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________________ ३६० • अर्चयस्व हषीकेश यदीच्छसि परं पदम् . [ संक्षिप्त पद्मपुराण नारदजीने कहा-राजन् ! मैं इस विषयमें एक निवास करता है, वह उस परमपदको प्राप्त होता है जहाँ संवाद सुनाऊँगा, जो वाराणसीके गुणोंसे सम्बन्ध जानेपर शोकसे पिण्ड छूट जाता है। काशीपुरीमें रखनेवाला है। उस संवादके श्रवणमात्रसे मनुष्य ब्रह्म- रहनेवाले जीव जन्म, मृत्यु और वृद्धावस्थासे रहित हत्याके पापसे छुटकारा पा जाता है। पूर्वकालकी बात परमधामको प्राप्त होते हैं। उन्हें वही गति प्राप्त होती है, है, भगवान् शङ्कर मेरुगिरिके शिखरपर विराजमान थे जो पुनः मृत्युके बन्धनमें न आनेवाले मोक्षाभिलाषी तथा पार्वती देवी भी वहीं दिव्य सिंहासनपर बैठी थीं। पुरुषोंको मिलती है तथा जिसे पाकर जीव कृतार्थ हो उन्होंने महादेवजीसे पूछा-'भक्तोंके दुःख दूर करनेवाले जाता है। अविमुक्त क्षेत्रमें जो उत्कृष्ट गति प्राप्त होती है देवाधिदेव ! मनुष्य शीघ्र ही आपका दर्शन कैसे पा वह अन्यत्र दान, तपस्या, यज्ञ और विद्यासे भी नहीं मिल सकता है? समस्त प्राणियोंके हितके लिये यह बात सकती। जो चाण्डाल आदि घृणित जातियोंमें उत्पन्न हैं मुझे बताइये। तथा जिनकी देह विशिष्ट पातकों और पापोंसे परिपूर्ण है, भगवान् शिव बोले-देवि! काशीपुरी मेरा उन सबकी शुद्धिके लिये विद्वान् पुरुष अविमुक्त क्षेत्रको परम गुह्यतम क्षेत्र है। वह सम्पूर्ण भूतोंको संसार- ही श्रेष्ठ औषध मानते हैं। अविमुक्त क्षेत्र परम ज्ञान है, सागरसे पार उतारनेवाली है। वहाँ महात्मा पुरुष अविमुक्त क्षेत्र परम पद है, अविमुक्त क्षेत्र परम तत्त्व है भक्तिपूर्वक मेरी भक्तिका आश्रय ले उत्तम नियमोंका और अविमुक्त क्षेत्र परम शिव-परम कल्याणमय है। पालन करते हुए निवास करते हैं। वह समस्त तीर्थों और जो मरणपर्यन्त रहनेका नियम लेकर अविमुक्त क्षेत्रमें सम्पूर्ण स्थानोंमें उत्तम है। इतना ही नहीं, अविमुक्त क्षेत्र निवास करते हैं, उन्हें अन्तमें मैं परमज्ञान एवं परमपद मेरा परम ज्ञान है। वह समस्त ज्ञानोंमें उत्तम है। देवि! प्रदान करता हूँ। वाराणसीपुरीमें प्रवेश करके बहनेवाली यह वाराणसी सम्पूर्ण गोपनीय स्थानोंमें श्रेष्ठ तथा मुझे त्रिपथगामिनी गङ्गा विशेषरूपसे सैकड़ों जन्मोंका पाप अत्यन्त प्रिय है। मेरे भक्त वहाँ जाते तथा मुझमें ही नष्ट कर देती हैं। अन्यत्र गङ्गाजीका स्रान, श्राद्ध, दान, प्रवेश करते हैं। वाराणसीमें किया हुआ दान, जप, होम, तप, जप और व्रत सुलभ हैं; किन्तु वाराणसीपुरीमें रहते यज्ञ, तपस्या, ध्यान, अध्ययन और ज्ञान-सब अक्षय हुए इन सबका अवसर मिलना अत्यन्त दुर्लभ है। होता है। पहलेके हजारों जन्मोंमें जो पाप संचित किया वाराणसीपुरीमें निवास करनेवाला मनुष्य जप, होम, दान गया हो, वह सब अविमुक्त क्षेत्रमें प्रवेश करते ही नष्ट एवं देवताओंका नित्यप्रति पूजन करनेका तथा निरन्तर हो जाता है। वरानने ! ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, वायु पीकर रहनेका फल प्राप्त कर लेता है। पापी, शठ वर्णसङ्कर, स्त्रीजाति, म्लेच्छ तथा अन्यान्य मिश्रित और अधार्मिक मनुष्य भी यदि वाराणसीमें चला जाय तो जातियोंके मनुष्य, चाण्डाल आदि, पापयोनिमें उत्पन्न वह अपने समूचे कुलको पवित्र कर देता है। जो जीव, कीड़े, चीटियाँ तथा अन्य पशु-पक्षी आदि जितने वाराणसीपुरीमे मेरी पूजा और स्तुति करते हैं, वे सब भी जीव हैं, वे सब समयानुसार अविमुक्त क्षेत्रमें मरनेपर पापोंसे मुक्त हो जाते हैं। देवदेवेश्वरि ! जो मेरे भक्तजन मेरे अनुप्रहसे परम गतिको प्राप्त होते हैं। मोक्षको वाराणसीपुरीमें निवास करते हैं, वे एक ही जन्ममें परम अत्यन्त दुर्लभ और संसारको अत्यन्त भयानक समझकर मोक्षको पा जाते हैं। परमानन्दकी इच्छा रखनेवाले मनुष्यको काशीपुरीमें निवास करना चाहिये । जहाँ-तहाँ ज्ञाननिष्ठ पुरुषोंके लिये शास्त्रोंमें जो गति प्रसिद्ध है, वही मरनेवालेको संसार-बन्धनसे छुड़ानेवाली सद्गति तपस्यासे अविमुक्त क्षेत्रमें मरनेवालेको प्राप्त हो जाती है। भी मिलनी कठिन है। [किन्तु वाराणसीपुरीमें बिना अविमुक्त क्षेत्रमें देहावसान होनेपर साक्षात् परमेश्वर मैं तपस्याके ही ऐसी गति अनायास प्राप्त हो जाती है।] जो स्वयं ही जीवको तारक ब्रह्म (राम-नाम) का उपदेश विद्वान् सैकड़ों विघ्नोंसे आहत होनेपर भी काशीपुरीमें करता हूँ। वरणा और असी नदियोंके बीचमें वाराणसीपुरी
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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