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________________ 14 * अर्चयस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . [संक्षिप्त पापुराण लगाते हुए तुरंत ही विमानसे उतर पड़े। सहायकोसहित करुणासागर श्रीरघुनाथजीने अपने छोटे भाईको गले श्रीरामचन्द्रजीको भूमिपर उतरे देख भरतजी हर्षके आँसू लगाकर प्रधान मन्त्रियोंको भी प्रणाम किया तथा सबसे बहाते हुए उनके सामने दण्डकी भाँति धरतीपर पड़ गये। आदरपूर्वक कुशल-समाचार पूछा। इसके बाद भाई श्रीरघुनाथजीने भी उन्हें दण्डकी भाँति पृथ्वीपर पड़ा देख भरतके साथ वे पुष्पक विमानपर जा बैठे। वहाँ भरतजीने हर्षपूर्ण दृष्टि से देखते हुए अपनी दोनों भुजाओंसे उठाकर अपनी प्रातृ-पत्नी पतिव्रता सीताजीको देखा, जो अत्रिकी छातीसे लगा लिया। आरम्भमें श्रीरामचन्द्रजीके बारंबार भार्या अनसूया तथा अगस्त्यकी पत्नी लोपामुद्राकी भाँति उठानेपर भी भरतजी उठे नहीं, अपितु अपने दोनों जान पड़ती थीं। पतिव्रता जनक-किशोरीका दर्शन करके हाथोंसे भगवान्के चरण पकड़कर फूट-फूटकर रोते रहे। भरतजीने उन्हें सम्मानपूर्वक प्रणाम किया और कहा , भरतजीने कहा-महाबाहु भगवान् श्रीराम ! मैं 'माँ ! मैं महामूर्ख हैं: मेरे द्वारा जो अपराध हो गया है, दुष्ट, दुराचारी और पापी हूँ मुझपर कृपा कीजिये। आप उसे क्षमा करना; क्योंकि आप-जैसी पतिव्रताएँ सबका दयाके सागर हैं, अपनी दयासे ही मुझे अनुगृहीत भला करनेवाली ही होती हैं।' परम सौभाग्यवती जनककीजिये। भगवन् ! जिन्हें सीताजीके कोमल हाथोंका किशोरीने भी अपने देवर भरतकी ओर आदरपूर्ण दृष्टि स्पर्श भी कठोर जान पड़ता था, आपके उन्हीं चरणोंको डालकर उन्हें आशीर्वाद दिया तथा उनका कुशल-मङ्गल मेरे कारण वनमें भटकना पड़ा! पूछा। उस श्रेष्ठ विमानपर आरूढ़ होकर सब-के-सब यों कहकर भरतजीने दीनभावसे आँसू बहाते हुए आकाशमें आ गये; फिर एक ही क्षणमें श्रीरामचन्द्रजीने बारबार श्रीरघुनाथजीके चरणोंका आलिङ्गन किया और देखा कि पिताकी राजधानी अयोध्या अब बिलकुल हर्षसे विह्वल होकर उनके सामने हाथ जोड़े खड़े हो गये। अपने निकट है। श्रीरामका नगर-प्रवेश, माताओंसे मिलना, राज्य-ग्रहण करना तथा रामराज्यकी सुव्यवस्था शेषजी कहते हैं-अपनी राजधानीको देखकर शेषजी कहते हैं-भरतजीके ये वचन सुनकर भगवान् श्रीरामचन्द्रजीको बड़ी प्रसन्नता हुई। इधर मन्त्रवेत्ताओंमें श्रेष्ठ सुमुखने अयोध्यापुरीको अनेक भरतने अपने मित्र एवं सचिव सुमुखको नागरिक- प्रकारकी सजावट एवं तोरणोंसे सुशोभित करनेके लिये उत्सवका प्रबन्ध करनेके लिये नगरके भीतर भेजा। उसके भीतर प्रवेश किया। नगरमें जाकर उसने सब भरतजी बोले-नगरके सब लोग शीघ्र ही लोगोंमें श्रीरामके आगमन-महोत्सवकी घोषणा करा दी। श्रीरघुनाथजीके आगमनका उत्सव आरम्भ करें। लोगोंने जब सुना कि श्रीरघुनाथजी अयोध्यापुरीके निकट घर-घरमें सजावट की जाय, सड़कें झाड़-बुहारकर साफ आ गये हैं, तब उन्हें बड़ा हर्ष हुआ; क्योंकि वे पहले की जायें और उनपर चन्दन-मिश्रित जलका छिड़काव भगवान्के विरहसे दुःखी हो अपने सुखभोगका परित्याग करके उनके ऊपर फूल बिछा दिये जायें। हर एक घरके कर चुके थे। वैदिक ज्ञानसे सम्पन्न पवित्र ब्राह्मण आँगनमें नाना प्रकारकी ध्वजाएँ फहरायी जायें, हाथोंमें कुश लिये धोती और चादरसे सुसज्जित हो प्रकाशका प्रबन्ध हो और सर्वतोभद्र आदि चित्र अङ्कित श्रीरामचन्द्रजीके पास गये। जिन्होंने संग्राम-भूमिमें किये जायें। श्रीरामका आगमन सुनकर हर्षमें भरे हुए अनेकों वीरोंपर विजय पायी थी, वे धनुष-बाण धारण लोग मेरे कथनानुसार नगरकी शोभा बढ़ानेवाली करनेवाले श्रेष्ठ और सूरमा क्षत्रिय भी उनके समीप गये। भाँति-भांतिकी रचना करें। धन-धान्यसे समृद्ध वैश्य भी सुन्दर वस्त्र पहनकर
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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