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________________ ३४० अर्चयस्व इषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . [ संक्षिप्त पद्मपुराण राजन् ! जो उस तीर्थमें कपिला गौका दान करता है, वह जाना चाहिये । वहाँ नान करनेसे मनुष्य गणपति-पदको उस गौके तथा उससे होनेवाले गोवंशके शरीरमे जितने प्राप्त होता है। तत्पश्चात् स्कन्दतीर्थकी यात्रा करे। वह रोएँ होते हैं, उतने हजार वर्षातक रुद्रलोकमें सम्मान- सब पापोंका नाश करनेवाला है। वहाँ स्नान करने मात्रसे पूर्वक रहता है। जन्मभरका किया हुआ पाप नष्ट हो जाता है। पुनः तदनन्तर नन्दि-तीर्थमें जाकर वहाँ स्रान करे; इससे वहाँके आङ्गिरस तीर्थमें जाकर स्नान करे, इससे एक उसपर नन्दीश्वर प्रसन्न होते है और वह सोमलोकमें हजार गोदानका फल मिलता है तथा रुद्रलोकमें सम्मान सम्मानपूर्वक निवास करता है। इसके बाद व्यासतीर्थकी प्राप्त होता है। आङ्गिरस तीर्थसे लागल तीर्थमें जाना यात्रा करे। व्यासतीर्थ एक तपोवनके रूपमें है। चाहिये। वह भी सब पापोंका नाश करनेवाला है। पूर्वकालमें वहाँ महानदी नर्मदाको व्यासजीके भयसे महाराज ! वहाँ जाकर यदि मनुष्य स्रान करे तो सात लौटना पड़ा था । व्यासजीने हुंकार किया, जिससे नर्मदा जन्मके किये हुए पापोंसे छुटकारा पा जाता है-इसमें उनके स्थानसे दक्षिण दिशाकी ओर होकर बहने लगी। तनिक भी सन्देह नहीं है। वहाँसे वटेश्वर तीर्थ और राजन् ! जो उस तीर्थको परिक्रमा करता है, उसपर सर्वतीर्थकी यात्रा करे । सर्वतीर्थ अत्युत्तम तीर्थ है। वहाँ व्यासजी संतुष्ट होते और उसे मनोवाञ्छित फल प्रदान नान करनेसे सहस्र गोदानका फल मिलता है। उसके करते हैं। जो मनुष्य परम तेजस्वी भगवान् व्यासको बाद सङ्गमेश्वर तीर्थमें जाना चाहिये। यह सब पापोंका प्रतिमाको वेदीसहित सूत्रसे आवेष्टित करता है, वह अपहरण करनेवाला उत्तम तीर्थ है। वहाँसे भद्रतीर्थ में शङ्करजीकी भाँति अनन्त कालतक शिवलोकमें विहार जाकर जो मनुष्य दान करता है, उसका वह सारा दान करता है । इसके बाद एरण्डीतीर्थकी यात्रा करनी चाहिये, कोटिगुना अधिक हो जाता है। वह एक उत्तम तीर्थ है। वहाँ नर्मदा-एरण्डी-संगमके तत्पश्चात् अङ्गारेश्वर तीर्थमे जाकर स्नान करे। वहाँ जलमें स्नान करनेसे मनुष्य सब पातकोंसे मुक्त हो जाता नहानेमात्रसे मनुष्य रुद्रलोकमें प्रतिष्ठित होता है, जो है। एरण्डी नदी तीनों लोकोंमें विख्यात और सब पापोंका अङ्गारक-चतुर्थीको वहाँ स्रान करता है, वह भगवान् नाश करनेवाली है। आश्विन मासमें शुक्लपक्षकी अष्टमी विष्णुके शासनमें रहकर अनन्त कालतक आनन्दका तिथिको वहाँ पवित्र भावसे स्रान करके उपवास अनुभव करता है। अयोनि-सङ्गम-तीर्थमें स्नान करनेसे करनेवाला मनुष्य यदि एक ब्राह्मणको भी भोजन करा दे मनुष्य गर्भमें नहीं आता । जो पाण्डवेश्वर तीर्थमें जाकर तो उसे एक करोड़ ब्राह्मणोंको भोजन करानेका फल प्राप्त वहाँ स्नान करता है, वह अनन्त कालतक सुखी तथा होता है। जो मनुष्य भक्तिभावसे युक्त होकर नर्मदा- देवता और असुरोंके लिये अवध्य होता है। उत्तरायण एरण्डी-संगममें स्नान करता है अथवा मस्तकपर आनेपर कम्बोजकेश्वर तीर्थमें जाकर स्नान करे। ऐसा नर्मदेश्वरकी मूर्ति रखकर नर्मदाके जलसे मिले हुए करनेसे मनुष्य जिस वस्तुकी इच्छा करता है, वही उसे एरण्डीके जलमें गोता लगाता है, वह सब पापोंसे मुक्त प्राप्त हो जाती है। तदनन्तर चन्द्रभागामें जाकर स्रान हो जाता है। राजन् ! जो उस तीर्थकी परिक्रमा करता है, करे । वहाँ नहानेमानसे मनुष्य सोमलोकमें प्रतिष्ठित होता उसके द्वारा सात द्वीपोंसे युक्त समूची पृथ्वीकी परिक्रमा है। इसके बाद शक्रतीर्थकी यात्रा करे। वह सर्वत्र हो जाती है। विख्यात, देवराज इन्द्रद्वारा सम्मानित तथा सम्पूर्ण - तदनन्तर सुवर्णतिलक नामक तीर्थमें स्रान करके देवताओंसे भी अभिवन्दित है। जो मनुष्य वहाँ स्नान सुवर्ण दान करे। ऐसा करनेवाला पुरुष सोनेके विमानपर करके सुवर्ण दान करता है अथवा नीले रंगका साँड़ बैठकर रुद्रलोकमें जाता और सम्मानपूर्वक वहाँ निवास छोड़ता है, वह उस साँड़के तथा उससे उत्पन्न होनेवाले करता है। उसके बाद नर्मदा और इक्षुनदीके सङ्गममें गोवंशके शरीरमें जितने रोएँ होते हैं, उतने हजार वर्षातक
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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