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________________ 705 A The * तुम कलम असते अलि स्वर्ग-खण्ड & TIGER Hot ॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥ संक्षिप्त पद्मपुराण THE RSPP - ★ - आदि सृष्टिके क्रमका वर्णन ★ पश्चात् इस सृष्टिकी कोई भी वस्तु शेष नहीं रह गयी थी। उस समय केवल ज्योतिःस्वरूप ब्रह्म ही शेष था, जो सबको उत्पन्न करनेवाला है। वह ब्रह्म नित्य, निरञ्जन, शान्त, निर्गुण, सदा ही निर्मल, आनन्दधाम और शुद्धस्वरूप है। संसार -बन्धनसे मुक्त होनेकी अभिलाषा रखनेवाले साधु पुरुष उसीको जाननेकी इच्छा करते हैं। वह ज्ञानस्वरूप होनेके कारण सर्वज्ञ, अनन्त, अजन्मा, अविकारी, अविनाशी, नित्यशुद्ध, अच्युत व्यापक तथा सबसे महान् है। सृष्टिका समय आनेपर उस ब्रह्मने वैकारिक जगत्‌को अपनेमें लीन जानकर पुनः उसे उत्पन्न करनेका विचार किया। तब ब्रह्मसे प्रधान (मूल प्रकृति ) प्रकट हुआ। प्रधानसे महत्तत्त्वकी उत्पत्ति हुई, जो सात्विक, राजस और तामस भेदसे तीन प्रकारका है। यह महत्तत्त्व प्रधानके द्वारा सब ओरसे आवृत है। फिर महत्तत्त्वसे वैकारिक (सात्त्विक), तैजस ( राजस) और भूतादिरूप तामस - तीन प्रकारका अहंकार उत्पन्न हुआ। जिस प्रकार प्रधानसे महत्तत्त्व आवृत है, उसी प्रकार महत्तत्त्वसे अहंकार भी आवृत है। तत्पश्चात् भूतादि नामक तामस अहंकारने विकृत होकर भूत और तन्मात्राओंकी सृष्टि की। इन्द्रियाँ तैजस कहलाती हैं—वे राजस अहंकारसे प्रकट हुई हैं। इन्द्रियोंके अधिष्ठाता दस देवता वैकारिक कहे गये हैं— उनकी उत्पत्ति सात्त्विक अहंकारसे हुई है तत्वका विचार करनेवाले विद्वानोंने मनको ग्यारहवीं - नमामि गोविन्दपदारविन्दं सवेन्दिरानन्दनमुत्तमाढ्यम् । जगजनानां हृदि संनिविष्टं महाजनैकायनमुत्तमोत्तमम् ॥ * ऋषि बोले- उत्तम व्रतका पालन करनेवाले रोमहर्षणजी ! आप पुराणोंके विद्वान् तथा परम बुद्धिमान् हैं। आजसे पहले हमलोग आपके मुँहसे पुराणोंकी अनेकों परम पावन कथाएँ सुन चुके हैं तथा इस समय भी भगवान्‌को कथा वार्तामें ही लगे हैं। tai लिये सबसे महान् धर्म वही है, जिससे उनकी भगवान्‌मे भक्ति हो । अतः सूतजी ! आप फिर हमें श्रीहरिकी कथा सुनाइये; क्योंकि भगवचर्चाके अतिरिक्त दूसरी कोई बातचीत श्मशानभूमिके समान मानी गयी है। हमने सुना है तीर्थोके रूपमें स्वयं भगवान् विष्णु ही इस भूतलपर विराजमान हैं; इसलिये आप पुण्य प्रदान करनेवाले तीर्थोकि नाम बताइये। साथ ही यह भी कहने की कृपा कीजिये कि यह चराचर जगत् किससे उत्पन्न हुआ हैं, किसके द्वारा इसका पालन होता है तथा प्रलयके समय किसमें यह लीन होता है। जगत्में कौन कौन से पुण्यक्षेत्र हैं ? किन-किन पर्वतोंके प्रति पूज्यभाव रखना चाहिये ? और मनुष्योंके पाप दूर करनेवाली परम पवित्र नदियाँ कौन-कौन-सी है ? महाभाग ! इन सबका आप क्रमशः वर्णन कीजिये । सूतजीने कहा- -द्विजवरो! पहले मैं आदि सर्गका वर्णन करता हूँ, जिसके द्वारा षड्विध ऐश्वर्यसे सम्पन्न सनातन परमात्माका ज्ञान होता है। प्रलयकालके SASH 12 फर He * मैं भगवान् विष्णुके उन चरण कमलोको [भक्तिपूर्वक] प्रणाम करता हूँ, जो भगवती लक्ष्मीजीको सदा ही आनन्द प्रदान करनेवाले और उत्तम शोभासे सम्पन्न हैं, जिनका संसारके प्रत्येक जीवके हृदय में निवास है तथा जो महापुरुषोंके एकमात्र आश्रय और श्रेष्ठसे भी श्रेष्ठ हैं। १. स्वर्गखडसे लेकर आगेका अंश रोमहर्षणजीका सुनाया हुआ है। इसके पहलेका भाग इनके पुत्रने सुनाया था।
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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