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________________ भूमिखण्ड ] - • कुअलका च्यवनको अपने पूर्व-जीवनका वृत्तान्त बताकर ज्ञानका उपदेश करना . ३२७ । देवीने कहा-पापी ! ये फूल कामोदाके रोदनसे खड़ी हुई भगवती परमेश्वरी कुपित हो उठी और ज्यों ही उत्पन्न हुए हैं। इनकी उत्पत्ति दुःखसे हुई है। इन्हींसे तू वह दैत्य उनके पास पहुंचा त्यों ही उन्होंने अपने मुँहसे पापपूर्ण भावना लेकर, प्रतिदिन भगवानकी पूजा करता 'हुंकार' का उच्चारण किया। हुंकारकी ध्वनि होते ही वह है, किन्तु दिव्य पूजा नष्ट करके तू शोकजनित पुष्पोंसे अधम दानव निश्चेष्ट होकर गिर पड़ा, मानो वनके पूजन कर रहा है-यह आज तेरे द्वारा भयंकर अपराध आघातसे पर्वत फट पड़ा हो। उस लोक-संहारक हुआ है। इसके लिये मैं तुझे दण्ड दूंगा। दानवके मारे जानेपर सम्पूर्ण जगत् स्वस्थ हो गया, सबके • यह सुनकर कालके वशीभूत हुआ दानव विहुण्ड दुःख और सन्ताप दूर हो गये। बेटा ! गङ्गाजीके तीरपर बोला-रे दुष्ट ! रे अनाचारी ! तू मेरे कर्मकी निन्दा दुःखसे व्याकुलचित्त होकर बैठी हुई जो सुन्दरी स्त्री रो करता है? तुझे अभी इस तलवारसे मौतके घाट उतारता रही थी, [वह कामोदा ही थी;] उसके रोनेका यही हूँ।' यों कहकर वह ब्राह्मणको मारनेके लिये तीखी कारण था। यह सारा रहस्य जो तुमने पूछा था, मैंने तलवार ले उसकी ओर झपटा। यह देख ब्राह्मणरूपमें कह सुनाया। कुजलका च्यवनको अपने पूर्व-जीवनका वृत्तान्त बताकर सिद्ध पुरुषके कहे हुए ज्ञानका उपदेश करना, राजा वेनका यज्ञ आदि करके विष्णुधाममें जाना तथा पद्मपुराण और भूमिखण्डका माहात्य भगवान् श्रीविष्णु कहते है-राजन् ! धर्मात्मा पक्षी महाप्राज्ञ कुञ्जल अपने पुत्रोंसे यों कहकर चुप हो गया। तब वटके नीचे बैठे हुए द्विजश्रेष्ठ च्यवनने उस महाशुकसे कहा-'महात्मन् ! आप कौन है, जो पक्षीके रूपसे धर्मका उपदेश कर रहे हैं? आप देवता, गन्धर्व अथवा विद्याधर तो नहीं है? किसके शापसे आपको यह तोतेकी योनि प्राप्त हुई है? यह अतीन्द्रिय ज्ञान आपको किससे प्राप्त हुआ है?' कुडाल बोला-सिद्धपुरुष ! मैं आपको जानता। हूँ आपके कुल, उत्तम गोत्र, विद्या, तप और प्रभावसे भी परिचित हूँ तथा आप जिस उद्देश्यसे पृथ्वीपर विचरण करते हैं, उसका भी मुझे ज्ञान है। श्रेष्ठ व्रतका पालन करनेवाले ब्राह्मण ! आपका स्वागत है। मैं आपकी पूछी हुई सब बातें बताऊँगा। इस पवित्र आसनपर बैठकर शीतल छायाका आश्रय लीजिये। अव्यक्त परमात्मासे ब्रह्माजीका प्रादुर्भाव हुआ। उनसे प्रजापति भृगु प्रकट हुए, जो ब्रह्माजीके समान गुणोंसे युक्त हैं। भृगुसे भार्गव (शुक्राचार्य) का जन्म हुआ, जो सम्पूर्ण धर्म और अर्थशास्त्र के तत्त्वज्ञ है। उन्हींक वंशमे आपने जन्म ग्रहण किया है। पृथ्वीपर आप च्यवनके नामसे विख्यात है। [अब मेरा परिचय सुनिये- मैं देवता, गन्धर्व या विद्याधर नहीं हैं। पूर्वजन्ममें कश्यपजीके कुल में एक श्रेष्ठ ब्राह्मण उत्पन्न हुए थे। उन्हें वेद-वेदाङ्गोंके तत्त्वका ज्ञान था। वे सब धर्मोको प्रकाशित करनेवाले थे। उनका नाम विद्याधर था; वे कुल, शील और गुण-सबसे युक्त थे। विप्रवर विद्याधर अपनी तपस्याके प्रभावसे सदा शोभायमान दिखायी देते थे। उनके तीन पुत्र हुए-वसुशर्मा, नामशर्मा और धर्मशर्मा । उनमें धर्मशर्मा मैं ही था, अवस्थामें सबसे छोटा और गुणोंसे हीन । मेरे बड़े भाई वसुशर्मा वेद-शास्त्रोंके पारगामी विद्वान् थे। विद्या आदि सद्गुणोंके साथ उनमें सदाचार भी था। नामशर्मा भी उन्हींकी भाँति महान् पण्डित थे। केवल मैं ही महामूर्ख निकला। विप्रवर ! मैं विद्याके उत्तम भाव और शुभ अर्थको कभी नहीं सुनता था और गुरुके घर भी कभी नहीं जाता था। यह देख मेरे पिता मेरे लिये बहुत चिन्तित रहने लगे। वे सोचते-'मेरा यह पुत्र धर्मशर्मा कहलाता है,
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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