SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 547
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पातालखण्ड ] ******* . सीताका आगमन, यज्ञका आरम्भ तथा अश्वमेध कथा श्रवणकी महिमा चलीं। उस समय उन्होंने बहुमूल्य वस्त्र और आभूषण धारण किये थे। क्रमशः नगरीमें पहुँचकर वे सरयू नदीके तटपर गयीं, जहाँ स्वयं श्रीरघुनाथजी विराजमान थे। पातिव्रत्य में तत्पर रहनेवाली सुन्दरी सीता वहाँ जाकर रथसे उतर गयीं और लक्ष्मणके साथ श्रीराम चन्द्रजीके समीप पहुँचकर उनके चरणोंमें लग गयीं प्रेमविहला जानकीको आयी देख श्रीरामचन्द्रजी बोले- 'साध्वि ! इस समय तुम्हारे साथ मैं यशकी समाप्ति करूंगा।' तत्पश्चात् सीता महर्षि वाल्मीकि तथा अन्यान्य ब्रह्मर्षियोंको नमस्कार करके माताओंके चरणोंमें प्रणाम करनेके लिये उत्कण्ठापूर्वक उनके पास गयीं। वीर पुत्रोंको जन्म देनेवाली अपनी प्यारी बहू जानकीको आती देख कौसल्याको बड़ा हर्ष हुआ। उन्होंने सीताको बहुत आशीर्वाद दिया। कैकेयीने भी विदेहनन्दिनीको अपने चरणोंमें प्रणाम करती देखकर आशीर्वाद देते हुए कहा- 'बेटी! तुम अपने पति और पुत्रोंके साथ चिरकालतक जीवित रहो।' इसी प्रकार सुमित्राने भी पुत्रवती जानकीको अपने पैरपर पड़ी देख उत्तम • ५४७ आशीर्वाद प्रदान किया। श्रीरामचन्द्रजीको प्यारी पत्नी सती-साध्वी सीता सबको प्रणाम करके बहुत प्रसन्न हुई। श्रीरघुनाथजीकी धर्मपत्नीको उपस्थित देख महर्षि कुम्भजने सोनेकी सीताको हटा दिया और उसकी जगह उन्हींको बिठाया। उस समय यज्ञमण्डपमें सीताके साथ बैठे हुए श्रीरामचन्द्रजीकी बड़ी शोभा हुई। फिर उत्तम समय आनेपर श्रीरघुनाथजीने यज्ञका कार्य आरम्भ किया। उन्होंने उत्तम बुद्धिवाले वसिष्ठसे पूछा'स्वामिन्! अब इस श्रेष्ठ यज्ञमें कौन-सा आवश्यक कर्तव्य बाकी रह गया है ?' रामकी बात सुनकर महाबुद्धिमान् गुरुदेवने कहा- अब आपको ब्राह्मणोंकी सन्तोषजनक पूजा करनी चाहिये। यह सुनकर श्रीरामचन्द्रजीने महर्षि कुम्भजको पूज्य मानकर सबसे पहले उन्हींका पूजन किया। रत्न और सुवर्णोंकि अनेकों भार, मनुष्योंसे भरे हुए कई देश तथा अत्यन्त प्रीतिदायक वस्तुएँ दक्षिणामें देकर उन्होंने पत्नीसहित अगस्त्य मुनिका सत्कार किया। फिर उत्तम रत्न आदिके द्वारा पत्नीसहित महर्षि च्यवनका पूजन किया। इसी प्रकार अन्यान्य महर्षियों तथा सम्पूर्ण तपस्वी ऋत्विजोंका
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy