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________________ ५४४ · अर्चयस्त्र हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् • हो गये। श्रीराम आदि सभी राजा नेत्रोंसे आनन्दके आँसू वाल्मीकिने इस रामायण नामक महान् काव्यकी रचना किस समय की, किस कारणसे की तथा इसके भीतर किन-किन बातोंका वर्णन है ?" बहाने लगे। वे गीतके पञ्चम स्वरका आलाप सुनकर ऐसे मोहित हुए कि हिल-डुल नहीं सकते थे: चित्रलिखित से जान पड़ते थे। I तत्पश्चात् महर्षि वाल्मीकिने कुश और लवसे कृपापूर्वक कहा- 'वत्स ! तुमलोग नीतिके विद्वानोंमें श्रेष्ठ हो, अपने पिताको पहचानो [ये श्रीरघुनाथजी तुम्हारे पिता हैं; इनके प्रति पुत्रोचित बर्ताव करो]।' मुनिका यह वचन सुनकर दोनों बालक विनीतभावसे पिताके चरणों में लग गये। माताकी भक्तिके कारण उन दोनोंके हृदय अत्यन्त निर्मल हो गये थे। श्रीरामचन्द्रजीने अत्यन्त प्रसन्न होकर अपने दोनों बालकोंको छातीसे लगा लिया। उस समय उन्होंने ऐसा माना कि मेरा धर्म ही इन दोनों पुत्रोंके रूपमें मूर्तिमान् होकर उपस्थित हुआ है । वात्स्यायनजी ! सभामें बैठे हुए लोगोंने भी श्रीरामचन्द्र जीके पुत्रोंका मनोहर मुख देखकर जानकीजीकी पतिभक्तिको सत्य माना। [ संक्षिप्त पद्मपुराण शेषजीके मुखसे इतनी कथा सुनकर वात्स्यायनको सम्पूर्ण धर्मोसे युक्त रामायणके विषयमें कुछ सुननेकी इच्छा हुई अतएव उन्होंने पूछा - 'स्वामिन्! महर्षि शेषजीने कहा- एक समयकी बात है, वाल्मीकिजी महान् वनके भीतर गये, जहाँ ताल, तमाल और खिले हुए पलाशके वृक्ष शोभा पा रहे थे। कोयलकी मीठी तान और भ्रमरोकी गुंजारसे गुंजते रहने के कारण वह वन्यप्रदेश सब ओरसे रमणीय जान पड़ता था। कितने ही मनोहर पक्षी वहाँ बसेरा ले रहे थे। महर्षि जहाँ खड़े थे, उसके पास ही दो सुन्दर क्रौञ्चपक्षी कामबाणसे पीड़ित हो रमण कर रहे थे। दोनोंमें परस्पर स्नेह था और दोनों एक-दूसरेके सम्पर्कमें रहकर अत्यन्त हर्षका अनुभव करते थे। इसी समय एक व्याध वहाँ आया और उस निर्दयीने उन पक्षियोंमेंसे एकको जो बड़ा सुन्दर था, बाणसे मार गिराया। यह देख मुनिको बड़ा क्रोध हुआ और उन्होंने सरिताका पावन जल हाथमें लेकर क्रौञ्चकी हत्या करनेवाले उस निषादको शाप दिया—ओ निषाद ! तुझे कभी भी शाश्वत शान्ति नहीं मिलेगी; क्योंकि तूने इन क्रौन पक्षियोंमेंसे एककी, जो कामसे मोहित हो रहा था,
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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