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________________ 454 अर्थयस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . [संक्षिप्त पापुराण जायें। शालग्रामशिलाका स्पर्श इस पुल्कसके महान् जैसे आगकी चिनगारी रूईको।* जिसके मस्तकपर पातकको भस्म कर डाले।' वैष्णव महात्माके इतना तुलसी, छातीपर शालग्रामकी मनोहर शिला तथा मुख या कहते ही भगवान् विष्णुके पार्षद, जिनका स्वरूप बड़ा कानमें रामनाम हो वह तत्काल मुक्त हो जाता है। इस अद्भुत था, उस पुल्कसके निकट आ पहुँचे; पुल्कसके मस्तकपर भी पहलेसे ही तुलसी रखी हुई है, शालग्रामको शिलाके स्पर्शसे उसके सारे पाप नष्ट हो इसकी छातीपर शालग्रामकी शिला है तथा अभी तुरंत ही गये थे। वे पार्षद पीताम्बर धारण किये शङ्ख, चक्र, गदा इसको श्रीरामका नाम भी सुनाया गया है; अतः इसके और पद्मसे सुशोभित हो रहे थे। उन्होंने आते ही उस पापोंका समूह दग्ध हो गया और अब इसका शरीर पवित्र दुःसह लोहपाशसे पुल्कसको मुक्त कर दिया। उस हो चुका है। तुमलोगोंको शालग्रामशिलाकी महिमाका महापापीको छुटकारा दिलानेके बाद वे यमदूतोंसे ठीक-ठीक ज्ञान नहीं है; यह दर्शन, स्पर्श अथवा पूजन बोले-'तुमलोग किसकी आज्ञाका पालन करनेवाले करनेपर तत्काल ही सारे पापोंको हर लेती है। हो, जो इस प्रकार अधर्म कर रहे हो? यह पुल्कस तो इतना कहकर भगवान् विष्णुके पार्षद चुप हो गये। किसलिये तुमने इसे बन्धनमें डाला था ?' उनकी बात सुनायी तथा श्रीरघुनाथजीके भजनमें लगे रहनेवाले वे सुनकर यमदूत बोले-'यह पापी है, हमलोग वैष्णव महात्मा भी यह सोचकर कि 'यह यमराजके धर्मराजकी आज्ञासे इसे ले जानेको उद्यत हुए हैं, इसने पाशसे मुक्त हो गया और अब परमपदको प्राप्त होगा' कभी मनसे भी किसी प्राणीका उपकार नहीं किया है। बहुत प्रसन्न हुए। इसी समय देवलोकसे बड़ा ही इसने जीवहिंसा जैसे बड़े-बड़े पाप किये हैं। तीर्थ- मनोहर, अत्यन्त अद्भुत और उज्ज्वल विमान आया तथा यात्रियोंको तो इसने अनेकों बार लूटा है। यह सदा वह पुल्कस उसपर आरूढ हो बड़े-बड़े पुण्यवानोंद्वारा परायी स्त्रियोंका सतीत्व नष्ट करनेमें ही लगा रहता था। सेवित स्वर्गलोकको चला गया। वहाँ प्रचुर भोगोंका सभी तरहके पाप इसने किये है; अतः हमलोग इस उपभोग करके वह फिर इस पृथ्वीपर आया और पापीको ले जानेके उद्देश्यसे ही यहाँ उपस्थित हुए काशीपुरीके भीतर एक शुद्ध ब्राह्मणवंशमें जन्म लेकर हैं। आपलोगोंने सहसा आकर क्यों इसे बन्धनसे मुक्त उसने विश्वनाथजीकी आराधना की एवं अन्तमें कर दिया ?' परमपदको प्राप्त कर लिया। वह पुल्कस पापी था तो भी विष्णुदूत बोले-यमदूतो ! ब्रह्महत्या आदिका साधु-संगके प्रभावसे शालग्रामशिलाका स्पर्श पाकर पाप हो या करोड़ों प्राणियोंके वध करनेका, शालग्राम- यमदूतोंकी भयङ्कर पीड़ासे मुक्त हो परमपदको पा गया। शिलाका स्पर्श सबको क्षणभरमें जला डालता है। राजन् ! यह मैंने तुम्हें शालग्रामशिलाके पूजनकी महिमा जिसके कानोंमें अकस्मात् भी रामनाम पड़ जाता है, बतलायी है, इसका श्रवण करके मनुष्य सब पापोंसे छूट उसके सारे पापोंको वह उसी प्रकार भस्म कर डालता है, जाता और भोग तथा मोक्षको प्राप्त होता है। * रामेति नाम यच्ोत्रे विश्रम्भादागतं यदि / करोति पापसंदाहं तूलं वहिकणो यथा // (20 / 80)
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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