके कारण वे अत्यन्त मनोहर जान पड़ते हैं। नाना रंगके आभूषण धारण करनेसे उनकी दीप्ति बड़ी उज्ज्वल दिखायी देती है। सुन्दर मोरपस उनके मस्तककी शोभा बढ़ाता है। उनकी सज-धज बड़ी सुन्दर है। वे कभी तो मन्दारपुष्पोंसे सुशोभित गोपुच्छके आकारकी बनी हुई चूड़ा (चोटी) धारण करते हैं, कभी मोरपङ्क्के मुकुटसे अलङ्कृत होते हैं और कभी अनेकों मणिमाणिक्योंके बने हुए सुन्दर किरीटोसे विभूषित होते हैं। चञ्चल अलकावली उनके मस्तककी शोभा बढ़ाती है। उनका मनोहर मुख करोड़ों चन्द्रमाओंके समान कान्तिमान् है। ललाटमें कस्तूरीका तिलक है, साथ ही सुन्दर गोरोचनकी बिंदी भी शोभा दे रही है। उनका शरीर इन्दीवरके समान स्निग्ध और नेत्र कमल दलकी भाँति विशाल हैं। वे कुछ-कुछ भौहें नचाते हुए मन्द मुसकानके साथ तिरछी चितवनसे देखा करते हैं। उनकी नासिकाका अग्रभाग रमणीय सौन्दर्यसे युक्त है, जिसके कारण वे अत्यन्त मनोहर जान पड़ते हैं। उन्होंने नासाग्रभागमें गजमोती धारण करके उसकी कान्तिसे त्रिभुवनका मन मोह लिया है। उनका नीचेका ओठ सिन्दूरके समान लाल और चिकना है, जिससे उनकी मनोहरता और भी बढ़ गयी है। वे अपने कानोंमें नाना प्रकारके वर्णोंसे सुशोभित सुवर्णनिर्मित मकराकृत कुण्डल पहने हुए हैं। उन कुण्डलोंकी किरण पड़नेसे उनका सुन्दर कपोल दर्पणके समान शोभा पा रहा है। वे कानोंमें पहने हुए कमल, मन्दारपुष्प और मकराकार कुण्डलसे विभूषित हैं। उनके वक्षःस्थलपर कौस्तुभमणि और श्रीवत्सचिह्न शोभा पा रहे हैं। गलेमें मोतियोंका हार चमक रहा है। उनके विभिन्न अङ्गोंमें दिव्य माणिक्य तथा मनोहर सुवर्णमिश्रित आभूषण सुशोभित हैं। हाथोंमें कड़े, भुजाओंमें बाजूबन्द तथा कमरमें करधनी शोभा दे रही है। सुन्दर मञ्जीरकी सुषमासे चरणोंकी श्री बहुत बढ़ गयी है, जिससे भगवान्का श्रीविग्रह अत्यन्त
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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