SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 51
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पमा . . . . . . . . . . होकर ओङ्कारयुक्त महात्मा ब्रह्माजीकी उपासना करते थे। शङ्करजीसे कहा। नय, क्रतु, संकल्प, प्राण तथा अर्थ, धर्म, काम, हर्ष, भगवान् श्रीविष्णु बोले-प्रभो! पितामहके शुक्र, बृहस्पति, संवर्त, बुध, शनैश्चर, राहु, समस्त ग्रह, यज्ञमें प्रधान-प्रधान दानव आये हैं। ब्रह्माजीने इनको भी मरुद्गण, विश्वकर्मा, पितृगण, सूर्य तथा चन्द्रमा भी इस यज्ञमें आमन्त्रित किया है। ये सब लोग इसमें विघ्न ब्रह्माजीकी सेवामें उपस्थित थे। दुर्गम कष्टसे तारनेवाली डालनेका प्रयत्न कर रहे हैं। परन्तु जबतक यज्ञ समाप्त गायत्री, समस्त वेद-शास्त्र, यम-नियम, सम्पूर्ण अक्षर, न हो जाय तबतक हमलोगोंको क्षमा करना चाहिये । इस लक्षण, भाष्य तथा सब शास्त्र देह धारण करके वहाँ यज्ञके समाप्त हो जानेपर देवताओंको दानवोंके साथ युद्ध विद्यमान थे। क्षण, लव, मुहूर्त, दिन, रात्रि, पक्ष, मास करना होगा। उस समय आपको ऐसा यत्र करना और सम्पूर्ण ऋतुएँ अर्थात् इनके देवता महात्मा चाहिये, जिससे पृथ्वीपरसे दानवोंका नामो-निशान मिट ब्रह्माजीकी उपासना करते थे। जाय। आपको मेरे साथ रहकर इन्द्रकी विजयके लिये इनके सिवा अन्यान्य श्रेष्ठ देवियाँ-ही, कीर्ति, प्रयत्न करना उचित है। इन दानवोंका धन लेकर द्युति, प्रभा, धृति, क्षमा, भूति, नीति, विद्या, मति, श्रुति, राहगीरों, ब्राह्मणों तथा दुःखी मनुष्योंमें बाँट दें। स्मृति, कान्ति, शान्ति, पुष्टि, क्रिया, नाच-गानमें कुशल भगवान् श्रीविष्णुकी यह बात सुनकर ब्रह्माजीने समस्त दिव्य अप्सराएँ तथा सम्पूर्ण देव-माताएँ भी कहा-'भगवन् ! आपकी बात सुनकर ये दानव कुपित ब्रह्माजीकी सेवामें उपस्थित थीं। विप्रचित्ति, शिबि, हो सकते हैं; किन्तु इस समय इन्हें क्रोध दिलाना आपको शङ्क, केतुमान, प्रह्लाद, बलि, कुम्भ, संहाद, अनुहाद, भी अभीष्ट न होगा। अतः रुद्र एवं अन्य देवताओंके वृषपर्वा, नमुचि, शम्बर, इन्द्रतापन, वातापि, केशी, राहु साथ आपको क्षमा करना चाहिये। सत्ययुगके अन्त में और वृत्र-ये तथा और भी बहुत-से दानव, जिन्हें जब यह यज्ञ समाप्त हो जायगा, उस समय मैं अपने बलपर गर्व था, ब्रह्माजीकी उपासना करते हुए इस आपलोगोंको तथा इन दानवोंको विदा कर दूंगा; उसी प्रकार बोले। . समय आप सब लोग सन्धि या विग्रह, जो उचित हो, दानवोंने कहा-भगवन् ! आपने ही कीजियेगा।' हमलोगोंकी सृष्टि की है, हमें तीनों लोकोंका राज्य दिया पुलस्त्यजी कहते है-तदनन्तर भगवान् है तथा देवताओंसे अधिक बलवान् बनाया है। ब्रह्माजीने पुनः उन दानवोंसे कहा-'तुम्हें देवताओंके पितामह ! आपके इस यज्ञमें हमलोग कौन-सा कार्य साथ किसी प्रकार विरोध नहीं करना चाहिये । इस समय करें? हम स्वयं ही कर्तव्यका निर्णय करनेमें समर्थ हैं; तुम सब लोग परस्पर मित्रभावसे रहकर मेरा कार्य अदितिके गर्भसे पैदा हुए इन बेचारे देवताओंसे क्या सम्पन्न करो।' काम होगा; ये तो सदा हमारेद्वारा मारे जाते और दानवोंने कहा-पितामह ! आपके प्रत्येक अपमानित होते रहते हैं। फिर भी आप तो हम सबके आदेशका हमलोग पालन करेंगे। देवता हमारे छोटे भाई ही पितामह है; अतः देवताओंको भी साथ लेकर यज्ञ है, अतः उन्हें हमारी ओरसे कोई भय नहीं है। पूर्ण कीजिये। यज्ञ समाप्त होनेपर राज्यलक्ष्मीके विषयमें दानवोंकी यह बात सुनकर ब्रह्माजीको बड़ा सन्तोष हमारा देवताओंके साथ फिर विरोध होगा; इसमें तनिक हुआ। थोड़ी ही देर बाद उनके यज्ञका वृत्तान्त सुनकर भी सन्देह नहीं है, किन्तु इस समय हम चुपचाप इस ऋषियोंका एक समुदाय आ पहुँचा । भगवान् श्रीविष्णुने यज्ञको देखेंगे-देवताओंके साथ युद्ध नहीं छेड़ेंगे। उनका पूजन किया। पिनाकधारी महादेवजीने उन्हें पुलस्त्यजी कहते हैं-दानवोंके ये गर्वयुक्त वचन आसन दिया तथा ब्रह्माजीकी आज्ञासे वसिष्ठजीने उन सुनकर इन्द्रसहित महायशस्वी भगवान् श्रीविष्णुने सबको अर्घ्य निवेदित करके उनका कुशल-क्षेम पूछा संप पु. ३
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy