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________________ . अर्जयस्व हृषीकेशं यदीलांस परं पदम् . [संक्षिप्त पद्मपुराण .............................. .................................................................. महान् अभ्युदयसे शोभा पानेवाली सौताजी तो आपके परन्तु इस समय मैं जो बात कह रहा हूँ, उसोको मेरी विना क्षणभर भी जीवित नहीं रह सकतीं । इसलिये मेरा आशा मानकर करो। मैं जानता हूँ मेरी सीता अनिद्वारा अनुरोध तो यही है कि आप पतिव्रता श्रीसौताके साथ शुद्ध, पवित्र और लोकपूजित है, तथापि मैं रहकर इस विशाल राज्य-लक्ष्मीकी रक्षा कीजिये।' लोकापवादके कारण आज उसका त्याग करता हूँ। भरतके ये वचन सुनकर वक्ताओंमें श्रेष्ठ, परम इसलिये तुम जनककिशोरीको वनमें ले जाकर छोड़ धार्मिक श्रीरघुनाथजी इस प्रकार बोले-'भाई ! तुम जो आओ। श्रीरामका यह आदेश सुनते ही भरतजी कुछ कह रहे हो, वह धर्मसम्मत और युक्तियुक्त है। मूर्छित होकर पृथ्वीपर गिर पड़े। सीताका अपवाद करनेवाले धोबीके पूर्वजन्मका वृत्तान्त वात्स्यायनजीने पूछा-स्वामिन् ! जिनको उत्तम प्रादुर्भाव हुआ, जो रतिसे भी बढ़कर सुन्दर थी। इससे कौर्ति सम्पूर्ण जगत्को पवित्र करनेवाली है, उन्हीं राजाको बड़ी प्रसन्नता हुई और उन्होंने भुवनमोहिनी जानकीदेवोके प्रति उस धोबीने निन्दायुक्त वचन क्यों शोभासे सम्पन्न उस कन्याका नाम सीता रख दिया । परम कहे? इसका रहस्य बतलाइये। सुन्दरी सीता एक दिन सखियोंके साथ उद्यान में खेल रही शेषजीने कहा-मिथिला नामकी महापुरीमें थीं। वहाँ उन्हे शुक पक्षीका एक जोड़ा दिखायी दिया, महाराज जनक राज्य करते थे। उनका नाम था REASON सीरध्वज। एक बार वे यज्ञके लिये पृथ्वी जोत रहे थे। उस समय चौड़े मुँहवाली सीता (फालके धंसनेसे जो बड़ा मनोरम था । वे दोनों पक्षी एक पर्वतकी चोटीपर बैठकर इस प्रकार बोल रहे थे-'पृथ्वीपर श्रीराम नामसे प्रसिद्ध एक बड़े सुन्दर राजा होंगे। उनकी बनी हुई गहरी रेखा) के द्वारा एक कुमारी कन्याका महारानी सीताके नामसे विख्यात होंगी। श्रीरामचन्द्रजी
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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