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________________ पातालखण्ड ] • हनुमान्जीके द्वारा वीरसिंहकी पराजय और वीरमणिका आत्मसमर्पण . ४९३ राजाके रथपर गिरा। तब पुष्कलने अपना मातृ- करनेवाले श्रीरघुनाथजीका उन्होंने मन-ही-मन स्मरण भक्तिजनित पुण्य अर्पण करके दूसरा बाण चलाया; किन्तु किया और तीसरा बाण छोड़ दिया। वह बाण सर्पके राजाने अपने महान् बाणसे उसको भी काट दिया। इससे समान विषैला और सूर्यके समान प्रज्वलित था। उसने पुष्कलके मनमें बड़ा खेद हुआ। वे सोचने लगे-'अब राजाकी छातीमें चोट पहुँचाकर उन्हें मूर्च्छित कर दिया। क्या करना चाहिये ?' इतनेहीमें उन्हें एक उपाय सूझ राजाके मूर्छित होते ही उनकी सारी सेना हाहाकार मचाती गया। वे श्रेष्ठ अस्त्रोंके ज्ञाता तो थे ही, अपनी पीड़ा दूर हुई भाग चली और पुष्कल विजयी हुए। हनुमानजीके द्वारा वीरसिंहकी पराजय, वीरभद्रके हाथसे पुष्कलका वध, शङ्करजीके द्वारा शत्रुघ्नका मूर्छित होना, हनुमानके पराक्रमसे शिवका संतोष, हनुमानजीके उद्योगसे मरे हुए वीरोंका जीवित होना, श्रीरामका प्रादुर्भाव और वीरमणिका आत्मसमर्पण शेषजी कहते हैं-मुने ! हनुमान्जीने वीरसिंहके उस विशाल सेनामें शत्रुघ्नके सैनिकोंके साथ युद्ध पास जाकर कहा-'वीरवर ! ठहरो, कहाँ जाते हो? मैं करनेके लिये गये। उनका उद्देश्य था भक्तोंकी रक्षा एक ही क्षणमें तुम्हें परास्त करूंगा।' वानरके मुखसे करना। वे पूर्वकालमें जैसे त्रिपुरसे युद्ध करनेके लिये ऐसी बढ़ी-चढ़ी बात सुनकर वीरसिंह क्रोधमें भर गये गये थे, उसी प्रकार वहाँ भी अपने पार्षदों और और मेघके समान गम्भीर ध्वनि करनेवाले धनुषको प्रमथ-गणोंसहित पृथ्वीतलको कैंपाते हुए जा पहुंचे। खींचकर तीक्ष्ण बाणोंकी वर्षा करने लगे। उस समय महाबली शत्रुघ्नने जब देखा कि सर्वदेवशिरोमणि साक्षात् रणभूमिमें उनकी ऐसी शोभा हो रही थी, मानो आषाढ़के महेश्वर पधारे हैं, तब वे भी उनका सामना करनेके लिये महीनेमें धारावाहिक वृष्टि करनेवाला मनोहर मेघ शोभा रणभूमिमें गये। शत्रुघ्नको आया देख पिनाकधारी रुद्रने पा रहा हो। उन तीखे बाणोंको अपने शरीरपर लगते देख वीरभद्रसे कहा-'तुम मेरे भक्तको पीड़ा देनेवाले हनुमान्जीने वज्रके समान मुक्का वीरसिंहकी छातीमें पुष्कलसे युद्ध करो।' फिर नन्दीको उन्होंने महाबली मारा । मुष्टिका-प्रहार होते ही वे मूर्च्छित होकर धरतीपर हनुमान्से लड़नेके लिये भेजा। तदनन्तर कुशध्वजके गिर पड़े। अपने चाचाको मूर्च्छित देख राजकुमार पास प्रचण्डको, सुबाहुके पास भृङ्गीको और सुमदके शुभाङ्गद वहाँ आ पहुँचा । रुक्माङ्गदकी भी मूर्छा दूर हो पास चण्डनामक अपने गणको भेजकर युद्धके लिये चुकी थी; अतः वह भी युद्ध क्षेत्रमें आ धमका। वे दोनों आदेश दिया। महारुद्रके प्रधान गण वीरभद्रको आया भाई भयङ्कर संग्राम करते हुए हनुमान्जीके पास गये। देख पुष्कल अत्यन्त उत्साहपूर्वक उनसे युद्ध करनेको उन दोनों वीरोंको समर-भूमिमें आया देख हनुमानजीने आगे बढ़े। उन्होंने पाँच बाणोंसे वीरभद्रको घायल उन्हें रथ और धनुषसहित अपनी पूँछमें लपेट लिया और किया। उनके बाणोंसे क्षत-विक्षत होकर वीरभद्रने पृथ्वीपर बड़े वेगसे पटका। इससे वे दोनों राजकुमार त्रिशूल हाथमें लिया; किन्तु महाबली पुष्कलने एक ही तत्काल मूर्छित हो गये। इसी प्रकार बलमित्र भी क्षणमें उस त्रिशूलको काटकर विकट गर्जना की। सुमदके साथ बहुत देरतक युद्ध करके अन्तमें मूर्छाको अपने त्रिशूलको कटा देख रुद्रके अनुगामी महाबली प्राप्त हुए। वीरभद्रको बड़ा क्रोध हुआ और उन्होंने महारथी तदनन्तर, अपने आत्मीय जनोंको मूर्च्छित देख पुष्कलके रथको तोड़ डाला । वीरभद्रके वेगसे चकनाचूर भक्तोंकी पीड़ा दूर करनेवाले भगवान् महेश्वर स्वयं ही हुए रथको त्याग कर महाबली पुष्कल पैदल हो गये
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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