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________________ ५३८ . अर्जयस्व हृषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . [ संक्षिप्त पद्मपुराण सेनासहित नगरमें प्रवेश किया; जहाँ तीनों लोकोंको राजाओंको श्रीरघुनाथजीने अपने हदयसे लगाया। सुमति पवित्र करनेवाली पुण्यसलिला सरयू श्रीरघुनाथजीकी भी भक्तोपर अनुग्रह करनेवाले श्रीरघुनाथजीका गाद चरण-रजसे पवित्र होकर शरत्कालीन चन्द्रमाके समान आलिङ्गन करके प्रसन्नतापूर्वक उनके सामने खड़े हो स्वच्छ जलसे शोभा पा रही हैं। श्रीरघुनाथजी शत्रुघ्नको गये। तब वक्ताओंमें श्रेष्ठ श्रीरामचन्द्रजी समीप आये हुए पुष्कलके साथ आते देख अपने आनन्दोल्लासको रोक अपने मन्त्रीको ओर देख अत्यन्त हर्षमें भरकर बोलेन सके । वे अपने अश्वरक्षक बन्धुसे मिलनेके लिये ज्यो 'मन्त्रिवर ! बताओ, ये कौन-कौन-से राजा हैं ? तथा ये ही खड़े हुए त्यों ही भ्रातृभक्त शत्रुघ्न उनके चरणोमें पड़ सब लोग यहाँ कैसे पधारे हैं? अपना अश्व कहाँ-कहाँ गया, किसने किसने उसे पकड़ा तथा मेरे महान् बलशाली बन्धुने किस प्रकार उसको छुड़ाया?' सुमतिने कहा-भगवन् ! आप सर्वज्ञ है, भला आपके सामने आज मैं इन सब बातोंका वर्णन कैसे करूँ। आप सबके द्रष्टा है, सब कुछ जानते हैं, तो भी लौकिक रौतिका आश्रय लेकर मुझसे पूछ रहे हैं। तथापि मैं सदाकी भाँति आपकी आज्ञा शिरोधार्य करके कहता हूँ, सुनिये- 'स्वामिन् ! आप समस्त राजाओंके शिरोमणि हैं। आपकी कृपासे आपके अश्वने, जो भालपत्रके कारण बड़ी शोभा पा रहा था, इस पृथ्वीपर सर्वत्र भ्रमण किया है। प्रायः कोई राजा ऐसा नहीं निकला, जिसने अपने मान और बलके घमंडमें आकर अश्वको पकड़ा हो । सबने अपना-अपना राज्य समर्पण करके आपके चरणोंमें मस्तक झुकाया। भला, विजयको अभिलाषा रखनेवाला कौन ऐसा राजा होगा, जो राक्षसराज रावणके प्राण-हन्ता श्रीरघुनाथजीके श्रेष्ठ गये। घावके चिह्नोंसे सुशोभित अपने विनयशील अश्वको पकड़ सके? प्रभो ! आपका मनोहर अश्व भाईको पैरोंपर पड़ा देख श्रीरामचन्द्रजीने उन्हें प्रेमपूर्वक सर्वत्र घूमता हुआ अहिच्छत्रा नगरीमें पहुंचा। वहाँके उठाकर भुजाओंमें कस लिया और उनके मस्तकपर राजा सुमदने जब सुना कि श्रीरामचन्द्रजीका अश्व आया हर्षके आँसू गिराते हुए परमानन्दमें निमग्न हो गये। उस है, तो उन्होंने सेना और पुत्रोंके साथ आकर अपना सारा समय उन्हें जितनी प्रसन्नता हुई, वह वाणीसे परे है- अकण्टक राज्य आपकी सेवामें समर्पित कर दिया। ये उसका वर्णन नहीं हो सकता। तत्पश्चात् पुष्कलने हैं राजा सुमद, जो बड़े-बड़े राजा-प्रभुओंके सेव्य विनयसे विह्वल होकर भगवान्के चरणों में प्रणाम किया। आपके चरणोंमें प्रणाम करते हैं। इनके हृदयमें बहुत उन्हें अपने चरणोंमें पड़ा देख श्रीरघुनाथजीने गोदमें उठा दिनोंसे आपके दर्शनकी अभिलाषा थी। आज अपनी लिया और कसकर छातीसे लगाया। इसी प्रकार कृपादृष्टिसे इन्हें अनुगृहीत कीजिये। अहिच्छत्रा नगरीसे हनुमान्, सुग्रीव, अङ्गद, लक्ष्मीनिधि, प्रतापाग्य, सुबाहु, आगे बढ़नेपर वह अश्व राजा सुबाहुके नगरमें गया, जो सुमद, विमल, नीलरत्न, सत्यवान, वीरमणि, श्रीरामभक्त सब प्रकारके बलसे सम्पन्न हैं। वहाँ राजकुमार दमनने सुरथ तथा अन्य बड़भागी स्नेहियों और चरणोंमें पड़े हुए उस श्रेष्ठ अश्वको पकड़ लिया। फिर तो युद्ध छिड़ा और S
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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